यह जोड़ी कॉलेज के जमाने से ही प्रेम करने लगी थी और शादी के बाद खुशनुमा जिंदगी व्यतीत कर रही लगती थी. वैवाहिक बंधन में बंधने के तीन साल बाद मयूरी (नाम परिवर्तित) का कहना है कि वह रिश्तों की गांठों में उलझ् गई है. यहां तक कि पेशे से वास्तुविद् उसके पति राकेश (नाम परिवर्तित) भी समझ्ते हैं कि दोनों के संबंधों में आमूल-चूल बदलाव आ गया है. मयूरी को लगता है कि राकेश तो ज्यादातर अपने लैपटॉप में उलझ रहता है, लेकिन खुद इस नौजवान ने नौकरी में डेडलाइन के दबावों को अपनी टूटी हुई शादी का सबब बताया. तीस पार के इस दंपती का मानना है कि वे अपने फैसले खुद करने में पर्याप्त रूप से सक्षम हैं. दरअसल, बंगलुरू के चार पारिवारिक न्यायालयों में से एक में तलाक की अर्जी दाखिल करते ही इस जोड़ी ने सेंट मार्क्स रोड पर स्थित कॉफी ज्वाइंट कोशी.ज में जाकर दह्निण भारतीय कॉफी के प्यालों के बीच अपना संबंध विच्छेद उत्सव मनाया. राकेश का कहना था, ''यह आपसी रजामंदी से हुआ संबंध विच्छेद है. हम पति-पत्नी के रूप में सफल नहीं हो सके, पर दोस्त बने रहेंगे.''
भारत की सिलिकॉन वैली में उत्पन्न वैवाहिक समस्याओं के सभी मामलों का ऐसा नफीस अंत नहीं होता. 13 अगस्त को पुलिस ने इन्फोसिस के चोटी के कार्याधिकारी 32 वर्षीय सतीश गुप्ता को अपनी स्कूल शिह्निका 28 वर्षीया पत्नी प्रियंका की हत्या करने पर गिरफ्तार कर लिया. पुलिस के दावे के अनुसार, इस समय जेल में बंद सतीश ने उसे बताया कि प्रियंका के दबाव में अपने माता-पिता से अलग रहने को बाध्य किए जाने के बाद दोनों के बीच गहरे मतभेद हो गए. जब उसने अपनी पत्नी को बताया कि वह तलाक चाहता है तो प्रियंका ने दहेज के लिए सताने के मामले में उसे और उसके माता-पिता को जेल भिजवाने की धमकी दी. उसका कहना था कि तभी उसने निष्ठुर होकर पहले उसका गला घोंटने और फिर रसोई के चाकू से उसे रेतने का फैसला कर लिया.
{mospagebreak}यह मामला भले ही पराकाष्ठापूर्ण लगे, पर इससे उस वैवाहिक तनाव की झलक जरूर मिलती है, जिसका सामना ये महत्वाकांह्नी पेशेवर अपनी अति दबाव वाली नौकरियों में कर रहे हैं. मानो आत्महत्या की राजधानी का ठप्पा ही पर्याप्त नहीं था, अब तो अधिकारी स्वस्थ घरों को चट कर रहे नए वायरस से जूझ्ने के रास्ते तलाशने में लगे हैं. अकेले पिछले दो साल में ही तलाक की कोई 4,000 अर्जियां दायर की गई हैं. पिछले वर्षों के मुकाबले यह लंबी छलांग है. सन् 2004 में यह आंकड़ा 1,200 था, जो 2008 में तीन गुना बढ़ गया और उसमें अभी वृद्धि होती जा रही है. आइटी क्षेत्र और बीपीओ सरीखी आइटी से जुड़ी सेवाएं 20 साल और तीसरे दशक के अंतिम चरण के बीच की आयु के नौजवानों की सबसे बड़ी नियोक्ता हैं. बदतर तो यह है कि किसी तलाक का फैसला होने से पूर्व लंबा इंतजार करना पड़ता है. तलाकशुदा पिताओं को अधिक कानूनी अधिकार दिलाने के लिए आंदोलन कर रहे शेयर दलाल कुमार जहगीरदार बताते हैं कि प्रत्येक मामले का फैसला होने में औसतन 4-5 साल लग जाते हैं. उनका अनुमान है कि शहर की स्थानीय अदालतों में कोई 10,000 मामले लंबित हैं, जिनमें कई तो 2009 से हैं. वे कहते हैं, ''एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत एक वरिष्ठ आइटी कार्याधिकारी का हमारे दफ्तर में फोन आया कि उसकी पत्नी ने अचानक ही उसे छोड़ने का निर्णय कर लिया है. महत्वाकांह्नी पत्नी ज्यादा कमाती थी और उसे अपनी जिंदगी में इस आदमी की जरूरत नहीं लगती थी.''
और लंबित मामलों की संख्या बढ़ रही है. वैवाहिक विवादों से जुड़ी कोई 25-30 अर्जियां रोज दायर होती हैं. बढ़ते बोझ् से निबटने के लिए आने वाले महीनों में अधिक पारिवारिक अदालतें गठित करने की योजना है. तलाक के आंकड़ों से सन्न रह गए कर्नाटक के विधि मंत्री सुरेश कुमार चेन्नै के सांध्य न्यायालयों का अध्ययन करने वहां जा रहे हैं. उनके चलते वहां लंबित मामलों की संख्या कम हुई है. वे कहते हैं, ''लटकते चले आते मामले पहले से ही प्रभावित पक्षों, बुजुर्गों और बच्चों को बहुत नुक्सान पहुंचाते हैं.'' मंत्री महोदय इस समस्या को सुलझने के लिए सप्ताहांत अदालतों के गठन की सोच रहे हैं.
{mospagebreak}सात साल पहले पारिवारिक अदालतों में 300 से कम मामले हुआ करते थे. बंगलुरू के पुलिस आयुक्त शंकर बिदरी प्रायः वैवाहिक सलाहकार की भूमिका निभाते हैं. उनका कहना है, ''पश्चिमी देशों से सीधे आयातित एकल परिवारों की धारणा न सिर्फ धीरे-धीरे हमारे समाज में रच-बस गई है बल्कि बुजुर्गों के प्रति सम्मान और बच्चों की जिंदगी में उनके हस्तक्षेप की भावना भी गायब हो गई है. अच्छी बात है कि ज्यादातर दंपती अपने फैसले खुद लेते हैं, पर सामाजिक उथल-पुथल के दौर में बुजुर्गों या सयाने लोगों की सलाह मददगार होती है. कई बार दोनों पक्षों अपनी बात पर अड़ जाते हैं, जिससे रिश्ता टूट जाता है.''
इन्फोसिस के संस्थापक एन.आर. नारायणमूर्ति की पत्नी सुधा कहती हैं, ''शुरू में ही मूर्ति ने स्पष्ट कर दिया था कि हममें से किसी एक को काम करना होगा और दूसरे को घर चलाना होगा. मैं कोई कम योग्य नहीं थी, पर मुझे खुशी है कि मैंने घर चलाने का फैसला किया. यह पसंद ऐच्छिक थी.'' सुधा योग्यता प्राप्त कंप्यूटर साइंस इंजीनियर हैं और पति के साथ बंगलुरू में बसने के पहले वे पुणे में टाटा वाहन कारखाने में सभी पुरुषों के बीच काम करने वाली अकेली महिला थीं. मर्द और औरत दोनों अच्छा कमाते हों तथा कई बार औरत ज्यादा कमाती हो तो विवाह पर दबाव जल्दी पड़ने शुरू हो जाते हैं और तलाक की नौबत प्रायः जल्दी आ जाती है. दुनिया भर में घूमने वाली एक युवा सॉफ्टवेयर एक्जीक्यूटिव का कहना है कि उसकी शादी इसलिए टूटने के कगार पर है कि वह अपने पति को समय नहीं दे पाती. दोनों बहुत यात्रा करते हैं और किसी एक को काम घटाना चाहिए था. दोनों समझ् नहीं पाए कि कौन ऐसा करे. इसके चलते दोनों पी.बी. अप्पिया सरीखे वकीलों के पास दौड़े जाते हैं, जिनके दोनों हाथों में लड्डू हैं. अप्पिया का कहना है, ''हमें समझ् नहीं आ रहा कि विवादों की बढ़ती संख्या से कैसे निबटा जाए. आज की पीढ़ी को नौकरी, रिश्ते और अमूमन जिंदगी की नई चुनौती का सामना है.''
{mospagebreak}हन्ना सैम्युल सरीखी मनोवैज्ञानिकों को लगता है कि तनाव विवाह के शुरुआती वर्षों में ही घेरने लगते हैं, जब आइटी की नौकरी कर रहे दंपतियों को दो या तीन कैरियरों से जूझ्ने की चुनौती का सामना करने के साथ परिवार और नौकरी के बीच संतुलन बिठाना पड़ता है. ''संवाद का कोई समय नहीं मिलता. उनकी शादी नौकरी के साथ ही हो जाती है. और अंतिम धमाका होने तक खिंचती रहती है.'' बंगलुरू में परिवार कल्याण केंद्र के निदेशक फादर मार्टिन एंथनी विवाह करने जा रहे दंपतियों के लिए विवाह कह्नाएं लगाना अनिवार्य बनाते हैं, जहां उन्हें पैसे और ससुराल का प्रबंधन करने या नौकरी और जिंदगी के बीच संतुलन साधने के बारे में सलाह दी जाती है. बंगलुरू मध्यस्थता केंद्र, जो 2007 से लेकर अब तक तलाक के लगभग 5,000 मामले निबटा चुका है, के निदेशक और जिला न्यायाधीश न्यायमूर्ति के.एन. फणींद्र तलाक के मामले में दंपतियों को कोई पछतावा न होने के कारण बहुत ही नाउम्मीदी जताते हैं.
अपनी बेटी के संरक्षण के लिए (क्रिकेट खिलाड़ी अनिल कुंबले के साथ ब्याही अपनी पहली पत्नी चेतना से) लड़ाई लड़ रहे जहगीरदार तलाक की बढ़ती संख्या का दोषी उस कानून को मानते हैं, जो महिलाओं का पक्षधर लगता है. इसलिए उन्होंने और अन्य 'प्रभावित पिताओं' ने तलाक या संबंध विच्छेद होने से बने एकल अभिभावक परिवारों के कारण बच्चों पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव से निबटने के लिए चिल्ड्रेंस राइट्स इनिशिएटिव फॉर शेयर्ड पेरेंटिंग नामक समूह स्थापित किया है. वे ऐसे पितृसत्तात्मक मानस से जूझ् रहे हैं, जिसके मुताबिक पिता बच्चों को पालने के सक्षम नहीं होते. भारत की सिलिकॉन वैली देश का प्रदर्शनीय क्षेत्र भले ही हो, लेकिन कई लोग नहीं जानते कि उसमें युवा विवाहित तकनीकी विशेषज्ञ किस तरह कॅरियर, डेडलाइनों और सामान्य वैवाहिक जीवन के ऊंचे दबावों से जूझ्ने का प्रयास कर रहे हैं. जाहिर है, उन्हें वैवाहिक वायरस से बचाने के लिए अभी कोई सॉफ्टवेयर नहीं बना है.