हाथरस में मरने वालों की संख्या बढ़कर 121 हो गई है. बुधवार को खुद सीएम योगी भी हाथरस पहुंचे. उन्होंने घायलों का हाल-चाल जाना और घटनास्थल का मुआयना भी किया. वहीं राष्ट्रीय महिला आयोग अध्यक्ष भी मौके पर पहुंची और स्थिति का जायजा लिया. यूं तो घटना को लेकर मुकदमा दर्ज तो हो गया, लेकिन हैरान करने वाली बात ये है कि 121 मौतों का कसूरवार कौन है? कारण, पुलिस ने अभी तक भी बाबा नारायण साकार हरि को FIR में नामजद नहीं किया है. वहीं सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार 4 लोगों से पूछताछ चल रही है और मुख्य आयोजक अभी फरार है, जिसकी गिरफ़्तारी के लिए पुलिस की टीमें गठित की गई हैं.
घटना देश ही नहीं, विदेश तक में भी चर्चा का विषय बनी. रूस समेत कई देशों ने इस घटना को लेकर दुख व्यक्त किया. घटना के करीब 29 घंटे बाद खुद को भोला बाबा बताने वाले सूरजपाल उर्प नारायण साकार हरि का बयान भी आया. खुद को निर्दोष बताते हुए भोला बाबा ने कहा वो तो पहले ही निकल गया था और भगदड़ आसामाजिक तत्वों की वजह से हुई है. ये बाबा खुलकर सामने नहीं आया है. बस बयान जारी किया है.
इस बीच मृतकों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी सामने आई. बुधवार को हाथरस से आगरा आए 21 शवों की पोस्टमार्टम में कई बड़े खुलासे हुए हैं. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में ज्यादातर लोगों की दम घुटने से मौत होने का जिक्र है. रिपोर्ट के मुताबिक तीन लोगों की मौत हेड इंजरी से हुई. शॉक और हैमरेज से भी अन्य तीन लोगों की जान चली गई. हाथरस भगदड़ कांड के बाद 21 शव पोस्टमार्टम के लिए आगरा के एसएन मेडिकल कॉलेज पहुंचे थे. सीएमओ अरुण श्रीवास्तव ने बताया कि ज्यादातर मामलों में छाती में खून जमने से लोगों का दम घुटा. जितने शव आए, उन सभी के शरीर मिट्टी से भरे हुए थे. 21 शवों में 35 से 60 साल की महिलाएं शामिल थीं.
हाथरस के सिकंदराराऊ थाने में मुख्य सेवादार देवप्रकाश मधुकर और अन्य अज्ञात सेवादारों के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ है. हालांकि, इस एफआईआर में 'भोले बाबा' का नाम नहीं है. दरअसल, बाबा ने एक समिति बना रखी थी, इसी वजह से समिति के मुख्य सेवादार समेत कई लोगों पर मुकदमा हुआ है. समिति का नाम है मानव मंगल मिलन सद्भावना समागम समिति. ये सत्संग हाथरस के सिकंदराराऊ में आयोजित किया गया था. बताया जा रहा है कि हादसे के वक्त SDM और सीओ मौके पर मौजूद थे. समिति का काम होता है सत्संग आयोजित करना और बाबा के सत्संगों के फाइनेंसस और अन्य चीजों का प्रबंधन करना. समिति ने इस आयोजन के लिए प्रशासन से परमिशन ली थी, लेकिन उस वक्त ये कहा गया था कि सत्संग में करीब 80 हजार लोग आएंगे, लेकिन वहां लाखों की संख्या में लोग पहुंच गए. इसके बाद एक निश्चित जगह पर अव्यवस्था फैल गई, जिससे ये हादसा हुआ.
हाथरस हादसे की जांच के लिए कमेटी गठित
हाथरस हादसे की जांच के लिए न्यायिक आयोग गठित कर दिया गया है. हाईकोर्ट के सेवानिवृत जज ब्रजेश कुमार की अध्यक्षता में कमेटी गठित इसकी जांच करेगी. राज्यपाल के निर्देश पर कमेटी गठित की गई है. रिटायर्ड आईएएस हेमंत राव और रिटायर्ड आईपीएस भावेश कुमार आयोग के सदस्य होंगे. बता दें कि आयोग 2 महीने में जांच कर राज्य सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपेगा. जांच में घटना के सारे पहलू शामिल किए जाएंगे, कमेटी का हेडक्वार्टर लखनऊ में रहेगा.
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अब इस घटना के बाद कई सवाल खड़े होते हैं-
पहला सवाल- गलती किसकी? क्या बाबा ने कहा था कि मेरे पैर की धूल से किस्मत बदल जाएगी?
दूसरा सवाल- बाबा के काफिले के पास कैसे इतने लोग इकट्ठा हो गए?
तीसरा सवाल- ये किसकी जिम्मेदारी थी कि बाबा के काफिले के आसपास लोग इकट्ठा न हो?
चौथा सवाल- क्या बाबा को अपने भक्तों की सुरक्षा का ध्यान नहीं रखना चाहिए था? या ये काम सेवादारों और पुलिस-प्रशासन का था?
पांचवा सवाल- क्या ये प्रशासन की जिम्मेदारी नहीं थी कि वो भीड़ को कंट्रोल करें? और क्या ये जिम्मेदारी सिर्फ समिति के सेवादारों की थी, जिन्हें शायद सुरक्षा को लेकर कोई खास ट्रेनिंग तक नहीं दी जाती?
बता दें कि जब इस तरह के सत्संग होता है तो ऐसे में लोग बाबाओं से मिलने की कोशिश करते हैं, इसलिए उनके काफिले के आसपास भीड़ लगना स्वाभाविक है. हाथरस के बाबा नारायण साकार हरि के काफिले के पास भी ऐसा ही हुआ. लोग अपनी श्रद्धा और विश्वास की वजह से वहां इकट्ठा हुए और प्रशासन ने बड़ी चूक के कारण इतना बड़ा हादसा हो गया.
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क्यों जमीनी हकीकत को नजरअंदाज किया गया?
सवाल उठता है कि लोगों की सुरक्षा संबंधी काम और भीड़ को मैनेज करना संबंधी काम पुलिस प्रशासन का पहले होता है. यहां समिति ही भीड़ को मैनेज कर रही थी. हालांकि इस तरह के एवेंट्स में आयोचनकर्ता पुलिस की मदद करते हैं, क्योंकि ये एवेंट सरकारी नहीं, बल्कि प्राइवेट होता है. इस लिहाज से आयोजनकर्ताओं का काम पुलिस की मदद करना भी होता है, क्योंकि इसमें उनका अपना निजी स्वार्थ होता है. ऐसे में ये जिम्मेदारी सेवादारों की तो थी ही, साथ ही पुलिस प्रशासन की भी उतनी ही जिम्मेदारी थी.
बड़ी लापरवाही ने ले ली लोगों की जान
हाथरस में आयोजित सत्संग के लिए परमिशन तो ली गई थी, लेकिन ये कहकर कि सत्संग में 80 हजार लोग आएंगे, लेकिन लोग आ गए उससे कहीं ज्यादा. हालांकि आयोजनकर्ता इसे अनुमान के आधार पर ही निर्धारित करता है कि भीड़ कितनी आएगी? इसमें बड़ी लापरवाही निकलकर सामने आई हैं.
लापरवाही नंबर 1- भीड़ जब बढ़ रही थी तो क्यों प्रशासन को सूचित नहीं किया गया?
लापरवाही नंबर 2- प्रशासन की तरफ से कौन अधिकारी मौके पर तैनात था? उसने क्यों तुरंत सीनियर अधिकारियों को सूचित नहीं किया कि भीड़ बढ़ गई है?
लापरवाही नंबर 3- स्थिति को भांपते हुए क्यों प्रशासन समय रहते एक्टिव नहीं हुआ?
लापरवाही नंबर 4- क्यों आयोजन कर्ताओं से बाबा के आसपास सेफ पैसेज नहीं दिया?
लापरवाही नंबर 5- क्यों बाबा ने इसको लेकर दिशा-निर्देश जारी नहीं किए?
लापरवाही नंबर 6- Exit और Entry Point क्यों नहीं बनाया गया?
लापरवाही नंबर 7- एंबुलेंस की संख्या 5 होनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा क्यों नहीं था?
लापरवाही नंबर 8- वॉलंटियर क्यों कम थे?
लापरवाही नंबर 9- प्रशासन की तरफ से ज्यादा फोर्स क्यों नहीं लगाई गई?
लापरवाही नंबर 10- खाने-पीने, पंखों की व्यवस्था पर सवाल खड़े हुए हैं?
लापरवाही नंबर 11- पूरे मैदान को समतल करके कम से कम 10 एकड़ जगह को बराबर करना था, लेकिन ऐसा क्यों नहीं हुआ?
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परमिशन देने से पहले बहुत चीजें चेक करता है प्रशासन
जब इस तरह के सत्संग होते हैं तो ऐसे में प्रशासन से तमाम तरीके की परमिशन की जरूरत पड़ती है. परमिशन के वक्त प्रशासन तमाम चीजें देखता है. मसलन, ये सत्संग कहां होने जा रहा है, वहां कितनी जमीन का इस्तेमाल सत्संग के लिए होगा? कितने लोग सत्संग में आ रहे हैं? उनके खाने-पीने की क्या व्यवस्था है? उनके सत्संग में प्रवेश लेने, वहां बैठने और बाहर जाने की क्या-क्या व्यवस्थाएं है? उनके लिए मेडिकल की क्या व्यवस्था है? गर्मी के वक्त उनके लिए पंखों की क्या व्यवस्था है? साफ-सफाई की क्या व्यवस्था है? लोग सत्संग खत्म होने पर किस तरह से लेन के जरिए बाहर निकलेंगे? पार्किंग की क्या व्यवस्था है? यानी पुलिस-प्रशासन सत्संग स्थल की Geography से लेकर सिक्योरिटी ले आउट प्लान और ट्रैफिक प्लान तक का अध्ययन करता है.
कई विभागों की परमिशन की आवश्यता होती है
किसी भी बड़े इवेंट के आयोजन के लिए अन्य विभागों की परमिशन की भी जरूरत होती है. जैसे लोकल बॉडिज (सफाई विभाग), फायर विभाग और Land Owning Agency यानी जमीन के मालिक से परमिशन लेनी होती है. जब सारी परमिशन ले ली दी जाती है तो सीनियर पुलिस अधिकारी कुछ पुलिसकर्मियों को सत्संग स्थल पर तैनात करते हैं, ताकि कोई अप्रिय घटना न हो जाए. वो लोगों की सुरक्षा के लिए मेटल डिटेक्टर और अन्य सुरक्षा से संबंधित उपकरणों के जरिए सर्चिंग-फ्रिसकिंग करते हैं. इसके बाद ही आयोजन स्थल में बैठक कक्ष में लोगों को जाने दिया जाता है, लेकिन इस केस में समिति ने घोर लापरवाहियां की.