पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के तौर पर यूसुफ रजा गिलानी सेना के सामने तनकर खड़े रहे और न्यायपालिका के सामने भी संवैधानिक हितों के पक्ष में खड़ा होने का हवाला देकर आवाज भी बुलंद की.
वर्ष 2008 में लोकतंत्र की वापसी के साथ गिलानी प्रधानमंत्री बने. उस वक्त बहुत कम जानकारों ने उनकी इस पारी के इतना बड़ा होने की उम्मीद की थी.
भुट्टो परिवार के प्रति वफादार गिलानी ने अपने कार्यकाल में गजब का संयम और प्रतिबद्धता दिखाई. कई मौके ऐसे आए, जब वह अकेले पड़ते नजर आए लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों को खोलने का आदेश दिया तो उन्होंने इसे मानने से इंकार कर दिया.
उन्होंने मार्च, 2008 में पाकिस्तान के 17वें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली थी. उनके प्रधानमंत्री बनने के कुछ महीने बाद ही मुंबई हमला हुआ और भारत के साथ रिश्तों में ठहराव आ गया. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ अच्छा रिश्ता कायम रखने वाले गिलानी ने भारत और पाकिस्तान के बीच वार्ता को फिर से पटरी पर लाने के लिए प्रयास किया और उन्हें कामयाबी भी मिली.
गिलानी का जन्म कराची के जमींदार परिवार में हुआ था. पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाले गिलानी ने 1978 में जनरल जियाउल हक के शासनकाल के समय सियासत की दुनिया में कदम रखा. उनके वालिद मखदूम अलमदार हुसैन गिलानी भी राजनीति में थे. वह पहले पाकिस्तान मुस्लिम लीग के साथ जुड़े और 1985 में संसद के लिए चुने गए. इसके बाद वह आवासीय एवं निर्माण मामलों के मंत्री तथा फिर रेल मंत्री बने.
पीएमएल के साथ मतभेद के कारण वह पीपीपी के साथ हो लिए. धीरे-धीरे वह बेनजीर भुट्टो के वफादारों में गिने जाने लगे. वह तीन बार संसद के लिए चुने गए और नेशनल असंबली के स्पीकर भी रहे.
परवेज मुशर्रफ के शासनकाल में गिलानी को पांच साल जेल में भी बिताने पड़े. उन्हें 1993-97 तक स्पीकर रहते पद का दुरुपयोग करने के मामले में कसूरवार ठहराया गया था.
हाल ही में पाकिस्तानी सेना प्रमुख अशफाक परवेज कयानी के सामने तनिक भी नहीं झुकते हुए मेमोगेट मामले में रक्षा सचिव खालिद नईम लोदी को बर्खास्त कर दिया. उन्होंने स्पष्ट किया कि सेना और खुफिया एजेंसिया किसी भी सूरत में सरकार को दरकिनार नहीं कर सकतीं.