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राम लला की पूजा के लिए कभी मिलते थे 20 हजार, भोग, श्रृंगार और वस्त्र के सालाना खर्च का करना होता था इंतजाम

राम लाला के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास ने बताया कि सी जमाने में भगवान राम के श्रृंगार और वस्त्र के साथ-साथ भोग-प्रसाद के लिए 20 हजार रुपए ही मिलते थे. इतने पैसों में ही साल भर पूजा-अर्चना से लेकर भोग-प्रसाद तक सभी खर्च चलाना पड़ता था.

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Acharya satyendra das (File Photo)
Acharya satyendra das (File Photo)

अयोध्या में राम लला की प्राण प्रतिष्ठा जल्द (22 जनवरी) होने वाली है. इससे पहले आज तक ने राम लला के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास से बातचीत की. उन्होंने यह भी बताया कि किसी जमाने में भगवान राम के श्रृंगार और वस्त्र के साथ-साथ भोग-प्रसाद के लिए 20 हजार रुपए ही मिलते थे.

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उन्होंने आगे बताया,'उस समय कष्ठ पहुंचता था, जब बरसात में पानी की बूंदे भगवान के ऊपर पड़ती थीं. हमारे पास तब कोई उपाय नहीं था कि हम उसे रोक सकें. इसके अलावा काफी गर्मी होती थी, एक पंखे के अलावा कुछ नहीं था. हम वहां एसी या कूलर लगाना चाहते थे, लेकिन हम चाहकर भी कुछ नहीं कर पाते थे.

वह समय बहुत कठिन रहा

जब ऋषियों से बात कहते थे तो जवाब मिलता था कि कोर्ट के बिना नहीं कर सकते. कोर्ट जाना पड़ेगा. जो कोई भी नई चीज होती थी तो विपक्षी भी तुरंत विरोध करने कोर्ट पहुंच जाते थे. इसलिए वह समय बहुत कठिन रहा, वो तो भगवान की ही कृपा से समय बीत गया.

7 वस्त्र चलाने पड़ते थे साल भर

भगवान के वस्त्रों के बारे में बात करते हुए आचार्य सत्येंद्र ने बताया कि सात प्रकार के वस्त्र एक ही बार बनते थे, जिन्हें अलग-अलग दिनों के हिसाब से बदला जाता था. लेकिन वही वस्त्र पूरे साल रहते थे. चैत्र नवरात्रि के समय वस्त्र बनते थे. उतने ही पैसे मिलते थे कि 7 वस्त्र बन सकें और साल भर तक चलाए जा सकें.

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तिरपाल फटने पर जाते थे कोर्ट

आचार्य सत्येंद्र दास ने आगे बताया,'सोमवार को सफेद रंग का वस्त्र पहनाया जाता था, मंगलवार को गुलाबी, बुधवार को हरा, बृहस्पतिवार को पीला, रविवार को लाल और शनिवार को नीले रंग का वस्त्र पहनाया जाता था. हम मांग करते थे कि 25 हजार रुपए दिए जाएं तो 20 हजार ही मिलते थे. यानी जितनी मांग करते थे, उतना कभी नहीं मिला. बड़ी मुश्किल से अंतिम समय जो ऋषिवर थे. उन्होंने बढ़ाकर राम लला का बजट 30 हजार रुपए किया. इन पैसों को पूजा-अर्चना, भोग, श्रृंगार, चंदन और इत्र में खर्च किया जाता था. हालांकि, जब तिरपाल फट जाती थी, तब कोर्ट ही जाना पड़ता था.'

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