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परंपरा प्यार व विश्वास की अयोध्‍या

आखिर फैसले की घड़ी आ ही गई. उसकी प्रतिक्रिया में हिंसक सांप्रदायिक दंगों की आशंका से राज्‍य और केंद्र सरकार की रातों की नींद हराम हो गई. पर 28 सितंबर को जब सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाइकोर्ट की लखनऊ पीठ को राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद की जमीन के मालिकाना हक का फैसला सुनाने की हरी झंडी दिखाई, उस रोज अयोध्या की पावन धरती और नवाबों की राजधानी रहे फैजाबाद में जिंदगी हमेशा की तरह सामान्य थी.

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आखिर फैसले की घड़ी आ ही गई. उसकी प्रतिक्रिया में हिंसक सांप्रदायिक दंगों की आशंका से राज्‍य और केंद्र सरकार की रातों की नींद हराम हो गई. पर 28 सितंबर को जब सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाइकोर्ट की लखनऊ पीठ को राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद की जमीन के मालिकाना हक का फैसला सुनाने की हरी झंडी दिखाई, उस रोज अयोध्या की पावन धरती और नवाबों की राजधानी रहे फैजाबाद में जिंदगी हमेशा की तरह सामान्य थी.

हिंदू श्रद्धालु अयोध्या में मंदिरों के साये में स्थित विभिन्न दरगाहों और मजारों पर जा रहे थे, जबकि सदियों पुराने मंदिरों वाली सड़कों और गलियों में मुस्लिम नौजवान और बूढ़े आराम से घूम-फिर रहे थे. हमेशा की तरह मुस्लिम कारीगर मालाएं, भगवा ध्वज, ढोलक और पूजा सामग्री बेच रहे थे. आखिर, अथर्ववेद में अयोध्या को 'देवताओं का बसाया शहर और स्वर्ग जितना शांत' बताया गया है.

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भगवान राम की जन्मभूमि अयोध्या में सरयू नदी के किनारे मंदिरों के बीच क्षतिग्रस्त हो रही एक ऊंची मीनार है. किसी को नहीं पता इसका क्या महत्व है, हालांकि इस पवित्र नगरी के सभी लोगों को लगता है कि मुगल सम्राट औरंगजेब ने इसे एक ऐसे कुंड पर बनवाया था, जिसे लोहे के एक विशाल तवे से ढका गया है.

सभी धर्मों के लिए एकेश्वरवाद की प्रतीक इस मीनार से कुछ फर्लांग की दूरी पर प्रसिद्ध हनुमान गढ़ी स्थित है, जहां से हनुमान रामजन्मभूमि या रामकोट पर नजर रखते हैं. हनुमान गढ़ी का निर्माण अवध के तुनुक-मिजाज नवाब शुजा-उद-दौला ने करवाया था. तब अवध की राजधानी फैजाबाद थी. इस मंदिर में एक सोने की मूर्ति में हनुमान अपनी माता अंजनि की गोद में बैठे हैं. इस चौकोर किलानुमा मंदिर के एक हिस्से में सर्वधर्म सत्यार मंदिर है, जिसमें भगवान राम, गौतम बुद्ध, भगवान महावीर की प्रतिमाएं, मक्का-मदीना की तस्वीर और पैगंबर जरथुस्त्र की तस्वीर लगी है. {mospagebreak}

फैजाबाद निवासी और उर्दू-हिंदी साप्ताहिक आपकी ताकत  के संपादक एस. मंजर मेहदी बताते हैं कि तीन साल पहले तक हनुमान गढ़ी के महंत रमजान के दौरान इफ्तार की दावत देते थे, लेकिन विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के दबाव में यह बंद कर दी गई. इसके बावजूद कोई 1,200 मंदिरों वाली अयोध्या एक ऐसा गुलदस्ता है जिसमें तरह-तरह के सुगंधित फूल हैं.

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अयोध्या का मतलब है जिसे जीता न जा सके  और वह परस्पर ह्ढेम भाव का प्रतीक हुआ करती थी, पर हिंदू-मुस्लिम विवाद ने उसे धार्मिक और सांप्रदायिक संघर्ष का प्रतीक बना दिया. अदालती लड़ाई में एक वादी, 91 वर्षीय हाशिम अंसारी याद करते हैं, ''जब तक हिंदू-मुसलमानों के धर्मस्थलों का मामला कानूनी था, तब तक उसकी मर्यादा और गरिमा बरकरार थी. पर अब वह खत्म हो गई है.'' वे बताते हैं कि उस जमाने में वे परमहंस रामचंद्र दास के साथ एक ही टांगे पर बैठकर सिविल कोर्ट जाते थे और अक्सर परमहंस ही किराया चुकाते थे. ''मुझे मस्जिद की तामीर (निर्माण) से ज्‍यादा हिंदू-मुस्लिम एकता और आपसी प्यार की चिंता है.''

इतने ही चिंतित रामलला के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास हैं. ''मुझे समझ् में नहीं आता कि कुछ लोग क्यों लड़ रहे हैं? जब ईश्वर इंसानों में फर्क नहीं करता तो हम ऐसा करने वाले कौन हैं?'' अयोध्या के हिंदुओं और मुसलमानों में से कई का कहना है कि बाहरी लोग ही फितना फैला रहे हैं और इस पवित्र भूमि को बदनाम कर रहे हैं.

पर अधिकतर लोग अयोध्या की उत्पत्ति की यह पौराणिक कथा को मानते हैं: ''अपनी जनता के रक्षक, ब्रह्मा के सबसे बड़े पुत्र स्वयंभू मनु एक बार अपने पिता के  घर हाथ जोड़कर पहुंचे. प्रसन्न ब्रह्मा ने पूछा, 'पुत्र, शीघ्र बताओ, तुम यहां क्यों आए हो?' मनु झुककर बोले, 'आपने मुझे सृष्टि की रचना का आदेश दिया है, कृपया मुझे मेरे वास के लिए उचित स्थान दें.'{mospagebreak}

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ब्रह्मा अपने पुत्र को साथ लेकर भगवान विष्णु के धाम वैकुंठ गए और हाथ जोड़कर भगवान विष्णु से मधुर स्वर में बोले, 'हे देवों के देव, आप अपने श्रद्धालुओं पर सदा कृपा-दृष्टि रखते हैं और मनु उनमें से एक हैं. अतः उसे रहने के लिए कोई जगह दे दें.'

इससे प्रसन्न विष्णु ने उन्हें पृथ्वी के मध्य में स्थित खूबसूरत और भव्य अयोध्यानगरी प्रदान की. इसके बाद ब्रह्मा मनु के साथ इहलोक में आए और उनकी मर्जी के मुताबिक शहर का निर्माण करने के लिए विष्णु ने वशिष्ठ और विश्वकर्मा को भेजा. जगह देवताओं की इच्छा के अनुरूप चुनी गई, पर वह रहने योग्य नहीं थी. वहां सुदर्शन चक्र बनाया गया और उसी पर शहर की नींव रखी गई. रत्नों से मढे़ विभिन्न मंदिर, महल, सड़क, बाजार, फलों और फूलों से लदे पेड़-पौधे, मधुर स्वर वाले पह्नी, असंख्य हाथी, घोड़े, रथ, गाय, बैल बनाए गए और सभी सत्कर्म करने वाले पुरुषों-महिलाओं को हर तरह की सुविधा प्रदान की गई. खूबसूरत घाटों वाली सरयू उसके पास ही बहती है.''

बहरहाल, शहर के दूसरे कोने में ईश्वर के पहले दूत पैगंबर आदम के बेटे हजरत शीश की मशर दरगाह है. इसके चारों ओर उनकी पत्नी और छह बेटों की कब्रें हैं. फिर दरगाह नौगजी है. 16.2 मीटर लंबी इस कब्र पर देश भर से हिंदू-मुसलमान जियारत के लिए पहुंचते हैं.

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अयोध्या नरेश के महल के निकट स्थित यह दरगाह हजरत नूह की बताई जाती है, जो बहुत-से श्रद्धालुओं के लिए किसी मंदिर से कम नहीं है. युवा मुस्लिम फल विक्रेता रिजवान अहमद के अनुसार, ''बचपन में सुनते थे कि यहां करीब 80 मजार और दरगाह थे, जहां मंदिर में दर्शन करने वाले आते थे. पर अब कोई 20 मजार और दरगाह बचे हैं. इसलिए स्थानीय मुसलमान अयोध्या को मक्का-खुर्द (छोटा मक्का) मानते हैं.{mospagebreak}

विद्वान बताते हैं कि 12वीं सदी से ही सूफी संत अयोध्या को आध्यात्मिक शिक्षा का केंद्र मानते रहे हैं. उन्हीं सूफियों में मध्य एशिया से आए काजी किदवतुद्दीन अवधी थे. मुगलों से पहले सूफियों के फिरदौसिया पंथ के एक और सूफी थे शेख जमाल गुज्‍जरी. लेकिन 1980 के दशक के शुरू में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद की आंधी में सूफियों और पैगंबरों की मौजूदगी को भुला दिया गया.

उधर, अयोध्या की कहानी में एक नया मोड़ भी आया जब रामजन्मभूमि विवाद की कानूनी लड़ाई में कुछ बौद्ध एक पक्ष बनना चाहते थे. उनका कहना था कि अयोध्या बौद्ध केंद्र था लेकिन मध्य युग में जनजागरण आंदोलन के दौरान मठों पर कब्जा करके उन्हें मंदिरों में तब्दील कर दिया गया. पर इस दावे में कोई दम नहीं पाया गया. बौद्ध परंपरा में अयोध्या को साकेत या कौशल के रूप में जाना जाता है, जो भगवान बुद्ध के पिता शुद्धोधन के राज का हिस्सा था.

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चीनी बौद्ध यात्री ह्वेन सांग ने अयोध्या की यात्रा में वहां कोई 3,000 बौद्ध भिक्षु पाए थे, दूसरे धर्मावलंबियों की संख्या बहुत कम थी. तब अयोध्या में कोई 100 बौद्ध मठ और 10 बड़े बौद्ध मंदिर हुआ करते थे.

हिंदुओं की पवित्र नगरी में 32 मस्जिदें भी हैं, जहां से मंदिरों की दीवारों पर अजान गूंजती है, जो भजनों तथा अनवरत गाई जाती हनुमान चालीसा की धुन में मिल जाती है. शनि धाम के प्रमुख, 55 वर्षीय ज्‍योतिषी हरदयाल शास्त्री का कहना है कि भगवान राम की यह भूमि वास्तव में धन्य है. हिंदुओं के साथ ही अयोध्या मुसलमानों, जैनियों, सिखों और बौद्धों के लिए भी पवित्र नगरी है.{mospagebreak}

और यह अकारण नहीं है. अयोध्या जैन पंथ के पांच देवों-ऋषभ देव, अजीतनाथ, अभिनंदन-नाथ, अनुदनाथ और सुमतिनाथ-की जन्मस्थली है, जबकि सिख समुदाय के पहले गुरु नानकदेव, 9वें गुरु तेग बहादुर और 10वें गुरु गोविंद सिंह ने यहां गुरद्वारा ब्रह्मकुंड में ध्यान किया था. ब्रह्मघाट में स्थित गुरद्वारा सबसे पुराने गुरद्वारों में से है और पौराणिक कथा के मुताबिक, इसी जगह भगवान ब्रह्मा ने 5,000 वर्ष तक तपस्या की थी.

अयोध्या नवाबों की राजधानी रहे फैजाबाद से मात्र छह किमी की दूरी पर स्थित है. मूलतः ईरानी पृष्ठभूमि वाले नवाब अपेक्षाकृत धर्मनिरपेक्ष थे और अपनी जनता की धार्मिक भावनाओं की कद्र करते थे. उत्तर प्रदेश सरकार के संस्कृति विभाग के अधिकारी ए.पी. गौड़ कहते हैं, ''इस विवाद के बारे में समाचार माध्यमों में जरूरत से ज्‍यादा हंगामा खड़ा होने से इन दोनों शहरों में लोगों के बीच प्रेमभाव दूषित हो गया और हर किसी ने अपने अतीत को भुला दिया.''

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पर फैजाबाद के एसएसपी आर.के.एस. राठौर के मुताबिक, ''फैजाबाद-अयोध्या क्षेत्र के समाज का सकारात्मक पहलू यह था कि यहां के लोगों ने सांप्रदायिकता को कभी अपने सोच को प्रभावित करने और अपने सामाजिक संबंधों को बिगाड़ने का अवसर नहीं दिया.'' बाहर से आए लोगों ने 1992 में बाबरी मस्जिद गिरा दी लेकिन उसके बाद से फैजाबाद में सांप्रदायिक तनाव या कर्फ्यू लगाने की कभी कोई नौबत नहीं आई.

उर्दू साहित्य में फैजाबाद का खास स्थान है.

उर्दू के शेक्सपियर माने गए मीर अनीस के अलावा कई जाने-माने शायर और अदीब फैजाबाद के थे. नवाबों के जमाने में लखनऊ में रोमांस भरने वाली मशर रक्कासा और शायरा उमराव जान फैजाबाद की ही थी. बाद में बेगम अख्तर (अख्तरी बाई) ने अपनी गायकी के जरिए ग.जल, ठुमरी और दादरा को घर-घर तक पहुंचा दिया.{mospagebreak}

पर नवाबी जमाने के स्मारकों को बचाने की मुहिम चला रहे मंजर मेहदी इसे दूसरे नजरिए से देखते हैं, ''मालिकाना हक के इस सामान्य मुकदमे को सांप्रदायिक रंग दे दिया गया और कुछ ताकतों ने नवाबी स्थापत्य, संस्कृति, अदब और आदाब की यादों को खत्म करने के लिए राजनीतिक जंग छेड़ दी. नवाबों ने ही अयोध्या को एकता और ह्ढेम की मिसाल कायम करने में मदद की थी.''

अयोध्या का पतन नवाबों के अपनी राजधानी लखनऊ को बनाने पर शुरू हुआ. बक्सर की जंग  के बाद अंग्रेजों ने सरयू के तट पर स्थित नवाब की खूबसूरत कचहरी को अफीम दफ्तर एवं मालखाने में तब्दील कर दिया. लखनऊ और फैजाबाद के बीच सुरंग का एक मुहाना कचहरी में था. उसमें नवाबों और अवध के राजाओं की चित्रदीर्घा है.

एक छोटे-से दफ्तर को छोड़कर बाकी सारा परिसर वीरान और गंदा दिखता है. तब पूरे शहर को बंगले के रूप में जाना जाता था. मंजर मेहदी बताते हैं कि तबाही की एक और मिसाल गुलाबबाड़ी है, जो नवाब शुजा-उद-दौला की एक और अति ख्यात कृति है. डिजाइन और स्थापत्य के मामले में इसे छोटा ताजमहल मानते हैं. सबसे पहले जिला प्रशासन ने 1952 में उस परिसर में एक विशाल अशोक स्तंभ लगा दिया जिससे अब वह बाहर से ठीक से नहीं दिखता. झ्रने सूख गए हैं और गुलाबों की प्रजातियां भी खत्म हो गई हैं. किसी जमाने में काले गुलाब यहीं मिलते थे. उसमें नवाब शुजा-उद-दौला का मकबरा भी है. परिसर एएसआइ के अधीन होने पर भी कोई उसकी सुध लेने वाला नहीं है.{mospagebreak}

मीर अनीस का घर अवारा पशुओं का ठिकाना बना दिया गया था, पर विरोध होने पर उसे पुस्तकालय में तब्दील कर दिया गया. मंजर मेहदी बताते हैं कि अब किसी को फोर्ट कैलकटा की याद नहीं है, जिसे शुजा-उद-दौला ने अंग्रेजों से हारने के बाद रहने के लिए बनाया था. 26 जनवरी, 1775 को उनकी मौत के बाद उनकी विधवा बेगम उम्मत जोहरा उर्फ बहू बेगम वहीं रहती थी. अगले नवाब आसफ-उद-दौला ने लखनऊ में अपनी राजधानी बना ली. अब किसी को नहीं मालूम कि वह किला कहां है. स्थापत्य की दृष्टि से खूबसूरत दूसरे स्मारकों में बहू बेगम का मकबरा भी है, जो राज्‍य की सबसे ऊंची इमारत है और लखनऊ के आसफी इमामबाड़ा से सुंदर है.

कई दूसरे स्मारकों की हालत भी जर्जर है, पर नवाबों ने अयोध्या-फैजाबाद में प्यार और परस्पर विश्वास की जो परंपरा कायम की वह सांप्रदायिक राजनीति के विरुद्ध दीवार बनकर खड़ी है.

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