हरिद्वार से कांग्रेस पार्टी के सांसद और केंद्रीय श्रम और रोजगार राज्यमंत्री हरीश रावत के पुत्र आनंद सिंह रावत जब इस वर्ष 16 मई को युवक कांग्रेस (युकां) की उत्तराखंड इकाई के अध्यक्ष चुने गए, तब यह बात एक बार फिर स्पष्ट हो गई कि कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी की सरपरस्ती में चलने वाला यह संगठन अपनी ही सलाह को अमल में लाने में विफल रहा है.
हालांकि राहुल ने सितंबर, 2007 में कार्यभार संभालने के बाद से कांग्रेस की युवा इकाई से 'परिवारवाद, संरक्षणवाद और धनबल' को समाप्त करने का अपना सपना किसी से नहीं छिपाया. लेकिन उनकी निगरानी में पंजाब में दिसंबर, 2008 में युकां के पहले चुनाव में ही विभिन्न पदों पर ऐसे उम्मीदवार चुने गए जिनके रिश्तेदार जाने-पहचाने थे या जिनके ऊपर वरिष्ठ नेताओं की कृपा थी.
वास्तव में जिन 17 राज्यों/इकाइयों में युकां के पदाधिकारी चुने गए, उनमें से आठ कांग्रेस नेताओं के रिश्तेदार थे जो अलग-अलग पदों पर बैठे हैं. युकां की बाकी नौ इकाइयों में से पांच पदाधिकारियों को वरिष्ठ नेताओं का समर्थन प्राप्त है.
रावत के अलावा जिन दूसरों ने अपने परिवार के नाम का पूरा उपयोग किया उनमें पंजाब के दिवंगत मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के पोते रवनीत सिंह बिट्टू का नाम भी शामिल है, जो इस समय युकां की पंजाब इकाई के अध्यक्ष हैं. कहा जाता है बिट्टू को पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह का समर्थन प्राप्त है.
पश्चिम बंगाल में मालदा उत्तर से सांसद और दिवंगत केंद्रीय मंत्री ए.बी.ए. गनी खान चौधरी की भतीजी मौसम बेन.जीर नूर युकां की प्रमुख हैं. इसी तरह हरियाणा के वित्त मंत्री अजय सिंह यादव के पुत्र चिरंजीव राव युकां की हरियाणा इकाई के अध्यक्ष हैं. और तो और, युकां के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव साटव के परिवार का कांग्रेस से रिश्ता है. वे महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री रजनी साटव के पुत्र हैं.
इन जानी-पहचानी हस्तियों के अलावा राजस्थान युकां में राजनैतिक परिवार से तीन महासचिव और एक उपाध्यक्ष हैं. इसी तरह झारखंड युकां में उपाध्यक्ष और महासचिव राज्य के वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं के पुत्र हैं, जबकि भारतीय युवक कांग्रेस की राष्ट्रीय समिति की सचिव दीपिका पांडे सिंह झारखंड से कांग्रेस पार्टी की नेता प्रतिभा पांडे की बेटी हैं.
युवक कांग्रेस कार्यकर्ताओं के एक वर्ग का कहना है कि परिवारिक संपर्क होना जरूरी है. युकां के एक नेता ने कहा, ''नेहरू-गांधी वंश के युवराज राहुल गांधी के बारे में कहा जा रहा है कि वे अपने पिता, दादी और परनाना के पदचिह्नों पर चलते हुए प्रधानमंत्री का पद संभालेंगे. दूसरे अन्य नेताओं के बच्चों को भी उनसे प्रेरित होने से रोका नहीं जा सकता.''
युवक कांग्रेस इकाइयों में, जहां पदाधिकारियों को चुनने में परिवारवाद ने कोई भूमिका नहीं निभाई, वहां राजनैतिक संरक्षण दिखाई दिया. मध्य प्रदेश युकां के अध्यक्ष प्रियव्रत सिंह कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह के समर्थक कहे जाते हैं, जबकि झारखंड युकां के अध्यक्ष मानस सिन्हा के लिए कहा जाता हे कि उन पर केंद्रीय पर्यटन मंत्री सुबोधकांत सहाय की कृपा है.
राजनैतिक नियुक्तियों की सूची का कोई अंत नहीं दिखाई देता. देश भर में युकां के प्रमुख पदों को कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के परिवार के सदस्यों या उनके वफादारों ने हथिया रखा है. हालांकि इस तरह के संरक्षणवाद को बढ़ावा देने वाली व्यवस्था से छुटकारा पाना मुश्किल है, लेकिन टीम राहुल की युवा इकाई वंशवादी नियंत्रण को रोक पाने में असफल रही है. इंडिया टुडे के साथ बातचीत में साटव ने यद्यपि जोर देकर कहा कि युकां अपने कैडर का 95 प्रतिशत गैर-राजनैतिक परिवारों से खड़ा करता है.
युकां कार्यकर्ताओं का एक वर्ग युवा इकाई में संरक्षणवाद जारी रखने के लिए निर्वाचक मंडल मॉडल को दोषी ठहराता है. उसका आरोप है कि निर्वाचक मंडल के प्रतिनिधियों को, जो युकां संस्थाओं के सदस्य हैं, 'प्रायोजित' किया जाता हैं. इन संस्थाओं को अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और महासचिव का चुनाव करने के लिए प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में स्थापित किया गया है.
युकां के एक सदस्य ने कहा, ''इन प्रतिनिधियों को नामांकन फीस के रूप में अच्छी खासी रकम देनी पड़ती है. चूंकि सभी प्रतिनिधियों से इतनी बड़ी राशि मिल जाती है कि पदाधिकारी बनने की इच्छा रखने वाला कोई भी व्यक्ति, जिसकी जेब भारी होती है, इन्हें प्रायोजित करने के लिए तैयार हो जाता है. इससे पता चलता है कि चुनाव में धन-बल की कितनी बड़ी भूमिका है.''
राहुल के नेतृत्व में युवक कांग्रेस को संदिग्ध छवि वाले युवाओं से पीछा छुड़ाने के लिए भी संघर्ष करना पड़ा है. युवक कांग्रेस की वेबसाइट के अनुसार उन लोगों को कुछ शर्तों के साथ सदस्यता देने की पेशकश की जाती है जिनकी प्रतिष्ठा में कोई आंच नहीं आई है और जिन्हें अपराधी नहीं ठहराया गया है.
हालांकि युकां के बहुत से सदस्यों का दोष साबित नहीं हो सका लेकिन अपने पिछले रिकॉर्ड के कारण वे 'अच्छी छवि' की परीक्षा पास नहीं कर पाए. दिसंबर 2010 में बिहार युकां नेता मयंक कुमार उर्फ मुन्ना को अपने मित्र रोहित की हत्या के सिलसिले में गिरफ्तार कर लिया गया था. युकां के एक अन्य नेता को सीतामढ़ी में हथियार कानून के अंतर्गत गिरफ्तार किया गया.
बिहार युकां के उपाध्यक्ष कुमार आशीष को इंटरमीडिएट की परीक्षा में गणित का पर्चा लीक करने के आरोप में 2005 में गिरफ्तार कर लिया गया. कहा जाता है कि उन्हें एक पूर्व केंद्रीय मंत्री का समर्थन प्राप्त था. अन्य राज्यों में भी युकां के नेताओं की छवि को लेकर सवाल उठाए गए.
चाहे युवक कांग्रेस एक बार फिर राजनीति में सक्रिय हो गई हो लेकिन अभी भी इसमें दम नहीं नजर आता है. तमिलनाडु और उससे पहले बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों ने दिखा दिया कि हकीकत में बहुत कुछ नहीं बदला है. इन दोनों राज्यों में राहुल गांधी ने काफी समय बिताया.
हालांकि राहुल के भर्ती अभियान के कारण तमिलनाडु में इनकी सदस्य संख्या 12.92 लाख तक पहुंच गई लेकिन कांग्रेस केवल पांच सीटों पर ही चुनाव जीत पाई. युकां के सभी उम्मीदवारों को धूल चाटनी पड़ी. बिहार में जहां इसकी सदस्य संख्या 3.48 लाख है, विधानसभा में कांग्रेस केवल चार सीटों पर ही विजय हासिल कर पाई. कांग्रेस को 24.30 लाख वोट ही मिले, जो कुल मतदान का 8.38 प्रतिशत है. इसका मतलब है कि युकां का प्रत्येक सदस्य पार्टी के लिए सात वोट भी नहीं जुटा पाया.
तमिलनाडु में तो स्थिति और खराब हो गई जहां कांग्रेस के पक्ष में 34,26,432 वोट या कुल वोट का 9.3 प्रतिशत ही मिला. वहां कांग्रेस ने 63 सीटों पर चुनाव लड़ा था. इसका मतलब यह हुआ कि कि युकां के 12.92 लाख सदस्यों में से प्रत्येक तीन वोट का भी इंतजाम नहीं कर पाया.
बेशक चारों तरफ राहुल की चर्चा हो रही हो लेकिन कांग्रेस मशीनरी युवा पीढ़ी की उत्सुकता के बूते अपना आधार बढ़ाने में नाकाम रही है. साटव हालांकि इस बात को खारिज करते हैं कि युकां ने राज्यों के चुनावों में कोई भूमिका नहीं निभाई. वे कहते हैं कि असम में चुनाव लड़ने वाले ''युकां के 12 में से 11 कार्यकर्ताओं ने चुनाव जीता. केरल और पश्चिम बंगाल में भी युकां का प्रदर्शन अच्छा रहा.''
वंश परंपरा के बच्चे युवक कांग्रेस की आठ इकाइयों में कांग्रेस नेताओं और पदाधिकारियों के रिश्तेदार हैं.
रवनीत सिंह बिट्टू
अध्यक्ष, पंजाब
दिवंगत मुख्यमंत्री बेअंत सिंह उनके दादा हैं और पूर्व मंत्री तेज प्रकाश सिंह उनके चाचा हैं. उन्हें पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह का समर्थन प्राप्त है.
आनंद सिंह रावत,
अध्यक्ष, उत्तराखंड
हरिद्वार से कांग्रेस के सांसद और केंद्रीय श्रम और रोजगार राज्यमंत्री हरीश रावत के पुत्र, मई से पहले वे उत्तराखंड में सक्रिय नहीं रहे.
अतिरेक कुमार,
महासचिव, बिहार
इंदिरा गांधी मंत्रिमंडल में मंत्री बालेश्वर राम के पौत्र, अतिरेक को जब युकां का पदाधिकारी बनाया गया उस वक्त उनके पिता अशोक कुमार कांग्रेस विधायक दल के नेता थे.
चिरंजीव राव,
अध्यक्ष, हरियाणा
राव अभय सिंह के पौत्र और वरिष्ठ कांग्रेस नेता और हरियाणा के कैबिनेट मंत्री अजय सिंह यादव के पुत्र,
मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा के आलोचक.
मौसम बेनजीर नूर,
अध्यक्ष, पश्चिम बंगाल
दिवंगत केंद्रीय मंत्री ए.बी.ए. गनी खान चौधरी की भतीजी. वे कांग्रेस की सांसद भी हैं. पश्चिम बंगाल युवक कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष.
अनूप सिंह,
उपाध्यक्ष, झारखंड
विपक्ष के नेता राजेंद्र सिंह के पुत्र, वे इंडियन नेशनल ट्रेड कांग्रेस में भी सक्रिय हैं, उनके पिता इसके महासचिव हैं.
इंद्रविजय सिंह गोहिल,
अध्यक्ष, गुजरात
उनके चाचा दिलीप सिंह गोहिल कांग्रेस के विधायक रह चुके हैं. नरेंद्र मोदी सरकार को रोकने के लिए उन्हें लाया गया लेकिन वे बहुत प्रभाव नहीं डाल सके.
राजपाल शर्मा,
उपाध्यक्ष, राजस्थान
अशोक गहलोत सरकार में राज्यमंत्री राजकुमार शर्मा के छोटे भाई. वे 2004 में राजस्थान विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष थे.
बी.एस. शेखावत,
महासचिव, राजस्थान
राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष दीपेंद्र सिंह शेखावत के बेटे. उन्होंने अपने पिता के लिए प्रचार किया लेकिन यह पहला मौका है कि उन्होंने पार्टी संगठन में पद संभाला है.