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बदायूं में BJP के दिग्गजों की फौज पर भारी पड़ी चाचा-भतीजे की जोड़ी, शिवपाल ने अखिलेश संग मिलकर बेटे को ऐसे जिताया चुनाव

Badaun Lok Sabha Election Result: शिवपाल यादव और अखिलेश यादव की अगुवाई में समाजवादी पार्टी (सपा) ने भाजपा से अपना गढ़ बदायूं वापस ले लिया है. शिवपाल के बेटे आदित्य यादव ने करीब 35 हजार वोटों से भाजपा के दुर्विजय सिंह शाक्य को शिकस्त दी है.

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बदायूं में अखिलेश-शिवपाल ने झोंकी थी ताकत
बदायूं में अखिलेश-शिवपाल ने झोंकी थी ताकत

शिवपाल यादव और अखिलेश यादव की अगुवाई में समाजवादी पार्टी (सपा) ने भाजपा से अपना गढ़ बदायूं वापस ले लिया है. शिवपाल के बेटे आदित्य यादव ने करीब 35 हजार वोटों से भाजपा के दुर्विजय सिंह शाक्य को शिकस्त दे दी है. सपा की स्थापना के बाद से बदायूं की सीट हमेशा समाजवादी पार्टी के खाते में गई लेकिन 2019 के चुनाव में बड़ा उलटफेर हुआ. तब स्वामी प्रसाद की बेटी और संघमित्रा मौर्य (भाजपा) ने सपा के गढ़ में सेंध लगाते हुए बदायूं का लोकसभा चुनाव जीत लिया. संघमित्रा ने सपा के धर्मेंद्र यादव को शिकस्त दी थी. 

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दरअसल, 2019 के लोकसभा चुनाव में धर्मेंद्र यादव भाजपा की संघमित्रा मौर्य से करीबी मुकाबले में चुनाव हारे और 2024 में अखिलेश यादव ने बदायूं में कुछ विरोध की खबरों के चलते धर्मेंद्र का टिकट काटकर चाचा शिवपाल यादव को बदायूं का प्रत्याशी बना दिया. लेकिन टिकट के ऐलान के 18 दिन तक शिवपाल बदायूं नहीं पहुंचे. और जब बदायूं पहुंचे तो उन्होंने अपनी जगह आदित्य यादव के नाम को आगे करना शुरू कर दिया. 

शिवपाल ने ऐसे बचाया सपा का गढ़ 

आदित्य यादव के नाम की घोषणा वैसे तो नामांकन से एक दिन पहले हुई लेकिन बदायूं में चुनाव प्रचार आदित्य के नाम पर ही किया जा रहा था. शिवपाल यादव को भाजपा ने घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी. बदायूं की सीट को हराकर बीजेपी शिवपाल यादव का मनोबल तोड़ उत्तर प्रदेश की राजनीति में उनका राजनैतिक ग्राफ गिराना चाहती थी. लेकिन शिवपाल राजनीति के पुरोधा और संगठन के माहिर ऐसे ही नहीं कहे जाते हैं. उन्होंने अपने बेटे आदित्य सहित बदायूं से सटी 4 में से 3 सीटें सपा के खाते में डालकर दिखा दिया कि विपक्ष में रहकर किस तरह चुनावी बिसात बिछाकर विरोधियों को शिकस्त दी जाती है. बदायूं से सटी बरेली सीट पर भाजपा जीती बाकी आंवला, संभल, एटा सपा के खाते में गईं. 

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बीजेपी ने शिवपाल यादव के सामने दुर्विजय शाक्य को मैदान में उतारा और मजबूती से पूरे चुनाव में प्रचार प्रसार किया. सपा के गढ़ को दूसरी बार भेदकर भारतीय जनता पार्टी अपना दबदबा कायम रखना चाहती थी. भाजपा के स्थानीय नेता, कार्यकर्ता से लेकर केंद्रीय नेतृत्व तक बदायूं की सीट जीतने में लगा था. भाजपा के लिए यह सीट इसलिए भी महत्वपूर्ण थी क्योंकि क्षेत्र के अध्यक्ष दुर्विजय चुनाव लड़ रहे थे. 

दूसरी ओर प्रदेश की राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी शिवपाल यादव ने अपनी जगह बेटे आदित्य यादव को सामने कर दिया था. ऐसे में भाजपाई शिवपाल के बेटे को चुनाव हराकर समाजवादी पार्टी और शिवपाल सिंह यादव दोनों का ग्राफ गिराकर पूरे प्रदेश में संदेश देना चाहते थे. 

भाजपा के बृजक्षेत्र के अध्यक्ष दुर्विजय शाक्य को जिताना और शिवपाल के बेटे आदित्य यादव को हराने के लिए पार्टी ने पूरी ताकत झोंक रखी थी. गृहमंत्री अमित शाह और रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने भी दुर्विजय शाक्य के लिए सभाएं की थीं. ठाकुरों के विरोध के चलते राजनाथ सिंह को प्रचार के लिए बुलाया गया लेकिन राजनीति के तहत उनको बदायूं जिले में तो बुलाया गया लेकिन बदायूं लोकसभा में उनकी सभा नहीं रखी गई. 

बीजेपी के दिग्गजों का प्रचार भी नहीं आया काम 

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भाजपा का मकसद विरोध थामना था लेकिन विरोध को उजागर करना नहीं था. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी इस एरिया में तीन जनसभाएं की थीं. दोनों डिप्टी सीएम भी आए थे. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी बदायूं में भाजपा के लिए जोर-शोर से प्रचार किया था. 

सीएम मोहन यादव की रणनीति के तहत यादव लैंड कहे जाने वाले गुन्नौर विधानसभा में सभा कराई गई और पुष्कर सिंह धामी से चुनाव प्रचार के अंतिम दिन रोड शो कराया गया. भाजपा ने बदायूं सीट को जीतने की पूरी कोशिश की लेकिन नतीजा उम्मीद के मुताबिक नहीं रहा और शिवपाल अपने बेटे के लिए ये सीट जीतने में कामयाब रहे. 

बदायूं में तीन प्रदेशों के मुख्यमंत्री, देश के गृहमंत्री और रक्षा मंत्री चाचा-भतीजे की जोड़ी के सामने बेअसर साबित हुए. भाजपा के स्टार प्रचारकों की फौज के सामने अखिलेश यादव और शिवपाल यादव भारी पड़े और बदायूं को अपना गढ़ साबित करने में कामयाब रहे. 

गौरतलब है कि बदायूं जिले में भाजपा के छह में से तीन विधायक हैं. जिला पंचायत अध्यक्ष भी पार्टी का है. इतना ही नहीं एक राज्यसभा सांसद जो कि केंद्र में मंत्री भी हैं वह भी यहीं से हैं. हाल ही में राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग कर सपा के बजाय भाजपा को समर्थन देने वाले बिसौली विधायक आशुतोष मौर्या का परिवार भी भाजपा के साथ था. 

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चुनाव के दौरान शिवपाल के मुख्य दांव और बयान-

जब शिवपाल सिंह यादव को बदायूं का टिकट दिया गया तो उस समय लोकल स्तर पर पार्टी में सब कुछ ठीक नहीं था. लेकिन शिवपाल ने आते ही मीडिया से कहा कि 'अब हम आ गए हैं सब ठीक हो जाएगा...'

जिले में आते ही शिवपाल यादव ने बालाजी मंदिर में पूजा अर्चना की और उसके तुरंत बाद बड़े सरकार की दरगाह पर चले गए. नामांकन के दिन आदित्य यादव ने भी कुछ ऐसा ही किया. पहले शिवजी के मंदिर पर जल चढ़ाया फिर फिर माता के मंदिर में चुनरी चढ़ाई और उसके बाद दरगाह गए. 

नाराज लोगों को अपने पाले में किया 

इन सबके बीच बदायूं में मुस्लिम नेता और पूर्व सांसद सलीम शेरवानी और पूर्व विधायक आबिद रज़ा समाजवादी पार्टी से नाराज चल रहे थे. नाराज नेताओं ने सेकुलर मोर्चा बनाकर सपा के खिलाफ जनसभा को संबोधित कर अपनी नाराजगी जाहिर भी की थी. मगर शिवपाल यादव ने दोनों नेताओं को न सिर्फ मना लिया बल्कि प्रचार में उनका भरपूर सहयोग भी लिया. 

इसके अलावा शिवपाल यादव ने बसपा के पूर्व विधायक मुसर्रत अली बिट्टन को भी समाजवादी पार्टी में शामिल कराया, जिसका लाभ बिल्सी और इस्लामनगर क्षेत्र में समाजवादी पार्टी को साफतौर पर मिला. 

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चुनाव प्रचार के दौरान 4 मई की रात को जब पुलिस द्वारा समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं को उठाया गया तब शिवपाल सिंह यादव ने मोर्चा संभाला. चुनाव आयोग से पुलिस प्रशासन की शिकायत करते हुए उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा था कि अगर पार्टी के कार्यकर्ताओं का शोषण नहीं रुका तो पूरे प्रदेश के हजारों कार्यकर्ताओं को बदायूं में बुलाकर सभी थानों का घेराव किया जाएगा. शिवपाल का यह बयान कार्यकर्ताओं में जोश भर गया. 

चुनाव प्रचार में शिवपाल यादव ने नेताजी मुलायम सिंह यादव को अपने भाषण में बार-बार याद किया और जनता को बदायूं से उनका रिश्ता याद कराते रहे. 

भारी पड़ी चाचा-भतीजे की जोड़ी

सहसवान और गुन्नौर यह दोनों विधानसभा समाजवादी पार्टी के लिए हमेशा संजीवनी का काम करती है जिसके चलते शिवपाल ने अखिलेश यादव की जनसभाओं को प्रचार के अंतिम दिनों में मुख्य रूप से सहसवान और गुन्नौर में ही रखा, जिससे सपा को काफी मजबूती मिली. इन दोनों विधानसभाओं में पार्टी ने 65000 से ज्यादा की लीड ली. 

बसपा का दांव उलटा पड़ा

बसपा ने जब मुस्लिम खान को टिकट दिया तो समाजवादी पार्टी में मुस्लिम वोटों के बंटवारे की आशंका जताई जाने लगी. लेकिन मुस्लिम वोटरों ने मुस्लिम खान को सिरे से खारिज कर दिया, जिससे सपा को नुकसान नहीं हुआ. 2019 के लोकसभा चुनाव में स्वामी प्रसाद मौर्या अपनी बेटी के लिए बसपा-सपा गठबंधन के बावजूद बसपा का वोट भाजपा को दिलवाने में कामयाब हुए थे. लेकिन इस बार बसपा के कमजोर प्रत्याशी और सुस्त चुनाव प्रचार के बावजूद भी पार्टी को 97751 वोट मिले.

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