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UP: कुनबा एक मगर... न शिवपाल को जिम्मेदारी, न करीबियों को अहमियत, कार्यकर्ताओं का कैसे होगा मन से मिलन?

उत्तर प्रदेश की सियासत में आपसी गिले-शिकवे भुलाकर शिवपाल यादव और अखिलेश यादव एक साथ हो गए हैं. शिवपाल ने अपनी पार्टी का भी सपा में विलय कर दिया है, लेकिन अखिलेश ने अभी तक न तो चाचा को जिम्मेदारी सौंपी है और न ही उनके करीबियों को अहमियत मिली है. इतना ही नहीं सपा और प्रसपा के कार्यकर्ताओं के बीच संतुलन नहीं बन पा रहा?

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अखिलेश यादव और शिवपाल यादव
अखिलेश यादव और शिवपाल यादव

मुलायम कुनबे में लंबे समय से चली आ रही सियासी वर्चस्व की जंग अब पूरी तरह से थम चुकी है. शिवपाल सिंह यादव और अखिलेश यादव गिले-शिकवे भुलाकर साथ आ चुके हैं. शिवपाल ने अपनी पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का विलय सपा में कर दिया है और मरते दम तक पार्टी में रहने का ऐलान भी कर दिया है. चाचा-भतीजे भले ही एक हो गए हों, लेकिन अभी तक न तो शिवपाल को अहम जिम्मेदारी मिली है और न ही उनके करीबी नेताओं को अहमियत मिली है. इतना नहीं दोनों ही पार्टियों के कार्यकर्ताओं का मन से मिलन नहीं हो पा रहा है?

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बता दें कि 2017 से ठीक पहले सपा कुनबे में मुलायम सिंह की सियासी विरासत को लेकर छिड़ी संघर्ष सड़क पर आ गई थी. चाचा शिवपाल और भतीजे अखिलेश के बीच तलवारें खिंची हुई थीं. इसके बाद शिवपाल ने सपा से अलग होकर 2018 में अपनी अलग प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बना ली. शिवपाल का साथ छोड़ने के बाद सपा के तमाम जमीनी नेताओं ने भी पार्टी को अलविदा कह दिया था. मुलायम सिंह यादव की तमाम कोशिशों के बावजूद चाचा-भतीजा का मिलन संभव नहीं हो सका. 

मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद रिक्त हुई मैनपुरी लोकसभा सीट के उपचुनाव ने अखिलेश और शिवपाल को एक कर दिया. शिवपाल यादव सपा में वापसी तो कर गए हैं और अखिलेश यादव के साथ उनके रिश्ते भी सुधर गए हैं. शिवपाल को अखिलेश यादव में 'नेताजी' का अक्स नजर आया और तभी तो उन्होंने कार्यकर्ताओं से अखिलेश को 'छोटे नेताजी' कहने की अपील की. 

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अब तक सपा में शिवपाल को नहीं मिली कोई जिम्मेदारी

शिवपाल यादव ने अपनी पार्टी का सपा में विलय भी कर दिया और अब जीवन भर सपा में ही रहने का खुला ऐलान कर दिया. भतीजे अखिलेश ने भी चाचा शिवपाल को पार्टी में अहम जिम्मेदारी देने की बात सार्वजनिक रूप से मीडिया से कही थी. चाचा-भतीजे के बीच मिलन हुए एक महीने होने जा रहे हैं, लेकिन शिवपाल को न तो सपा में कोई पद मिला और न ही पार्टी कार्यालय में उनके बैठने के लिए कोई कमरा आवंटित किया गया है. 

हालांकि, शिवपाल यादव ने अपनी पार्टी का कार्यलय भी बंद कर दिया है और अपने आवास पर ही नेताओं से मिल जुल रहे हैं. सपा के विधायक से लेकर नेता तक शिवपाल से मिलने पहुंच रहे हैं. चाचा के साथ जिन नेताओं ने छह साल पहले सपा को अलविदा कहा था, उनसे न तो अखिलेश यादव की मुलाकात हुई है और न ही सपा में उन्हें सियासी तवज्जो मिल रही है. ऐसे में शिवपाल के करीबी नेताओं को अपना सियासी भविष्य अधर में लटका हुआ नजर आ रहा है. 

शिवपाल की पार्टी में ऊंचे पद रहे एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि सपा और प्रसपा के नेता और कार्यकर्ता यही चाहते थे कि परिवार और पार्टी एक हो. मैनपुरी चुनाव के बाद कुनबा एक तो हो गया है, लेकिन कार्यकर्ताओं का मन से मिलन नहीं हो पा रहा है. प्रसपा के बड़े नेताओं को जरूर सपा के जिला अध्यक्ष स्थानीय बैठकों में बुला रहे हैं, लेकिन छोटे नेताओं और कार्यकर्ताओं को अहमियत नहीं मिल पा रही है. 

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प्रसपा के कार्यकर्ता असहज महसूस कर रहे हैं

प्रसपा के एक जिला अध्यक्ष ने बताया कि शिवपाल यादव के जिस दिन पार्टी का विलय किया है, उसी दिन हम सपा दफ्तर में जाकर अपना पार्टी का झंडा लिया और अपनी गाड़ी में लगाया. इसके बाद भी न तो सपा की बैठक में बुलाया गया है और न ही किसी कार्यक्रम का निमंत्रण मिला है. ऐसे में हमें अब सपा कार्यालय जाने में असहजता महसूस होने लगी है जबकि हम सपा के संस्थापक सदस्यों में से रहे हैं. सपा के स्थानीय नेताओं को प्रसपा के नेताओं से कॉम्पिटिशन का भाव महसूस कर रहे हैं. 

प्रसपा के नेता कहते हैं कि शिवपाल यादव के चलते सपा में तो आए गए हैं, लेकिन सपा के स्थानीय नेताओं के व्यवहार से बड़ा संकोच महसूस होता है जबकि कभी बड़े अधिकार से पार्टी कार्यालय और कार्यक्रमों में जाया करते थे. ऐसे लगता है कि अब किसी दूसरे के घर आए हैं और मेहमान जैसा महसूस होता है. इसकी पीछे वजह यह है कि शिवपाल की तरह अखिलेश ने सपा नेताओं और कार्यकर्ताओं को एकजुटता का राजनीतिक संदेश नहीं दिया. 

बता दें कि 2018 में शिवपाल यादव के भरोसे तमाम दिग्गज उन नेताओं ने सपा छोड़ी थी, वरना अखिलेश यादव से उनका कोई निजी विरोध नहीं था. 2022 के विधानसभा चुनाव में शिवपाल यादव सपा से अकेले अपने टिकट पर राजी हो गए और अपने समर्थकों को मंझधार में छोड़ दिया. ऐसे में चुनाव लड़ने की इच्छा रखने वाले कई नेताओं ने सपा छोड़ दी थी और वो बसपा, बीजेपी, कांग्रेस या फिर अन्य पार्टी में चले गए थे. इस तरह से शिवपाल के साथ कुछ खास नेता और कार्यकर्ता ही बचे रह गए थे.  

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शिवपाल यादव की तो सपा में वापसी हो चुकी है और पार्टी का विलय भी कर दिया गया है, लेकिन अभी तक इन नेताओं के सियासी भविष्य का कोई फैसला नहीं हुआ है. ऐसे में प्रसपा के कई नेताओं ने शिवपाल यादव से भी मुलाकात की थी और उन्होंने कार्यकर्ताओं के असमंजस की स्थिति से भी अवगत कराया था. इस पर शिवपाल यादव ने यह कह कर कि धैर्य रखिए समय के साथ सारी समस्याएं दूर कर ली जाएंगी. 

क्या कहा प्रसपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष ने?

प्रसपा के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष रहे सुंदर लाल लोधी ने aajtak.in से कहा कि शिवपाल यादव ने भले ही पार्टी का विलय कर दिया हो, लेकिन प्रसपा के कार्यकर्ताओं और नेताओं को पुराना रुतबा हासिल नहीं हो पाएगा. दोनों ही पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच सामंजस्य इसीलिए भी बैठ नहीं पा रहा है, क्योंकि न तो शिवपाल यादव को कोई जिम्मेदारी मिली है और न ही पद दिया गया है. पार्टी दफ्तर में भी उनके बैठने के लिए कोई कमरा भी निर्धारित नहीं है. सपा के संगठन का जब गठन होगा तो बहुत कुछ साफ हो पाएगा. पार्टी के एक हुए चंद दिन हुए हैं, लेकिन प्रसपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं की तरह से सपा के लोगों को भी बड़ा दिल दिखाना चाहिए. 

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शिवपाल की पार्टी में प्रदेश महासचिव रहे कानपुर के अशोक यादव कहते हैं कि हम सभी की यही चाहते थे कि समाजवादी पार्टी एक हो. शिवपाल यादव और अखिलेश यादव एक हो चुके हैं, इससे ज्यादा कुछ नहीं चाहिए. सपा के संगठन बनेगा तो प्रसपा के लोगों को भी निश्चितरूप से अहमियत मिलेगी, क्योंकि सभी जमीन से जुड़े हुए नेता है और पुराने सपाई हैं. प्रसपा के नेता खाटी समाजवादी हैं और नेताजी के दौर से सपा में रहे हैं.   

अशोक यादव की तरह रायबरेली में प्रसपा के नेता रहे राम सिंह यादव कहते हैं कि शिवपाल यादव और अखिलेश यादव ने जब अपने सारे गिले-शिकवे भुलाकर एक साथ हैं तो हम भी एक साथ हैं. दोनों ही पार्टियां अब जब पूरी तरह से एक हो गई हैं और परिवार एकजुट हैं तो एक न एक दिन कार्यकर्ता भी एक हो जाएंगे. दोनों ही कार्यकर्ताओं के मन में किसी तरह की शंका न पैदा हो, इसके लिए शीर्ष नेतृत्व को समय रहते कदम उठाना चाहिए. 

शिवपाल यादव जब सपा से अलग-थलग हो गए थे तो उन्हें डीपी यादव का साथ मिला था. डीपी यादव और शिवपाल यादव ने मिलकर यदुकुल उत्थान पुनर्जागरण मिशन का गठन कर यादव समाज के खिलाफ होने वाले अत्याचार के विरुध लड़ाई लड़ने का ऐलान किया था. माना जा रहा था कि यूपी में शिवपाल यादव और डीपी यादव मिलकर 2024 का लोकसभा चुनाव भी लड़ेंगे, लेकिन अब इस पर ग्रहण लग गया है. डीपी यादव कहते हैं कि शिवपाल यादव भले ही सपा में चले गए हों, लेकिन यदुकुल उत्थान पुनर्जागरण मिशन के साथ हैं. यह एक सामाजिक संगठन है, जिसमें 15 पूर्व विधायक और दो पूर्व मंत्री सहित कई लोग शामिल हैं. 

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डीपी यादव कहते हैं कि यदुकुल उत्थान पुनर्जागरण मिशन के तहत हम समाज के इंसाफ के लिए पहले की तरह ही संघर्ष करते रहेंगे. शिवपाल ने अपनी पार्टी का जरूर सपा में विलय किया है, लेकिन संगठन का साथ नहीं छोड़ा. 2024 के चुनाव के लिए हम अपनी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ विचार-विमर्श करके कोई फैसला लेंगे. यह बात जरूर है कि मुलायम सिंह यादव को मुख्यमंत्री बनाने से लेकर सपा के गठन तक में हमने पूरा सहयोग किया है. भविष्य का फैसला अब अपनों से निष्कर्ष करके करेंगे.

 

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