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मणिशंकर अय्यर को गुस्सा क्यों आया...

मणिशंकर अय्यर से दो लफ्ज बोलने के लिए कहिए, तो वे कहेंगे कि उन्हें सिर्फ गला साफ करने के लिए ही 500 अल्फाज चाहिए. पर बड़बोले मणि का सौभाग्य है कि उनके अल्फाज और उनके लहजे, दोनों की ही खूब मांग है.

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मणिशंकर अय्यर से दो लफ्ज बोलने के लिए कहिए, तो वे कहेंगे कि उन्हें सिर्फ गला साफ करने के लिए ही 500 अल्फाज चाहिए. पर बड़बोले मणि का सौभाग्य है कि उनके अल्फाज और उनके लहजे, दोनों की ही खूब मांग है.

जबसे राष्ट्रपति ने उन्हें राज्‍यसभा के लिए मनोनीत करके राजनीतिक रूप से नया जीवनदान दिया है, अय्यर हर फटे में टांग अड़ाते दिख रहे हैं. कभी वे भारत-पाकिस्तान वार्ता की प्रशंसा कर रहे होते हैं तो कभी खाद्य सुरक्षा अधिनियम का गुणगान करते हैं, कभी कांग्रेस की धर्मनिपेक्षता की पहचान का बचाव करते हैं, तो कभी यूपीए सरकार की नक्सल नीति पर और कभी 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों पर हो रही फिजूलखर्ची पर हमला बोलते हैं. और अक्सर वे सामयिक राजनीतिक बहस में हावी ही रहते हैं.

वे कहते हैं, 'मैं यह स्पष्ट कर दूं कि यह मेरी निजी राय है. मैं निश्चय ही पार्टी का प्रवक्ता नहीं हूं, हालांकि कई बार मुझे लगता है कि यह मेरी अंतरात्मा की आवाज है. 'अय्यर कभी एक पूर्व प्रधानमंत्री के लिए शब्दों और नीतियों को गढ़ा करते थे, पर यह तब की बात है.

चौदह माह पहले अय्यर लोकसभा चुनाव हार गए थे और अपने से कनिष्ठ नेताओं को मंत्री पद पर काबिज होते देख उन्हें कोफ्त हुई थी. हालांकि यूपीए के पहले कार्यकाल के बेहद सम्माननीय पेट्रोलियम मंत्री अय्यर अब फिर से सांसद बन चुके हैं, लेकिन मंत्रिमंडल में अपनी वापसी को लेकर आशंकित हैं.

{mospagebreak}दस्तूर के मुताबिक, राष्ट्रपति द्वारामनोनीत सदस्य अमूमन केंद्रीय मंत्रिपरिषद में जगह नहीं पाते, हालांकि कुछ अपवाद भी हैं. 1971 में इंदिरा गांधी ने नूर-उल-हसन को शिक्षा मंत्री बनाया था, जबकि उन्हें राष्ट्रपति भवन ने मनोनीत किया था. अय्यर कहते हैं, ''मुझे मनोनीत करके वापस लाने से निश्चय ही उन लोगों को तसल्ली मिलती है जो लोग मुझे मंत्रिपरिषद में नहीं देखना चाहते थे.

पार्टी में मैं किसी पद पर नहीं बल्कि असल में मैं खुद को किसी भी तरह से शासन में शामिल नहीं पाता हूं और इससे मुझ्में ऐसा अकेला और बाहरी व्यक्ति होने का एहसास होता है जिसे कांग्रेस अध्यक्ष का सम्मान और स्नेह प्राप्त है.

वे ही मुझे पिछले लोकसभा चुनाव में मेरी हार के बावजूद, साल भर के भीतर संसद में वापस ले आईं.'' वे फिर से चर्चा में आ जरूर चुके हैं लेकिन चर्चा का केंद्रबिंदु बनने से अभी बहुत दूर हैं. और ऐसे व्यक्ति के लिए, जो नेहरू-गांधी परिवार का वफादार रहा है, उसके लिए अपने अस्तित्व का औचित्य सिद्ध करना, निश्चय ही तकलीफदेह है.

पुनर्वास पाने के लिए अय्यर मनमोहन सिंह के मंत्रिमंडल में जगह नहीं पाना चाहते बल्कि वे तो सोनिया गांधी के थिंक टैंक यानी राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) का हिस्सा बनना चाहते हैं. वे कहते हैं, ''आज की अकेली सबसे महत्वपूर्ण संस्था कैबिनेट नहीं बल्कि एनएसी है और इससे जुड़े न होने की बात मुझे बहुत सालती है.''

{mospagebreak}एनएसी का एजेंडा अय्यर के समाजवादी ब्रांड से खासा मेल खाता है, चाहे वह मनरव्गा की राशि के वितरण के लिए पंचायती राज प्रणाली का इस्तेमाल करना हो या फिर खाद्य सुरक्षा अधिनियम का विस्तार हो. हालांकि सोनिया संकेत दे चुकी हैं कि वे किसी राजनेता को एनएसी में ला सकती हैं, लेकिन लगता है कि यह जगह सोनिया के साथ सतत संपर्क में रहने वाले करीबी जयराम रमेश को मिल सकती है, जिन्हें कई बार उनके मंत्रिमंडल के साथी 'गरीब आदमी के मणि' कहकर संबोधित करते हैं.

मंत्रिमंडल से बाहर होने के बावजूद अय्यर आम आदमी की आवाज के रूप में अपनी अलग पहचान बनाने में सफल हुए हैं. और यही वह आवाज है जो सोनिया गांधी के नेक इरादों को सहज रूप से राजीव गांधी की नीतियों से जोड़ती है. अय्यर को कांग्रेस में सक्रिय नेहरूवादी विचारधारा का अंतिम समाजशास्त्री कहना गलत नहीं होगा. उनके पास आज भी नेहरू शताब्दी वर्ष की वह घड़ी है, जो उन्हें राजीव ने भेंट में दी थी और कहा था, ''आप हमेशा उनके बारे में सोचते रहते हैं, इसलिए अब आप हर समय उन्हें देख सकेंगे.'' पी.वी. नरसिंह राव के दौर को छोड़ दें तो दून स्कूल के हंसी-ठट्ठे के अलावा भी उनमें कुछ तो ऐसी बात है जिसके जरिए अय्यर अतीत को वर्तमान से जोड़ सकते हैं. लेकिन परिवार को अय्यर से अच्छा जी-हजूरी करने वाला और कौन मिल सकता था.
{mospagebreak}यह सोच कर आश्चर्य होता है कि पारिवारिक घड़ी के इस धारक को आखिर उपेक्षित क्यों छोड़ दिया गया है. वे कहते हैं, ''मैं कुछ और समय तक इंतजार कर सकता हूं, लेकिन उम्र 70 के लगभग हो जाने के कारण समय बहुत ही कम बचा है.'' लेकिन पीछे मुड़कर देखने पर, जिसके लिए उनके पास निश्चय ही खासा समय है, वे दावा करते हैं कि वे ऐन उस मौके की पहचान कर सकते हैं ''जब मैंने मन की कह डाली थी.'' बात अप्रैल, 2007 की है, जब वे सीआइआइ की छोटी-सी अनुभागीय बैठक को संबोधित कर रहे थे. बहुत कम लोगों को जानकारी थी कि बैठक की रिकॉर्डिंग हो रही है. उस वक्त अय्यर ने मनमोहन की विकास गाथा को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह समग्र नहीं है और इसका लाभ महज 0.2 फीसदी लोगों तक ही पहुंचा है. इसी दौरान उन्होंने अपनी यह सबसे मशहूर टिप्पणी की, ''मैं हमेशा से वामपंथी रहा हूं, लेकिन आर्थिक सुधारों के बाद पूरी तरह से मार्क्सवादी बन गया.'' उस वक्त वे कैबिनेट मंत्री थे. इस टिप्पणी से खुश भाजपा के यशवंत सिन्हा ने संसद में पूछा था कि अय्यर सरकार की ओर से बोल रहे हैं या फिर विपक्ष की ओर से.
उनको मिले सीमित पुनर्जीवन के बावजूद बड़बोलेपन के कारण उनकी अहमियत जस-की-तस है. उनके कांग्रेसी साथी जहां राष्ट्रमंडल खेलों को सफल बनाने के लिए प्रयासरत हैं, वहीं बातूनी अय्यर हर तरह की आपदा की कल्पना कर रहे हैं. अय्यर कहते हैं, ''मैं बहुत खुश हूं कि बरसात हो रही है, क्योंकि इससे देश में खेती अच्छी होगी और राष्ट्रमंडल खेल खराब हो जाएंगे. ये खेल सफल हो जाते हैं तो मुझे दुख होगा क्योंकि ऐसा होने पर एशियाई खेल और ओलंपिक खेल यहां करवाने की कवायदें शुरू हो जाएंगी.'' अय्यर के इस बड़बोलेपन से पार्टी का कोई सरोकार नहीं है, यह कांग्रेस प्रवक्ता ने साफ कर दिया. अय्यर ने अपनी टिप्पणी पर कोई पछतावा नहीं जताया बल्कि कहा कि वे तो महज फिजूलखर्ची की चर्चा कर रहे थे.
उनके आक्रामक मूल्य का यदि ठीक से दोहन किया जाए तो कांग्रेस को फायदा हो सकता है क्योंकि वे मीडिया के लिए ठीक बयान देने के उस्ताद हैं. पूर्व कूटनीतिज्ञ अय्यर मध्यवर्ग के कुछ भलेमानस मतदाताओं को आकर्षित करते हैं. धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद के प्रति उनकी प्रतिबद्धताएं स्पष्ट रूप से सीधे कांग्रेस के घोषणा-पत्र से निकली हैं. संसद में पहले भाषण से ही उन्होंने साफ कर दिया था कि वे पूरे कांग्रेसी बने रहेंगे. वे कहते हैं, ''अफसोस है कि संसद के नियमों से बंधा होने से मैं भाजपा के प्रति अपशब्द का इस्तेमाल नहीं कर सकता.'' वे उस समय को याद करते हैं जब उन्होंने भाजपा के नेताओं को सदन में ही 'फासीवादी' कहा था. नियमों का उल्लंघन करने वाले इस शब्द का प्रहार बहुत तीखा हुआ था.
संसद भले ही उनका मुंह बंद करे, उनकी पार्टी भले ही उनकी उपेक्षा करे, पर इस शब्दवीर को कोई रोक नहीं सकता. देखा जाए तो अय्यर ने अभी महज अपना गला ही साफ किया है.

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