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अतीक-अशरफ की हत्या का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, याचिका में कहा- जब पुलिस ही डेयर डेविल्स बन जाए तो...

अतीक और अशरफ की हत्या का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया. जनहित याचिका दाखिल कर कहा गया है कि जब पुलिस "डेयर डेविल्स" बन जाती है तो कानून का पूरा शासन ध्वस्त हो जाता है और पुलिस के खिलाफ लोगों के मन में भय उत्पन्न होता है. पुलिस को एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में इस तरह मनमाने तरीके से न्याय करने से बचना चाहिए.

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अतीक अहमद और अशरफ की हत्या कर दी गई है (फाइल फोटो)
अतीक अहमद और अशरफ की हत्या कर दी गई है (फाइल फोटो)

माफिया अतीक और अशरफ की हत्या का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. पुलिस कस्टडी में हत्या की जांच की मांग को लेकर वकील विशाल तिवारी ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की है. इस याचिका में सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज की निगरानी में जांच कराने की मांग की गई है. याचिका में कहा गया है कि पुलिस कस्टडी में ऐसे हत्याकांड या फर्जी मुठभेड़ के बहाने हत्या की वारदात कानून के शासन का उल्लंघन है. विकास दुबे से लेकर असद की मुठभेड़ में हत्या या फिर अब अतीक-अशरफ की हत्या इसी श्रेणी में है. ये अराजकता लोकतंत्र के लिए गंभीर चुनौती है. 

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याचिका में 2017 से अब तक उत्तर प्रदेश में हुए 183 एनकाउंटर की जांच सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज की निगरानी में एक्सपर्ट कमेटी से कराने की मांग की गई है. साथ ही कहा गया है कि पुलिस प्रशासन की एकस्ट्रा ज्यूडिशियल किलिंग की ये प्रवृत्ति लोकतंत्र के सिद्धांत के खिलाफ है. पुलिस को एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में इस तरह मनमाने तरीके से न्याय करने से बचना चाहिए.

अतीक की हत्या का जिक्र करते हुए, याचिका में कहा गया है कि "पुलिस द्वारा इस तरह की कार्रवाई लोकतंत्र और कानून के शासन के लिए एक गंभीर खतरा है. याचिका में कहा गया है कि एक लोकतांत्रिक समाज में पुलिस को दंड देने वाली संस्था बनने की अनुमति नहीं दी जा सकती है. सजा की शक्ति केवल न्यायपालिका में निहित है.

याचिका में कहा गया है कि इस तरह की फर्जी पुलिस मुठभेड़ों की कानून के तहत कोई जगह नहीं है. जब पुलिस "डेयर डेविल्स" बन जाती है तो कानून का पूरा शासन ध्वस्त हो जाता है और पुलिस के खिलाफ लोगों के मन में भय उत्पन्न होता है, जो लोकतंत्र के लिए बहुत खतरनाक है और इसका परिणाम अपराध भी होता है.

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असद और उसके साथियों समेत 6 साल में कितने एनकाउंटर?

उत्तर प्रदेश पुलिस ने शुक्रवार को कहा था कि उसने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार के छह वर्षों में 183 कथित अपराधियों को मुठभेड़ में मार गिराया है और इसमें असद और उनके साथी शामिल हैं.

कब हुई अतीक-अशरफ की हत्या?

माफिया अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की शनिवार रात को पुलिस घेरे में गोलियों से भूनकर हत्या कर दी गई. वारदात को तीन युवकों ने अंजाम दिया, जो पत्रकार बनकर पुलिस के काफिले के नजदीक पहुंचे और ताबड़तोड़ फायरिंग कर दी. इस दौरान करीब 18 राउंड गोलियां चलीं, जिनमें से 8 गोली अतीक अहमद को लगीं. ये बात अतीक के पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सामने आई है.

दोनों के शव कहां दफन किए गए?

प्रयागराज के कसारी मसारी के कब्रिस्तान में अतीक और अशरफ के लिए कब्र खोदी गई है. दोनों को यहीं पर दफनाया गया. इससे पहले शनिवार को अतीक अहमद के बेटे असद को भी इसी कब्रिस्तान में दफन किया गया था. असद के शव को शनिवार की सुबह ही झांसी से प्रयागराज लाया गया था. उसे यूपी एसटीएफ ने गुरुवार को झांसी के बड़ागांव थाना क्षेत्र में एक एनकाउंटर के दौरान ढेर कर दिया था.

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किसने की अतीक की हत्या?

अतीक और अशरफ को जब पुलिस कस्टडी में प्रयागराज के कॉल्विन अस्पताल में मेडिकल के लिए ले जाया जा रहा था, इसी दौरान तीन आरोपियों अरुण मौर्या, सनी और लवलेश तिवारी ने उन पर तड़ातड़ गोलियां बरसा दीं. हत्याकांड के बाद तीनों हमलावरों को सरेंडर के बाद गिरफ्तार कर लिया गया. अतीक हत्याकांड में शामिल सनी हमीरपुर, अरुण उर्फ कालिया कासगंज और लवलेश तिवारी बांदा जिले का रहने वाला है. 

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