शेक्सपियर ने कहा था नाम में क्या रखा है. गुलाब को चाहे जिस नाम से पुकारो गुलाब ही रहेगा. लेकिन अगर वे आज के उत्तर प्रदेश में होते तो उनकी सोच ही बदल जाती, गुलाब की परिभाषा भी बदल जाती और वे मजबूरन कह उठते, नाम में बहुत कुछ रखा है.
मायावती की ही मिसाल लें. लोग उन्हें आदर से 'बहनजी' कहकर पुकारते थे. कुछ उनकी मूर्तियों को देखकर 'देवी' कहने लगे. हाल ही में उनके भक्तों ने उन्हें 'आयरन लेडी' कहना शुरू किया. खबरों के अनुसार, दिल्ली के पार्टी मुख्यालय में उनकी तस्वीर के नीचे लिखा है द आयरन लेडी मायावती.
दरअसल, मारग्रेट थैचर से प्रभावित एक पत्रकार ने मायावती की आत्मकथा का यह शीर्षक रख दिया था. मगर आज उत्तर प्रदेश के बहुत सारे बच्चों को तो मायावती का पूरा नाम भी लिखना नहीं आता. यह न केवल उनकी सरकार की कामयाबियों को उजागर करता है बल्कि प्रदेश की प्राइमरी शिक्षा व्यवस्था के असली चेहरे को भी सामने लाता है.
हाल ही में एएसईआर नामक एक एनजीओ ने लखनऊ के पास जोअर गांव में सरकारी स्कूल की कक्षा 3 और 4 के बच्चों से मुख्यमंत्री का नाम हिंदी में लिखने को कहा. कुछ ने लिखा, 'मावित' और कुछ ने लिखा 'मावती'. कुछ तो केवल 'मा...' ही लिख सके.
यह अलग बात है कि जिस गांव में एनजीओ बच्चों का टेस्ट ले रहा था, वहां झेपड़ियों की दीवारों पर भी मुख्यमंत्री के पोस्टर लगे हुए थे. यह गांव पिछड़ी जाति के किसानों का गांव है और लोग मायावती के नाम की चर्चा भी हरदम करते हैं. बच्चे भी उनका नाम सुनते, जानते और चेहरे को पहचानते हैं. मगर स्कूल में कोई पढ़ना-लिखना सिखाए तब न.{mospagebreak}
एनजीओ के अनुसार, कई बच्चे अपने राज्य का नाम भी नहीं जानते थे. एएसईआर के अनुसार ''स्थिति दयनीय है. जिन 32 स्कूलों में हम गए, उनमें से केवल छह में कक्षाएं चल रही थीं, बाकी स्कूलों में शिक्षक बच्चों को नहीं पढ़ा रहे थे जबकि उनमें अच्छी-खासी व्यवस्था थी, अनुदान भी मिल रहा था और मध्याक्ष भोजन की व्यवस्था भी चालू थी.''
उत्तर प्रदेश की साक्षरता आज भी 56 प्रतिशत है (राष्ट्रीय औसत 65 प्रतिशत है). गत वर्ष एएसईआर के सर्वेक्षण के अनुसार, कक्षा 3 के 31 प्रतिशत बच्चे ऐसे थे जो कक्षा 1 की किताबों को पढ़ सकते थे. बिहार और राजस्थान में यह आंकड़ा क्रमशः 43.7 प्रतिशत और 34.4 प्रतिशत था.
सर्वेक्षण के अनुसार, उत्तर प्रदेश में कक्षा 5 के केवल 14 प्रतिशत छात्र अंग्रेजी में पूरा वाक्य पढ़ सकते थे (इसके मुकाबले बिहार में यह प्रतिशत 31.3 है). इसलिए मुख्यमंत्री को आयरन लेडी बनाकर उनकी कामयाबी की चर्चा करने से पहले बच्चों को उनका सही और पूरा नाम लिखना ही सिखा दें ताकि वे आयरन लेडी कह सकें, समझ सकें और लिख भी सकें. शायर मुनव्वर राणा ने कहा था, दूध की नहर मुझ से नहीं निकलने वाली, नाम चाहे मेरा फरहाद भी रखा जाए.