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ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के ASI सर्वे को मिलेगी इजाजत? इलाहाबाद हाई कोर्ट में आज फैसला

ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के एएसआई सर्वे को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट में दोनों पक्षों की लगातार दो दिन बहस चली. दोनों तरफ से दलील पेश की गईं. कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद 27 जुलाई को अपने फैसलों को रिजर्व कर लिया था. कोर्ट आज अपना फैसला सुनाएगी.

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ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे मामले में हाईकोर्ट के फैसले का इंजतार
ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे मामले में हाईकोर्ट के फैसले का इंजतार

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ज्ञानवापी परिसर के एएसआई सर्वे के खिलाफ दाखिल याचिका पर फैसला सुरक्षित कर लिया था. इसका फैसला आज सुनाया जाएगा. इस फैसले का सभी बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं. तब तक सर्वे पर लगी रोक बरकरार रहेगी. यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर ने अंजुमन इंतजामिया मसाजिद वाराणसी की प्रबंध समिति की याचिका की सुनवाई करते हुए दिया था. दरअसल, कोर्ट में दोनों पक्षों की लगातार दो दिन बहस चली. दोनों तरफ से दलील पेश की गईं. कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद 27 जुलाई को अपने फैसलों को रिजर्व कर लिया था.  

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कोर्ट में एएसआई ने क्या कहा?

कोर्ट आए एएसआई के एडिशनल डायरेक्टर जनरल आलोक त्रिपाठी ने साफ कर दिया था कि सर्वे से निर्माण को कोई नुकसान नहीं होगा. साइंटिफिक सर्वे में अत्याधुनिक तकनीकी का इस्तेमाल होगा. अपर सॉलिसिटर जनरल शशि प्रकाश सिंह ने दाखिल हलफनामे को उद्धृत किया. याची के वरिष्ठ अधिवक्ता एसएफए नकवी व पुनीत गुप्ता ने एएसआई अधिकारियों के कुदाल, फावड़े के साथ आने की फोटोग्राफ दिखाते हुए सर्वे से भवन के ध्वस्त होने की आशंका जताई. उन्होंने कहा था कि सर्वे आदेश समय पूर्व दिया गया है. साक्ष्य पूरा होने के बाद सर्वे कराना चाहिए था. अभी सिविल वाद की ग्राह्यता की आपत्ति भी तय की जानी है.

इसके जवाब में अपर महानिदेशक ने कहा था कि तहखाने में कई जगह इकट्ठा मलबा साफ करने के लिए कुदाल फावड़ा लेकर आए थे. परिसर में किसी प्रकार की खुदाई नहीं होगी. कोर्ट द्वारा पूछे जाने पर महाधिवक्ता अजय कुमार मिश्र ने कहा था कि राज्य सरकार का विवाद से कोई सरोकार नहीं है. सरकार की केवल जरूरत पड़ने पर कानून व्यवस्था कायम रखने की ही है. जिसके लिए पुलिस पीएसी, सीआईएसएफ तैनात हैं.

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इस मामले में हिन्दू पक्ष के अधिवक्ता शंकर जैन ने कहा था कि अदालत को किसी भी समय न्याय हित में कमिश्नर भेजकर स्थलीय जांच कराने की कानूनी शक्ति प्राप्त है. एडवोकेट कमिश्नर की रिपोर्ट के बाद वादियों ने साइंटिफिक सर्वे कराने की अर्जी दी. क्योंकि कमिश्नर रिपोर्ट में तीनों गुंबदों के नीचे हिंदू मंदिर शिखर पाया गया. दीवार पर संस्कृत श्लोक मिले हैं, स्वास्तिक सहित तमाम हिंदू धर्म चिन्ह मिलें हैं. सिविल वाद तय करने के लिए न्याय हित में साइंटिफिक सर्वे कराना जरूरी है, जिसे स्वीकार करते हुए अदालत ने प्राप्त शिवलिंग एरिया को छोड़कर शेष भवन का एएसआई से सर्वे रिपोर्ट मांगी है. इसे याचिका में मात्र आशंका के आधार पर चुनौती दी गई थी.

वाराणसी कोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई थी रोक

मालूम हो कि वाराणसी के जिला जज की अदालत ने 21 जुलाई को हिन्दू पक्ष की अर्जी पर ज्ञानवापी के एएसआई सर्वे का निर्देश दिया था. इसके खिलाफ मुस्लिम पक्ष सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया. 24 जुलाई को  सुप्रीम कोर्ट ने सर्वे पर 26 जुलाई तक रोक लगाते हुए मुस्लिम पक्ष को इलाहाबाद हाईकोर्ट जाने की सलाह दी थी. 

गत मंगलवार को देर शाम एक घंटे तक सुनवाई चली. फिर बुधवार को सुबह साढ़े नौ बजे से साढ़े चार घंटे सुनवाई के बाद गुरुवार की तिथि तय हुई. गुरुवार की दोपहर करीब सवा तीन बजे मामले की सुनवाई दोबारा शुरू हुई. सबसे पहले मुस्लिम पक्ष ने एएसआई के हलफनामे पर अपना जवाबी हलफनामा दाखिल किया. इसके बाद हिन्दू पक्ष के वकील विष्णु जैन ने कोर्ट से कहा कि अगर इजाजत मिले तो कुछ फोटोग्राफ पेश करना चाहते हैं. 

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एएसआई ने परिसर में खुदाई नहीं करने की कही थी बात

इस पर कोर्ट ने पूछा कि एएसआई की लीगल आइडेंटिटी क्या है? एएसआई अधिकारी आलोक त्रिपाठी ने एएसआई के गठन और कार्य की जानकारी दी. बताया कि 1871 में पुरातात्त्विक भवनों या अवशेषों के संरक्षण के लिए एएसआई गठित की गई. 1951 में एएसआई को पुरातात्विक अवशेषों का बायोलॉजिकल संरक्षण करने की यूनेस्को की संस्तुति मिली. साथ ही यह पुरातत्व भवनों, अवशेषों की मानीटरिंग भी करती है. कोर्ट ने पूछा था कि क्या खुदाई भी करेंगे? इस पर त्रिपाठी ने कहा था कि हम खुदाई नहीं करने जा रहे हैं.

क्या थी मुस्लिम पक्ष की दलील?

मुस्लिम पक्ष के वकील नकवी ने अपनी दलील में कहा था कि हलफनामे में फोटो लगाई है. अधिकारी औजार के साथ परिसर में वर्दी में मौजूद हैं. एएसआई के अधिकारी कह रहे हैं कि पांच फीसदी काम हुआ है. आशंका है कुछ ऐसा भी कर सकते हैं, जो बिल्डिंग को नुकसान पहुंचा सकती है. नकवी ने यह भी कहा कि प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 में सिविल वाद पोषणीय नहीं है. धार्मिक स्थलों की 15 अगस्त 1947 की स्थिति में बदलाव पर रोक है. 1947 से बिल्डिंग की यही स्थिति थी. हम कहते हैं 600 साल पुराना है और ये कहते हैं हजार साल पुराना. यानी इस भवन में बदलाव नहीं किया जा सकता. एएसआई जांच साक्ष्य इकट्ठा करने की कोशिश है.

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हिन्दू पक्ष ने कोर्ट में क्या कहा?

हिन्दू पक्ष के वकील विष्णु जैन ने कहा कि मुहम्मद गजनवी से लेकर अनेक आकांताओं कई बार मंदिरों को तोड़ा. आजादी के बाद सभी को पूजा का अधिकार मिला. भवन पुराना हिंदू मंदिर है. सर्वे के आदेश में अदालत ने कहा है कि एएसआई के पास इंस्ट्रूमेंट है, जांच कर सकती है. विशेषज्ञ इंजीनियर इनके पास हैं. राम मंदिर केस में ऐसा किया गया है. ज्ञानवापी परिसर के अंदर संस्कृत के शलोक लिखे हैं, पुराने शिवलिंग हैं. इस संदर्भ में हमारी अर्जी के साथ उस परिसर की पश्चिमी दीवार की फोटो भी लगाई गई है. बैरिकेडिंग एरिया का हम सर्वे चाहते हैं.

हाईकोर्ट में एक और याचिका दाखिल

ज्ञानवापी मामले में सर्वे पर फैसले से एक दिन पहले ही इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक और याचिका दाखिल की गई है. वाराणसी की कोर्ट में श्रृंगार गौरी की पूजा की नियमित पूजा की इजाजत दिए जाने की मांग को लेकर मुकदमा दाखिल करने वाली राखी सिंह व अन्य की तरफ से ये जनहित याचिका दाखिल की गई है. इसमें
परिसर में मिले हिंदुओं के प्रतीक चिन्हों को संरक्षित किए जाने और गैर हिंदुओं के प्रवेश पर पाबंदी लगाए जाने की अपील की गई है.

पीआईएल में कहा गया है कि श्रृंगार गौरी केस में जब तक वाराणसी की अदालत का फैसला नहीं आ जाता तब तक परिसर में गैर हिंदुओं का प्रवेश प्रतिबंधित किया जाए और ज्ञानवापी परिसर में मिले हिंदू प्रतीक चिन्हों को संरक्षित रखने का आदेश दिया जाए. इस तरह की व्यवस्था की जाए, जिससे एएसआई सर्वेक्षण का काम प्रभावित ना हो. याचिका पर सोमवार 7 अगस्त को सुनवाई होने की उम्मीद है.

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