आज ही के दिन 10 साल पहले (26 नवंबर, 2008) मुंबई की काली रात को कामा और अल्बलेस अस्पताल पर हमले के समय एक शख्स ऐसा भी था जो कसाब के बेहद नजदीक आ गया था. अस्पताल में ड्यूटी पर तैनात चौकीदार कैलाश घेगडमल आज भी वो पल याद करके सिहर उठते हैं.
आतंकवादी कसाब और उसके अन्य साथी गार्ड से सिर्फ दस फीट की दूरी पर पहुंच गए थे. आतंकियों ने अन्य गार्ड को गोलियों से छलनी कर दिया था. इन आतंकवादियों ने पास ही बने छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस में 52 लोगों को मौत की नींद सुलाने के बाद इस अस्पताल का रुख किया था.
कैलाश बताते हैं कि साथी बब्बन वालू ने गोलियों की आवाज सुनने के बाद अस्पताल में लगे दरवाजों को बंद करने का काम तेजी से शुरू कर दिया. लेकिन वालू अंधाधुंध गोलियां बरसा रहे आतंकियों का निशाना बन गया. इससे वह घबरा कर एक पेड़ के पीछे छुप गए और बमुश्किल दस फीट की दूरी से उन्होंने इंसानी जिंदगियों को मौत बांट रहे कसाब को देखा.
उन्होंने भाषा को बताया कि इमारत का मुख्य द्वार खुला हुआ था और आतंकियों ने उस तरफ दौड़ लगा दी और वहां डंडा थामे दूसरे गार्ड भानु नारकर पर तड़ातड़ गोलियां बरसा दीं. उन्होंने कहा कि पहले लगा कि यह शायद गैंगवार का नतीजा है, लेकिन जब नारकर को उनके सामने कसाब ने मार डाला तो लगा मामला कुछ और है.
अस्पताल परिसर में प्रवेश करने के बाद कसाब और उसके सहयोगी ने अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी, जिससे कर्मचारी, मरीज और उनके रिश्तेदार बहुत डर गए. बाद में कैलाश हिम्मत दिखाते हुए पुलिस टीम को छठी मंजिल तक ले गए, जहां उनकी आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ हुई, जिसमें दो पुलिसकर्मी मारे गए और वह और आईपीएस अधिकारी सदानंद दाते घायल हो गए.
वहीं, नर्स मीनाक्षी मुसाले और अस्मिता चौधरी ने कहा कि उन्होंने फ्रिज, एक एक्सरे मशीन, दवा ट्रॉली और कुर्सियों का इस्तेमाल दूसरी मंजिल पर दरवाजा बंद करने के लिए किया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आतंकवादी वहां घुस न सकें. अस्पताल अधीक्षक अमिता जोशी ने बताया कि अब अस्पताल में सशस्त्र गार्ड हैं और निगरानी के लिए 67 सीसीटीवी लगाए गए हैं.