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बच्चों के यूरिन में भीगी टेडी डॉल, भेड़िया पकड़ने के लिए होगी इस्तेमाल, आदमखोरों के लिए बिछाया गया नया जाल

Bahraich Wolf Attack: बहराइच जिले में आदमखोर भेड़ियों को पकड़ने के लिए वन विभाग अब रंग-बिरंगी गुड़ियों (टेडी डॉल) का इस्तेमाल कर रहा है. इन 'टेडी डॉल' को दिखावटी चारे के रूप इस्‍तेमाल किया जा रहा है. खास बात ये है कि इन 'डॉल' को बच्चों के यूरिन में भिगोया गया है.

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बहराइच: भेड़िया पकड़ने के लिए डॉल का इस्तेमाल
बहराइच: भेड़िया पकड़ने के लिए डॉल का इस्तेमाल

उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में आदमखोर भेड़ियों को पकड़ने के लिए वन विभाग अब रंग-बिरंगी गुड़ियों (टेडी डॉल) का इस्तेमाल कर रहा है. इन 'टेडी डॉल' को दिखावटी चारे के रूप इस्‍तेमाल किया जा रहा है. खास बात ये है कि इन 'डॉल' को बच्चों के यूरिन में भिगोया गया है, ताकि इनसे बच्चों जैसी गंध आए और भेड़िये इनकी तरफ खिंचे चले आएं. इन 'टेडी डॉल' को नदी के किनारे, भेड़ियों के आराम करने के स्थानों और मांद के करीब रखा गया है. 

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दरअसल, ये आदमखोर भेड़िये बेहद शातिर किस्म के होते हैं. रात में शिकार करने के बाद, अपनी मांद में लौट जाते हैं. लगातार अपनी जगह भी बदल रहे हैं. ग्रामीणों पर हमला कर रहे इन आदमखोर भेड़ियों को पकड़ने के लिए वन विभाग अब बच्चों के यूरिन में भिगोई गई रंग-बिरंगी गुड़ियों (टेडी डॉल) का इस्तेमाल कर रहा है.  

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इसको लेकर प्रभागीय वन अधिकारी अजीत प्रताप सिंह ने न्यूज एजेंसी को बताया- भेड़िये लगातार अपना स्थान बदल रहे हैं. आमतौर पर वे रात में शिकार करते हैं और सुबह तक अपने मांदों में वापस लौट जाते हैं. हमारी रणनीति उन्हें गुमराह करना और उन्हें रिहायशी इलाकों से दूर उनके मांदों के पास रखे जाल या पिंजरों की ओर आकर्षित करना है.

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बकौल वन अधिकारी- हम थर्मल ड्रोन का उपयोग करके उनका पीछा कर रहे हैं और फिर पटाखे फोड़कर और शोर मचाकर उन्हें जाल के पास सुनसान इलाकों की ओर ले जाने का प्रयास कर रहे हैं. चूंकि ये जानवर मुख्य रूप से बच्चों को निशाना बनाते हैं, इसलिए हमने जाल के पास इंसान की मौजूदगी का झूठा आभास पैदा करने के लिए बच्चों के यूरिन में भिगोए हुए रंगीन टेडी डॉल को भेड़ियों के आसपास रख रहे हैं. क्योंकि, यूरिन की गंध से भेड़िये टेडी डॉल के करीब आ सकते हैं, और पकड़े जा सकते हैं. 

तराई के जंगलों में काम करने का व्यापक अनुभव रखने वाले और वर्तमान में पर्यावरण मंत्रालय में वन महानिरीक्षक के रूप में कार्यरत वरिष्ठ आईएफएस अधिकारी रमेश कुमार पांडे ने बताया कि अंग्रेजों ने इस क्षेत्र से भेड़ियों को खत्म करने का प्रयास किया था. यहां तक ​​कि उन्हें मारने के लिए इनाम भी देते थे. हालांकि, इन प्रयासों के बावजूद भेड़िये जीवित रहने में कामयाब रहे और नदी के किनारे के इलाकों में निवास करना जारी रखा. 

अधिकारी ने आगे बताया कि जानवरों को पकड़ने के लिए कई तरह के चारे का इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें जीवित चारा, मृत चारा और नकली या नकाबपोश चारा शामिल है. उन्होंने कहा कि वन विभाग द्वारा इस्तेमाल की जा रही टेडी डॉल को नकली चारा का एक रूप माना जा सकता है, ठीक उसी तरह जैसे खेतों में पक्षियों से फसलों की रक्षा के लिए बिजूका (Scarecrow) का इस्तेमाल किया जाता है. 

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हालांकि, इस तरह के तरीकों के सफल होने का कोई प्रमाणित रिकॉर्ड नहीं है, लेकिन फिर भी इन नए  प्रयासों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, क्योंकि वे मानव-वन्यजीव संघर्ष का संभावित समाधान पेश करते हैं. 

गौरतलब हो कि हाल के महीनों में बहराइच की महसी तहसील में भेड़ियों का एक झुंड तेजी से आक्रामक हो गया है. जुलाई से हमले तेज हो गए हैं. आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, छह भेड़ियों के झुंड ने 17 जुलाई से कथित तौर पर छह बच्चों और एक महिला को मार डाला है, जबकि कई ग्रामीणों को घायल कर दिया है.

फिलहाल, छह में से चार भेड़ियों को पकड़ लिया गया है, लेकिन दो अभी भी फरार हैं, जो इलाके में खतरा बने हुए हैं. वन विभाग थर्मल और नियमित ड्रोन दोनों का उपयोग करके इन भेड़ियों की सक्रिय रूप से तलाश कर रहा है.

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