'टाइगर हिल' की चर्चा के बिना करगिल युद्ध की बात अधूरी ही रहेगी. दरअसल करगिल की सबसे ऊंची चोटी का नाम टाइगर हिल है, जिसपर पाकिस्तानी सैनिकों ने कब्जा जमा लिया था. टाइगर हिल पर तिरंगा फहराने के बाद ही भारतीय सैनिकों ने चैन की सांस ली.
रणनीतिक दृष्टि से काफी अहम
4 जुलाई 1999 का वह दिन देश के इतिहास में हमेशा के लिए सुनहरे अक्षरों में दर्ज हो चुका है. जब पूरा देश पाकिस्तानी घुसपैठियों की करतूत पर मातम मना रहा था, तब देश के वीर जवान दुश्मन के कब्जे से टाइगर हिल को छु़ड़ाने की जद्दोजहद में अपना खून बहा रहे थे. टाइगर हिल्स करगिल की वह चोटी थी, जिसपर से दुश्मन सीधे श्रीनगर-लेह राजमार्ग पर हमला कर सकता था. इस तरह रणनीतिक दृष्टिकोण से यह काफी अहमियत रखती थी.
जंग के लिए बनी व्यापक रणनीति
टाइगर हिल्स पर फतह के लिए 18 ग्रेनेडियर, 2 नागा और 8 सिख रेजिमेंट हमले के लिए तैयार किए गए थे. 12-18 सैनिकों की टुकड़ी ने लगभग 1000 फीट ऊंची चोटी पर चढ़ाई शुरू की. लगभग 200 सैनिक उन्हें पीछे से मदद को एकदम तैयार थे. जानकारी के मुताबिक अल्फा, चार्ली और घातक कंपनियों ने पीछे की ओर से, नागा ने बायीं ओर से, जबकि सिख रेजीमेंट ने दायीं ओर से टाइगर हिल्स पर हमला किया. 3 जुलाई शाम 5 बजकर 15 मिनट पर चढ़ाई शुरू हुई.
टाइगर हिल का लहराया तिरंगा
सैनिकों ने अपनी पोजिशन लेनी शुरू की और रात 8 बजे हमला बोल दिया गया. दुश्मनों के सैनिक इस हमले में मार गिराए गए. इस हमले में भारत के 5 सैनिकों ने अपनी जान की कुर्बानी दे दी और हमेशा के लिए देशवासियों के लिए प्रेरणा के स्रोत बन गए. सुबह 6 बजकर 50 मिनट पर टाइगर हिल्स भारतीय सेना के कब्जे में था और सैनिक वहां शान से तिरंगा लहरा रहे थे.