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आदिवासी वोट बैंक साधने की जुगत में अखिलेश, रानी दुर्गावती के जरिए लगाएंगे MP और लोकसभा चुनाव पर निशाना

समाजवादी पार्टी (SP) के प्रमुख अखिलेश यादव अब आदिवासी वोट बैंक साधने की जुगत में लगे हुए हैं. वह 24 जून को मध्य प्रदेश सीमा में आने वाले चित्रकूट दौरे पर हैं, जहां वह एक तीर से दो निशाने साधने के साथ आदिवासी समाज को एमपी चुनाव और लोक सभा चुनाव दोनो में ही अपनी तरफ करने के प्रयास में हैं.

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अखिलेश यादव (फाइल फोटो)
अखिलेश यादव (फाइल फोटो)

समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव इन दिनों उत्तर प्रदेश की राजनीति में नई राजनीतिक इबारत लिखने की कवायद में जुटे हैं. अखिलेश 'कहीं पर निगाहें, कहीं पर निशाना' कहावत को चरितार्थ करते नजर आ रहे हैं. वह 24 जून को मध्य प्रदेश सीमा में आने वाले चित्रकूट दौरे पर हैं, जहां वह एक तीर से दो निशाने साधने के साथ आदिवासी समाज को एमपी चुनाव और लोक सभा चुनाव दोनो में ही अपनी तरफ करने के प्रयास में हैं.

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अखिलेश यादव 24 जून को बड़ा देव मंदिर, बरौधा, चित्रकूट में आदिवासी समाज की ओर से गोंड रानी वीरांगना दुर्गावती के बलिदान दिवस पर होने वाले समारोह में शामिल होंगे. हाल ही में समाजवादी जनजाति प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष व्यासजी गोंड के साथ आदिवासी गोंड समाज के प्रतिनिधि मंडल ने अखिलेश से भेंट की थी. अखिलेश ने प्रतिनिधिमंडल को भरोसा भी दिया है कि समाजवादी सरकार बनने पर वीरांगना रानी दुर्गावती की प्रतिमा लखनऊ में गोमती रिवर फ्रंट पर लगाई जाएगी.

अखिलेश यादव वीरांगना की मूर्ति अनावरण के जरिए एमपी चुनाव का भी शंखनाद करना चाहते हैं और साथ ही साथ आदिवासी समाज के बुंदेलखंड में फैले वोट बैंक को भी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर इस्तेमाल करना चाहते हैं. ऐसा नहीं है कि सिर्फ अखिलेश की ही गोंड समाज के वोट बैंक पर नजर है. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने भी इस हफ्ते एमपी के चित्रकूट में नर्मदा पूजन के बाद आदिवासी  वोटर्स को साधने के लिए गोंड रानी वीरांगना दुर्गावती की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया था. भंवरताल पार्क में लगी दुर्गावती की आदमकद प्रतिमा पर माल्यार्पण करते हुए उन्होंने आदिवासी समुदाय के लोगों से मुलाकात की थी. आदिवासी समुदाय के लोगों ने प्रियंका गांधी को प्रतीक चिन्ह भेंट कर उनका स्वागत किया था.

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यही नहीं, पिछले महीने चित्रकूट में ही आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने भी दुर्गावती की मूर्ति का अनावरण किया था. इस अवसर पर उपस्थित हजारों की भीड़ को संबोधित करते हुए संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था कि रानी दुर्गावती हमारी पूज्य हैं और हमारे लिए देवी जैसी हैं. रानी दुर्गावती का स्मरण करते समय उनका स्वाभिमानी पावन चरित्र,अतुलनीय शौर्य, देशभक्ति, हरहाल में हर परिस्थिति का सामना करने की क्षमता किसी की शरण में न जाना और उनके जीवन की तमाम अन्य बाते हमारे लिए अनुकरणीय है.

लोक सभा चुनाव से पहले मूर्ति पॉलिटिक्स!

ऐसा नहीं है कि अखिलेश पहली बार मूर्ति पॉलिटिक्स कर वोट बैंक साधने का प्रयास कर रहे हैं. पहले भी अखिलेश परशुराम की मूर्ति के जरिए ब्राह्मण और कांशीराम की मूर्ति के जरिए बसपा का कोर दलित वोट साधने का प्रयास कर चुके हैं. हालांकि, सपा के हाथ निराशा ही लगी है, वोट में जरूर इजाफा हुआ है, लेकिन सरकार बनाने में नाकामी ही हाथ लगी है.

छिटकता मुस्लिम वोट बैंक?

मूर्ति पॉलिटिक्स के बीच में अखिलेश यादव जब हार्ड हिंदुत्व का भी सुर छेड़ देते हैं, तब मुस्लिम वोट बैंक छिटकता सा दिखता है. निकाय चुनाव के आंकड़े खासकर मेरठ इसका साफ नमूना है. सबसे बड़ा चैलेंज सपा के सामने यह भी है की उनका मुस्लिम वोट बैंक क्या लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को सामने देख सपा तक रुकेगा. 

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भावनाओं को जगाती हैं मूर्तियां!

जानकार कहते हैं कि मूर्तियों की राजनीति के जरिए राजनीतिक दल विशेष जाति-क्षेत्र-समुदाय की भावनाओं को जगाने का काम करते हैं और इसका असर भी होता है. जाति-धर्म विशेष से संबंधित मूर्ति लगाकर उस वोटबैंक से सीधा जुड़ाव पैदा किया जाता है.
 
क्या है गोंड समाज का सियासी समीकरण?

जानकर बताते हैं 13 जिलों में गोंड अनुसूचित जनजाति श्रेणी में आते हैं और इनकी जनसंख्या राज्य की कुल आबादी का 2 प्रतिशत है, यदि यह सारे उत्तर प्रदेश में आबादी को देखें तो यह 4 प्रतिशत हो जाएगी. यूं तो यह ज्यादातर बुंदेलखंड के एमपी वाले हिस्से में पाए जाते है, लेकिन यूपी के भी कई जिले जैसे मिर्जापुर, बहराइच आदि में भी यह कुछ संख्या में हैं. 

13 जिलों में चिन्हित है समुदाय

2002 में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति आदेश (संशोधन) कानून के जरिए गोंड समुदाय और अन्य समुदाय को अनुसूचित जाति से हटाकर अनुसूचित जनजाति में शामिल कर लिया गया था. हालांकि, इससे उनकी निर्वाचन संभावनाओं में घात लगी थी. अब यह लोग अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित निर्वाचन सीटों से चुनाव नहीं लड़ सकते. इस समुदाय की उपस्थिति को राज्य के केवल 13 जिलों में चिन्हित किया गया है, जबकि इस समुदाय की उपस्थिति राज्य के अन्य जिलों में भी है. ऐसे जिलों में वे अब भी अनुसूचित जाति की श्रेणी में हैं.

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