'टूट जाता है कलम, हर्फ मगर रहता है, पांव चलते हैं मगर नक्श ठहर जाता है'. शुक्रवार को दिल्ली में हुए 17वें सालाना जश्न-ए-बहार मुशायरे में जिन्होंने ये शेर सुना, उन्हें एक बार
तो अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ क्योकि शेर सुनाने वाला शख्स कोई भारतीय या पाकिस्तानी नहीं, बल्कि चीन के 75 वर्षीय कवि झांग शिग्जुआन थे. झांग ने अपना 'पैन नेम' इंतिखाब
आलम रखा है, जो उनके चीनी नाम का उर्दू अनुवाद है. उर्दू में लिखी मुगलकालीन रामलीला मिली
जुनून बन गई उर्दू
चीनी कवि झांग के लिए उर्दू भाषा नहीं, एक जुनून है. उन्होंने बताया, '1963 की बात है. मैं ग्रेजुएशन के फाइनल ईयर में था. तब मुझे अपनी सरकार की तरफ से उर्दू पढ़ने के लिए कहा
गया क्योंकि चीन भारत और पाकिस्तान के साथ करीबी संबंध बनाना चाहता था. मुझे शुरुआत में बुरा लगा क्योंकि मेरा जुनून पत्रकारिता थी, लेकिन जब मैंने इस भाषा को पढ़ना
शुरू किया तो मुझे इससे प्यार हो गया.'
उर्दू ने कराई शादी
झांग ने बताया कि उन्होंने चार साल तक सात स्टूडेंट के ग्रुप साथ उर्दू पढ़ी. इसी ग्रुप में एक लड़की भी थी, जिससे बाद में झांग ने शादी कर ली. इस ग्रुप ने उर्दू की पढ़ाई बीजिंग
ब्रॉडकास्टिंग इंस्टीट्यूट में की थी, जिसे अब कम्यूनिकेशन यूनिवर्सिटी ऑफ चाइना के नाम से पहचाना जाता है. झांग बाद में चाइना पिक्टोरियल नाम की मासिक पत्रिका के उर्दू एडिशन
के संपादक बन गए. सालाना जश्न-ए-बहार मुशायरे में चार बार शिरकत कर चुके झांग ने कहा, 'जब भाषा पर मेरी पूरी पकड़ बन गई, तो मैंने उर्दू में शेर लिखने शुरू कर दिए. जो चीज
पहले एक मजबूरी की तरह शुरू हुई थी, बाद में वह एक जुनून बन गई और फिर मुझे उर्दू से प्यार हो गया.'
पहली नज्म
झांग ने पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फीकार अली भुट्टो को फांसी पर चढ़ाए जाने से दुखी होकर 1979 में अपनी पहली नज्म लिखी थी.
-इनपुट भाषा से