दिल्ली विधानसभा के नतीजे आ चुके हैं. चर्चाएं उन लोगों की हो रही हैं, जो इस चुनाव में जीतकर आगे आए हैं. सबसे ज्यादा चर्चा नई दिल्ली विधानसभा सीट की रही, जहां दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हार गए. उन्हें शिकस्त देने वाले प्रवेश वर्मा रहे.
लेकिन इस लोकतांत्रिक पर्व में अक्सर जीतने वालों की ही बात होती है. उन उम्मीदवारों का जिक्र शायद ही किया जाता है, जो इस लोकतांत्रिक व्यवस्था पर भरोसा करके चुनावी मैदान में उतरते हैं और जिनकी जमानत तक जब्त हो जाती है. हजारों-लाखों वोटों के मुकाबले वे बमुश्किल दहाई के अंक तक पहुंच पाते हैं. लेकिन उनका हौसला नहीं टूटता और वे दोबारा चुनाव लड़ने की तैयारी में जुट जाते हैं.
ऐसी ही एक सीट थी नई दिल्ली विधानसभा, जहां 23 उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरे. हैरानी की बात यह है कि 9 उम्मीदवार ऐसे थे, जो 20 से ज्यादा वोट भी नहीं पा सके. आजतक ने नई दिल्ली विधानसभा के कुछ ऐसे ही उम्मीदवारों से बात की, जिन्होंने अपना अनुभव साझा किया.
'हमारी पार्टी ने कांग्रेस से ज्यादा केजरीवाल को नुकसान पहुंचाया!'
यह दावा है दिल्ली विधानसभा सीट से मात्र 4 वोट हासिल करने वाले ईश्वर चंद का. वे इस चुनाव में सबसे कम वोट पाने वाले उम्मीदवार रहे.
72 साल के ईश्वर चंद ने नई दिल्ली विधानसभा सीट से भारत राष्ट्र डेमोक्रेटिक पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा था. हालांकि वे मयूर विहार फेज-2 के रहने वाले हैं, लेकिन उन्होंने अरविंद केजरीवाल के खिलाफ नामांकन भरा. दिलचस्प बात यह है कि उनका खुद का वोट पटपड़गंज में रजिस्टर्ड है.
आजतक से बातचीत में ईश्वर चंद ने कहा कि पूरे चुनाव में सिर्फ हमारी पार्टी थी, जिसने अरविंद केजरीवाल को नुकसान पहुंचाने का काम किया. कांग्रेस से भी ज्यादा हमारी पार्टी ने केजरीवाल को नुकसान पहुंचाया.
हालांकि, उन्हें मिले सिर्फ 4 वोटों पर उनकी पार्टी मंथन कर रही है. उन्होंने कहा कि हमारे लोगों ने काफी मेहनत की थी और पूरे विधानसभा में जमकर प्रचार किया था.
'मेरी फैमिली में पांच लोग, पांच वोट मुझे ही मिले'
नई दिल्ली सीट से निर्दलीय लड़े हैदरअली को कुल 9 वोट मिले. जब हमने उनसे बात की तो उन्होंने बताया कि इस बार कैंपेनिंग नहीं हो पाई क्योंकि मेरे घर शादी थी. मैं उसे व्यस्त हो गया. इसलिए वोट नहीं मिल पाए लेकिन हम हारे नहीं है, अगली बार फिर नए जोश से लड़ेंगे. मेरी फैमिली में पांच लोग हैं. शायद वो पांच वोट मुझे ही को गए हैं.
'मुझे बस अरविंद केजरीवाल को हराना था'
उसी तरह मुकेश जैन भी थे, जिन्हें दिल्ली विधानसभा से सिर्फ 8 वोट मिले. उनकी पार्टी का नाम राष्ट्रवादी जनलोक पार्टी है. वे दिल्ली के शाहदरा के वोटर हैं, लेकिन नई दिल्ली विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने की उनकी एकमात्र वजह थी अरविंद केजरीवाल को हराना. उनका कहना है जहां-जहां अरविंद केजरीवाल जैसे लोग चुनाव लड़ेंगे, मैं वहीं उनसे मुकाबला करने खड़ा होऊंगा.
'मुझे आपके वोट नहीं चाहिए'
उनका कहना है कि मुझे फर्क नहीं पड़ता कि मुझे कितने वोट मिले या नहीं, केजरीवाल हार गए, यही मेरे लिए सबसे बड़ी जीत है. चुनावी मैदान में उतरने का मेरा मकसद पूरा हो गया. मेरी पूरी कैंपेनिंग केजरीवाल के खिलाफ थी. मैंने लोगों से साफ कह दिया था कि मुझे आपके वोट नहीं चाहिए, बस आप केजरीवाल को हरा दें.
'9 वोट भी मेरे लिए 9 लाख के बराबर'
वहीं इस सीट से छाये रहे निर्दलीय उम्मीदवार पंकज शर्मा. 2008 में दिल्ली पुलिस की जिस टीम ने बाटला हाउस एनकाउंटर में आतंकियों से लोहा लिया था उसमें वे भी शामिल थे. उनका कहना था कि ये 9 वोट भी मेरे लिए 9 लाख वोट के बराबर हैं. कम वोट मिलने के बाद भी मेरा हौसला नहीं टूटा. मैं फिर उसे जोश से चुनाव लड़ा.
'मैं चुनाव लड़ूंगा और लोगों के मुद्दे उठाता रहूंगा'
संघा नंद बौद्ध ने नई दिल्ली विधानसभा सीट से पूरे जोश के साथ चुनाव लड़ा. वे भीम सेना पार्टी के उम्मीदवार थे और उन्हें कुल 8 वोट मिले. उनका कहना है कि उनके परिवार में 4 लोग हैं, जिनमें से उनके वोट तो उन्हें मिले ही होंगे.
हालांकि कम वोट मिलने से वे निराश नहीं हैं. उनका कहना है कि मुझे जब भी मौका मिलेगा, मैं चुनाव लड़ूंगा और लोगों के मुद्दे उठाता रहूंगा. चुनावी हलफनामे में उन्होंने अपना पेशा सामाजिक कार्यकर्ता बताया है.