समाजवादी पार्टी (सपा) ने साल 2012 के यूपी चुनाव में पूर्ण बहुमत के साथ जीत हासिल कर सूबे में सरकार बनाई थी. अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने थे और तब पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ही थे. आज मुलायम की बात करने के पीछे दो कारण हैं. एक ये कि आज मुलायम सिंह यादव की जयंती है और दूसरा ये कि यूपी की नौ विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में अखिलेश यादव ने जिस तरह के तेवर दिखाए हैं उससे यह चर्चा शुरू हो गई है कि क्या वे पुरानी सपा की लीक पर लौट रहे हैं?
सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने यूपी की नौ सीटों पर वोटिंग के दिन 20 नवंबर को प्रेस कॉन्फ्रेंस की. अखिलेश ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को निशाने पर रखा ही, पुलिस-प्रशासन के अधिकारियों को भी नाम, इज्जत, पीएफ और पेंशन जाने की चेतावनी दे दी. अखिलेश यादव जिस तरह से आक्रामक अंदाज में नजर आए, उससे वह पांच संकेत दे गए.
कार्यकर्ताओं की पार्टी वाली इमेज
सपा की इमेज ऐसी पार्टी की रही है जो किसी भी तरह की परिस्थिति में अपने कार्यकर्ताओं के पीछे खड़ी रहती है. कई बार सपा इस इमेज की वजह से राजनीतिक गलियारों में आलोचनाओं से घिरी और विपक्षी दलों ने अपराधियों की पार्टी वाली इमेज भी गढ़ी. अखिलेश ने यूपी का सीएम रहते सपा की इमेज बदलने की कोशिश में नई सपा की बात की थी.
अखिलेश की नई सपा इमेज क्लीन करने की कोशिश में कार्यकर्ताओं से दूर होती चली गई और नतीजा 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी के दो धड़े में बंटने, मुलायम को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटाए जाने और चुनावी टेस्ट में फेल होने के रूप में सामने आया. सपा अब फिर से किसी भी परिस्थिति में कार्यकर्ताओं के पीछे खड़ी हो जाने वाली पार्टी की लीक पर लौटती नजर आ रही है. अनुजेश यादव एनकाउंटर या देवरिया कांड पर सपा का स्टैंड हो या अब उपचुनाव में मीरापुर, कुंदरकी और सीसामऊ में धांधली के आरोप पर अखिलेश के तेवर, संकेत यही है.
ग्राउंड पर फाइट
मुलायम सिंह यादव और शिवपाल यादव के जमाने में यानि पुरानी सपा के दौर में साइकिल निशान वाली पार्टी ग्राउंड पर फाइट करने वाली पार्टी की इमेज रखती थी. 2012 में सपा पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में क्या आई, पार्टी के नेता और कार्यकर्ता ग्राउंड पर फाइट मानो भूल ही गए. सत्ता में रहते हुए धरना-प्रदर्शन तो कोई दल नहीं करता लेकिन गायत्री प्रजापति केस समेत कई मुद्दों पर विपक्ष के नैरेटिव को काउंटर करने में सपा के नेता-कार्यकर्ता विफल साबित हुए. 2017 में चुनावी बाजी हारने के बाद 2019 के आम चुनाव से पहले अखिलेश एक्टिव हुए भी तो ग्राउंड पर फाइट से अधिक नैरेटिव की लड़ाई और गठबंधनों का गणित सेट करने पर ही अधिक फोकस किए नजर आए.
आम चुनाव 2019 के बाद सपा का फोकस इस तरफ शिफ्ट होता नजर आया और पहले 2022 के विधानसभा और फिर 2024 के लोकसभा चुनाव में उत्साहजनक नतीजों के बाद अब पार्टी पुराने फॉर्मूले पर आती दिख रही है. वोटिंग के दिन अखिलेश यादव ने यह कहा कि हमारे लोग पुलिस-प्रशासन जो कर रहा है, उसकी वीडियो-फोटो जुटा रहे हैं. अब सपा मीरापुर विधानसभा क्षेत्र में पिस्टल ताने पुलिस अधिकारी के सामने खड़ी हो गई महिला तोहीदा को सम्मानित करने की बात कर रही है तो यह भी इसी तरफ इशारा करता है कि अखिलेश यादव अब ग्राउंड पर फाइट के मुलायमकालीन फॉर्मूले पर लौट रहे हैं.
शिवपाल का संगठन में इस्तेमाल
अखिलेश यादव जब यूपी के मुख्यमंत्री थे, मुलायम सिंह यादव ने सूबे में संगठन की कमान शिवपाल यादव को सौंप दी थी. शिवपाल को प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाना बेटे और भाई में पावर बैलेंस करने की कोशिश के रूप में भी देखा गया लेकिन एक फैक्टर ये भी है कि मुलायम सिंह यादव को पता था कि अपने भाई की क्षमता का सबसे सही इस्तेमाल किस जगह कर सकते हैं.
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शिवपाल उन नेताओं में हैं जिन्होंने स्थापना के बाद सपा का संगठन खड़ा करने में, उसे मजबूत करने में मुलायम के साथ पसीना बहाया. शिवपाल की इमेज शुरू से ही कुशल संगठनकर्ता की रही है. अखिलेश ने भी अब शिवपाल का संगठन में इस्तेमाल शुरू कर दिया है. शिवपाल को लोकसभा चुनाव से पहले घोसी विधानसभा सीट के उपचुनाव में प्रभारी बनाया गया जहां वह सफल साबित हुए. अब नौ सीटों के उपचुनाव में पार्टी ने उन्हें कटेहरी का प्रभारी बनाया था.
मुलायम की धरतीपुत्र वाली इमेज
मुलायम सिंह यादव की इमेज धरतीपुत्र की रही है. छुआछूत का विरोध करते हुए मुलायम में दलित समाज के लोगों को अपने भाई की शादी में आमंत्रित कर सबको गले लगाया था, अपने सामने भोजन कराया था. यूपी की दलित पॉलिटिक्स में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के उभार और गेस्टहाउस कांड के बाद सपा की पकड़ इस वोटबैंक पर कमजोर पड़ती चली गई. अब अखिलेश पीडीए के नारे के साथ सपा का वोट बेस यादव-मुस्लिम से आगे बढ़कर अन्य पिछड़ी जातियों और दलित वर्ग तक बढ़ाने की कोशिश में जुटे हैं और लोकसभा चुनाव में इस फॉर्मूले के अच्छे नतीजे भी यूपी की विपक्षी पार्टी को मिले.
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2027 की पिच तैयार करने की रणनीति
यूपी उपचुनाव 2027 की चुनावी जंग से पहले सेमीफाइनल की तरह भी देखा जा रहा था. लोकसभा चुनाव में सीटों के मामले में बीजेपी से बीस साबित हुई सपा हर हाल में 2027 चुनाव तक आम चुनाव के समीकरण और मोमेंटम बनाए रखना चाहती है. सभी नौ सीटों के उपचुनाव में सपा पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक वर्ग से उम्मीदवार उतारने का फैसला हो या मतदान को लेकर शिकायतों पर अखिलेश यादव का प्रेस कॉन्फ्रेंस करना, ये सब भी सपा के मिशन 2027 से ही जोड़कर देखे जा रहे हैं.
अखिलेश ने अधिकारियों के नाम लेकर, इज्जत-नौकरी-पीएफ-पेंशन जाने को लेकर आगाह कर एक तरह से सपा समर्थकों यह संदेश भी दिया कि पार्टी सत्ता में आई तो ऐसे अधिकारी हिट लिस्ट में होंगे जिन पर समर्थकों के उत्पीड़न का आरोप होगा.