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1500 साल पहले भी मनोरंजन के लिए लड़ाए जाते थे जानवर

बस्तर के विशेष त्योहारों में मुर्गे लड़ाए जाते हैं. यहां तक कि मुर्गो के टांगों में धारदार हथियार बांध दिया जाता है.

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सांकेतिक फोटो
सांकेतिक फोटो

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लोगों की यह आम धारणा है कि सांडों की लड़ाई यूरोप के देशों में होती थी और भारत में इसकी कोई प्रथा ही नहीं रही. लेकिन छत्तीसगढ़ के सिरपुर के तिवरदेव विहार का जो प्रवेश द्वार प्रकाश में आया है, उसमें सांडों की लड़ाई का स्पष्ट चित्रण है.

वरिष्ठ पुरातत्वविद् पद्मश्री डॉ. अरुण शर्मा ने कहा है कि कई ऐसे प्रमाण मिले हैं जिससे इसकी पुष्टि होती है कि प्राचीन समय में छत्तीसगढ़ मनोरंजन के लिए जानवरों की लड़ाई में बहुत आगे था. क्योंकि सांडों की लड़ाई का दृश्य भारत के किसी और खुदाई से प्राप्त नहीं हुआ है.

खुदाई में मिला सांडों की लड़ाई का चित्रण

डॉ. शर्मा ने कहा कि सिरपुर की खुदाई में सांडों की लड़ाई का जो चित्रण मिला है वह लगभग 1500 साल पुराना है. पुरातत्व के जानकारों का मानना है कि आज से हजारों साल पहले जब तकनीक बिल्कुल विकसित नहीं थी, लेकिन मानव का अस्तित्व था तो जाहिर सी बात है कि वह अपने मनोरंजन के लिए इस तरह के खेलों का आयोजन करते रहे होंगे.

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गौर से चित्रण देखा जाए तो ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है कि दृश्य में उस व्यक्ति का सांड पराजित हो रहा है और वह हताशा में अपने सांड को पीछे से बढ़ावा देते दिख रहा है.

डॉ. शर्मा का ने कहा, 'आज भी बस्तर संभाग के विशेष त्योहारों में मुर्गे लड़ाए जाते हैं. यहां तक कि मुर्गो के टांगों में धारदार हथियार बांध दिया जाता है. ऐसी कितनी ही प्रथाएं हैं, जो उत्खनन से उजागर हो सकती हैं.'

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