इंटरनेट, फेसबुक, आईपोड और मल्टीमीडिया की चकाचौंध वाले इस दौर में रंगोली, तिल स्नान, पूरनपोली, अन्नकूट जैसे शब्द अब कुछ अनजाने बेगाने से लगते हैं. आधुनिकता और व्यस्तता के चलते कई परंपराएं पीछे छूटती जा रही हैं.
उम्र के 84 वें साल में अपनी धुंधली हो चुकी यादों को खंगालते हुए जमनी यादव कहती हैं ‘दीवाली से पहले घरों की और दुकानों की साफ सफाई की जाती है. इसे नए साल की शुरूआत के लिए शुभ माना जाता है. व्यापारियों के लिए दीवाली के दो दिन पहले मनाए जाने वाले धनतेरस से नए साल की शुरूआत होती है.
अब लोगों के पास हर साल सफाई कराने का समय नहीं रहता. दो या तीन साल में एक बार सफाई हो गई, बस.. बहुत है.’’ बैंक कर्मी मंगला रामचंद्रन कहती हैं ‘दीवाली से पहले महिलाएं, खास कर दक्षिण भारत में सुबह सवेरे घरों के आंगन की सफाई कर रंगोली बनाने की परंपरा है. दक्षिण भारत में यह रंगोली चावल के आटे को पीस कर बनाई जाती है. महाराष्ट्र में भी रंगोली बनाने का चलन है. यहां इसे अल्पना कहा जाता है. उत्तर भारत में रंगोली के रेत से बनाए गए अलग अलग रंग मिलते हैं.’
मंगला कहती हैं ‘‘पहले दशहरे के दिन से दीवाली तक रोज सुबह सवेरे आंगन रंगोली से सजाए जाते थे. अब व्यस्तता के चलते रंगोली की ओर किसी का ध्यान नहीं जाता. कुछ घरों में दीवाली के दिन छोटी सी रंगोली बना दी जाती है. पहले घर के बाहर बड़ा सा आंगन होता था जिसमें रंगोली बनाई जाती थी. अब लोग बहुमंजिला इमारतों में छोटे छोटे फ्लैटों में रहते हैं. उनके पास समय भी नहीं होता.’{mospagebreak}
वैसे एक दो साल से शॉपिंग मॉल्स में रंगोली बनाने का चलन नजर आ रहा है. यहां खरीदारी करने और दीवाली की रात घूमने आने वाली महिलाएं और लड़कियां रंगोली बनाने का शौक पूरा कर लेती हैं.
आजादी से पहले आजाद हिंद फौज में सिपाही रहे किशन सिंह कहते हैं ‘‘पहले धनतेरस से घरों में दिए की सजावट की जाती थी. अब बिजली के लट्टुओं से घर सजा दिए जाते हैं. तेल के दिए नाम मात्र को जलाए जाते हैं वह भी दीवाली के दिन.
पहले जैसी रौनक अब नजर नहीं आती.’ झुकी कमर को सीधी करने की कोशिश करते हुए किशन कहते हैं ‘‘मुझे अच्छी तरह याद है कि पहले मां दीवाली के दिन घर पर पूरनपोली जरूर बनाती थी. अब लोग बाजार से मिठाई ले आते हैं. पूरनपोली का नाम तो नयी पीढ़ी ने सुना भी नहीं होगा. हमें फौज में भी पूरनपोली की याद आती थी तो मुंह में पानी आ जाता था.’ दीवाली से एक दिन पहले छोटी दीवाली मनाई जाती है. इसे नरक चौदस भी कहा जाता है. मान्यता है कि इस दिन तड़के पानी में तिल के कुछ दाने डाल कर स्नान करने से पुण्य मिलता है.
पश्चिम बंगाल में इस दिन महाकाली की पूजा की जाती है. दक्षिण भारत में तड़के मालिश करने के बाद स्नान किया जाता है. इस स्नान को गंगा में स्नान की तरह ही पवित्र माना जाता है.
वह कहते हैं ‘‘अब तो औपचारिकता होती है और कारण व्यस्तता को बता दिया जाता है. आम के पेड़ ही नहीं नजर आते, तोरण कैसे बनेगी. सब कुछ रेडीमेड में तब्दील हो गया है. बची खुची कसर इंटरनेट ने पूरी कर दी.’{mospagebreak}
राजधानी में सेना के एक अस्पताल में कार्यरत उड़ीसा के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ मनोज दास कहते हैं ‘‘उड़ीसा में दीवाली के दिन विशेष रंगोली बनाई जाती है. इसमें सात कक्ष वाली एक बड़ी नौका बनाई जाती है. पूजा के दौरान प्रत्येक कक्ष में रूई, सरसों, नमक, शतावरी की जड़, हल्दी और एक पान का पत्ता रखा जाता है. बीच वाले कक्ष में प्रसाद रखा जाता है. मैं यहां इतनी परंपराओं का पालन नहीं कर पाता. दिक्कत यह है कि दिल्ली में कहीं भी आने जाने में इतना समय लगता है कि उत्साह पर पानी फिर जाता है. मानसिक और शारीरिक थकान के बाद त्यौहार कैसे मनाएं.’
आंध्रप्रदेश के हैदराबाद में दीवाली के दिन खास तौर पर एक भैंस को स्नान कराया जाता है. इसे शुभ माना जाता है. डॉ दास कहते हैं ‘‘यह चलन शायद हैदराबाद में ही बचा होगा क्योंकि मुझे दिल्ली में तो कभी कभार ही भैंस नजर आती है.’