अटलांटिक महासागर में साल 1912 में डूबे टाइटैनिक जहाज हादसे को लेकर एक बार फिर बात हो रही है. वजह ये है कि पांच लोगों को इसका मलबा दिखाने ले गई एक पनडुब्बी लापता हो गई. कंपनी OceanGate ने पनडुब्बी में सवार सभी पांच लोगों की मौत की पुष्टि की है. ऐसी खबरें हैं कि यात्रियों ने 2 करोड़ रुपये में टिकट खरीदे थे.
अब कुछ लोग इस तरह के एडवेंचर्स की काफी आलोचना कर रहे हैं. इनका कहना है कि जिस स्थान को कब्रगाह माना जाना चाहिए, उसे दिखाने के लिए लोगों को ले जाया जा रहा है. जबकि कुछ लोगों ने इस तरह के ट्रैवल की तुलना सुसाइड मिशन से की है. जिस टाइटैनिक हादसे की चर्चा बीते 111 साल से जारी है, आज हम उसकी पूरी कहानी जान लेते हैं.
टाइटैनिक एक विशालकाय समुद्री जहाज था. इसका असली नाम आरएमएस टाइटैनिक था. इसे लेकर कहा जाता था कि जहाज को ईश्वर भी नहीं डुबा सकता. इसकी लंबाई 269 मीटर थी और ये स्टील से बना था. इस पर करीब 3300 लोगों के ठहरने की सुविधा थी, जिसमें चालक दल और यात्री शामिल हैं. हालांकि जब ये ब्रिटेन से अमेरिका की तरफ जा रहा था, तभी अटलांटिक महासागर में रात के वक्त एक हादसे का शिकार हो गया, जिसने जहाज को कुछ घंटों में ही डुबा दिया. आज भी इसका मलबा वहीं पड़ा है, इसे निकाला नहीं जा सका.
हालिया घटना में शामिल लोग, इसी मलबे को देखने के लिए गए थे. टाइटैनिक को लेकर कहा जाता था कि इसका डिजाइन कुछ ऐसा था कि अगर एक कमरे में पानी भर जाए, तो उससे दूसरे कमरे को डुबाया नहीं जा सकता. हैरानी भरी बात ये है कि जहाज डूबने के इतिहास में अव्वल स्थान हासिल करने वाले टाइटैनिक का प्रचार करते वक्त कहा गया था कि यह डूब नहीं सकता. वजह ये थी कि इसमें कई तहखाने थे. जिन्हें वॉटरटाइट दीवारों से बनाया गया था. कहा गया कि तहखाने की दो कतारों में पानी भरने की स्थिति में भी ये जहाज नहीं डूबेगा.
जवाब- आयरलैंड के बेलफास्ट की हार्लैंड एंड वूल्फ नाम की कंपनी ने इस जहाज को बनाया था. इसकी लंबाई 269 मीटर, चौड़ाई 28 मीटर और ऊंचाई 53 मीटर थी. जहाज में तीन इंजन थे. साथ ही भट्टियों में 600 टन तक कोयले की खपत होती थी. उस वक्त इसे बनाने का खर्च 15 लाख पाउंड था. इसे तैयार होने में तीन साल लगे. जहाज में 3300 लोग सवार हो सकते थे. जब पहली बार ये सफर पर निकला तो 1300 यात्री और 900 चालक दल के लोग इस पर सवार थे. लग्जरी जहाज की टिकट काफी महंगी थी. उस वक्त फर्स्ट क्लास की टिकट का दाम 30 पाउंड, सेकंड क्लास का 13 पाउंड और थर्ड क्लास का 7 पाउंड था.
जवाब- टाइटैनिक जहाज हादसे से कुछ महीने पहले की बात है, जब ग्रीनलैंड के एक हिस्से में ग्लेशियर का 500 मीटर का बड़ा टुकड़ा उससे अलग हो गया. ये हवा और समुद्र के जरिए दक्षिण की तरफ जाने लगा. फिर 14 अप्रैल तक 125 मीटर का हो गया था. साल 1912 की 14 अप्रैल की उसी रात को इसकी टाइटैनिक से टक्कर हो गई. फिर चार घंटे के भीतर ही जहाज डूब गया. तब जहाज की रफ्तार 41 किलोमीटर प्रति घंटा थी. वो इंग्लैंड के साउथम्पैटन से अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर की तरफ तेजी से बढ़ रहा था.
घटना के वक्त इसमें 2200 लोग सवार थे. हादसे में 1500 लोगों की मौत हो गई. इसे आज तक का सबसे बड़ा समुद्री हादसा कहा जाता है. ब्रिटेन और अमेरिका की सरकार ने हादसे का कारण जानने के लिए जांच करवाई. तब हिमखंड से टकराना ही वजह बताई गई. हादसे में मरने वाले लोगों के रिश्तेदारों का कहना है कि समुद्रतल में स्थित इस जगह को छेड़ा नहीं जाना चाहिए, ये उनके रिश्तेदारों की कब्रगाह है.
जवाब- टाइटैनिक जहाज का मलबा सितंबर 1985 में मिला था. ये समुद्रतल से 2600 फीट नीचे अटलांटिक सागर में है. इसकी तलाशी का काम अमेरिका और फ्रांस ने किया. अमेरिकी नौसेना ने इस काम में अहम भूमिका निभाई. जिस स्थान पर मलबा मिला, वो कनाडा के सेंट जॉन्स के दक्षिण में 700 किलोमीटर दूर और अमेरिका के हैलिफोक्स से 595 किलोमीटर दक्षिणपूर्व में है. जहाज दो टुकड़ों में मिला, दोनों एक दूसरे से 800 मीटर दूर पड़े हुए थे. आसपास भारी मात्रा में मलबा पड़ा था.
जवाब- इस जहाज की टक्कर एक विशाल हिमखंड ले हुई थी, उस वक्त ये तेज गति में अटलांटिक सागर को पार कर रहा था. हिमखंड से टक्कर के बाद जहाज डूब गया. इसमें पानी भरा और जिन वॉटरटाइट कंपार्टमेंट्स की दीवारों को सुरक्षा कवच माना गया था, वो नष्ट हो गईं. करीब पांच वॉटरटाइट कमरों में पानी भर गया. ऐसा कहा जाता है कि उस वक्त का स्टील मजबूत नहीं था. जब जहाज की हिमखंड के साथ टक्कर हुई, तो उसका ढांचा बदल गया. दरवाजे बंद नहीं हो पा रहे थे.
जवाब- ऐसा कहा जाता है कि जिस दिन टाइटैनिक ने अपना सफर शुरू किया, उससे कुछ दिन पहले एक अन्य जहाज ने अटलांटिक सागर को पार किया था. तब उसने 12 अप्रैल यानी हादसे से ठीक दो दिन पहले टाइटैनिक को वायरलेस मैसेज के जरिए हिमखंड की मौजूदगी को लेकर चेतावनी दी थी. लेकिन ये संदेश कभी टाइटैनिक तक पहुंचा ही नहीं. हालांकि चेतावनी देने वाला ये जहाज खुद भी छह साल बाद 1918 में पहले विश्व युद्ध के दौरान समुद्र में डूब गया.
टाइटैनिक बनाने वाली कंपनी व्हाइट स्टार के प्रबंध निदेशक जे ब्रूस भी हादसे वाले जहाज पर सवार थे. वो यहां से निकली आखिरी लाइफबोट में मौजूद लोगों में से एक थे. उन्होंने बाद में अमेरिकी सीनेट से कहा था कि हिमखंड से टक्कर के दौरान वो सो रहे थे. उन्हें कैप्टन ने बताया कि जहाज का डूबना लगभग तय है.
इसके अलावा जहाज के हिमखंड के टकराने के दौरान ही उसमें मौजूद टेलीग्राफर्स ने खतरे वाले सिग्नल भेजने शुरू कर दिए थे. जिन लोगों तक सिग्नल पहुंचा उनमें आर्थर मूर. आर्थर शामिल थे. तब वो 4800 किलोमीटर दूर साउथ वेल्स में अपने घर पर बैठे थे. उन्होंने घर के रेडियो स्टेशन पर ये सिग्नल पकड़े. वो अगले दिन 15 अप्रैल को पुलिस स्टेशन भी गए. लेकिन उनकी बात पर कोई भरोसा नहीं कर रहा था.
वो इस जहाज को वक्त पर डूबने से नहीं बचा सके. लेकिन उन लोगों में से एक थे, जिन्होंने मलबे की तलाश की थी. आर्थर ने सोनार तकनीक पर काम करना शुरू कर दिया था. अब इस मलबे में जंग लग चुका है, बैक्टीरिया और दूसरे कीटाणु इसे तेजी से खत्म कर रहे हैं. जानकारों का मानना है कि वो दिन दूर नहीं जब टाइटैनिक का अस्तित्व ही इतिहास बनकर रह जाएगा.