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पहले मांझी-कुशवाहा, अब राजभर-चिराग... यूपी-बिहार को लेकर क्या है बीजेपी का गेम प्लान?

लोकसभा चुनाव को लेकर सियासी हलचल तेज हो गई है, बैठकों का दौर शुरू हो चुका है. बेंगलुरु में 26 विपक्षी दलों के नेताओं की बैठक चल रही है तो वहीं दिल्ली में भी एनडीए की बैठक है. इस बीच पिछले कुछ दिनों में जीतनराम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा, ओमप्रकाश राजभर और चिराग पासवान एनडीए में शामिल हो चुके हैं. यूपी-बिहार को लेकर बीजेपी का गेम प्लान क्या है?

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एनडीए में तेज हुए पार्टियों की घर वापसी का सिलसिला
एनडीए में तेज हुए पार्टियों की घर वापसी का सिलसिला

लोकसभा चुनाव 2024 के लिए चुनाव कार्यक्रम का ऐलान अभी नहीं हुआ है लेकिन सियासी हलचल बढ़ गई है. उत्तर से लेकर दक्षिण भारत तक, दिल्ली से लेकर बेंगलुरु तक बैठकों का दौर चल रहा है. 26 विपक्षी दलों के नेता बेंगलुरु में साझा रणनीति पर चर्चा की तो वहीं सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के 38 दलों की भी दिल्ली में बैठक हुई.

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विपक्षी दलों की पटना बैठक में जहां 15 दलों के नेता पहुंचे थे. वहीं बेंगलुरु की बैठक में 26 दलों के नेता पहुंचे. विपक्षी एकजुटता की कवायद के बीच भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) भी एक्टिव हो गई है. बीजेपी ने भी एनडीए के घटक दलों की बैठक बुलाई. कुनबा बढ़ाने की मुहिम दोनों ही तरफ से तेज हो गई है. पिछले कुछ दिनों में ही करीब आधा दर्जन दल एनडीए में शामिल हो चुके हैं. दिल्ली में होने वाली एनडीए की बैठक से ठीक एक दिन पहले चिराग पासवान ने बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की.

बीजेपी अध्यक्ष नड्डा और गृह मंत्री शाह से चिराग की मुलाकात के बाद लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के एनडीए में शामिल होने का आधिकारिक ऐलान हो गया. बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी कह दिया है कि हमने कभी किसी को बीच में नहीं छोड़ा. जो हमें छोड़कर गए हैं, उन्हें तय करना है कि वे कब आना चाहते हैं. नड्डा का ये बयान पुराने गठबंधन सहयोगियों को घर वापसी के संदेश की तरह देखा जा रहा है.

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बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा (फाइल फोटो)
बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा (फाइल फोटो)

अब सवाल ये है कि चुनावी साल में पुराने गठबंधन सहयोगियों, छोटे-छोटे दलों की याद क्यों आई? इसकी वजह तेजी से बदलते सियासी समीकरण माने जा रहे हैं. एनडीए के विस्तार की कवायद को विपक्षी एकजुटता की काट की तरह देखा जा रहा है. जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन को हराने के लिए एक फॉर्मूला दिया था- एक सीट पर एक उम्मीदवार.

नीतीश के जाल की काट है एनडीए का विस्तार?

नीतीश ने यूपी, बिहार, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और झारखंड में इस फॉर्मूले पर चुनाव लड़ने की जोरदार पैरवी की थी. नीतीश कुमार की रणनीति इन पांच राज्यों में बीजेपी को घेरने की थी. इन पांच राज्यों में लोकसभा की 224 सीटें हैं. साल 2019 के चुनाव नतीजों की बात करें तो बीजेपी ने यूपी की 80 में से 62, बिहार की 40 में से 17, झारखंड की 14 में से 11, महाराष्ट्र की 48 में से 23 और पश्चिम बंगाल की 42 में से 18 सीटों पर जीत हासिक की थी. बीजेपी की कुल 303 में से 131 सीटें इन्हीं पांच राज्यों से हैं.

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (फाइल फोटो)
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (फाइल फोटो)

नीतीश के फॉर्मूले के बाद यूपी में एनडीए से पार पाने के लिए अखिलेश यादव ने पीडीए (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) का फॉर्मूला दे दिया. ऐसे में बीजेपी ने विपक्ष के किसी भी दांव की काट के लिए छोटे-छोटे दलों पर फोकस किया जिनकी किसी जाति-वर्ग पर मजबूत पकड़ हो, वोट ट्रांसफर होता हो. बीजेपी की इस रणनीति में जीतनराम मांझी की हम, उपेंद्र कुशवाहा की आरएलजेडी, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) और सुभासपा जैसी पार्टियां फिट बैठीं. ये सभी पहले एनडीए का हिस्सा भी रह चुके हैं.

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बिहार में तीन दलों के सहारे 24 फीसदी वोट पर नजर

बीजेपी की नजर बिहार में दलित-महादलित और कोईरी समाज के 24 फीसदी वोट पर है. सूबे में 16 फीसदी दलित-महादलित वोटर हैं. बीजेपी के साथ पशुपति पारस पहले से ही एनडीए में थे. पशुपति पारस ने लोक जनशक्ति पार्टी से चिराग को तो बेदखल कर दिया लेकिन पासवान वोट का जुड़ाव चिराग के साथ ही नजर आ रहा था.

चिराग पासवान ने जेपी नड्डा से की थी मुलाकात (फाइल फोटो)
चिराग पासवान ने जेपी नड्डा से की थी मुलाकात (फाइल फोटो)

दलित-महादलित वोट गठबंधन की स्थिति में सहयोगी दल को पूरा ट्रांसफर भी होता है. इसी तरह उपेंद्र कुशवाहा जिस बिरादरी से आते हैं, उसकी भी बिहार के वोट में आठ फीसदी की हिस्सेदारी है. पारस पहले से ही साथ थे, अब चिराग-मांझी और कुशवाहा को साथ लाना बीजेपी की जातीय समीकरण साधने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है.

नए दलों की एंट्री से कितना बदलेगा समीकरण

एनडीए में नए दलों की एंट्री के बाद बिहार के साथ ही यूपी के पूर्वांचल में भी समीकरण बदल गए हैं. बिहार की गया, जहानाबाद, बक्सर समेत 13 लोकसभा सीटों पर दलित-महादलित वोट जीत-हार तय करते हैं. इन सीटों पर दलित-महादलित मतदाताओं की तादाद तीन लाख से पांच लाख के बीच है. वहीं, इनके साथ ही करीब आधा दर्जन सीटें ऐसी हैं जहां दलित-महादलित के साथ कोईरी समाज के वोटर मिल जाएं तो जीत की राह आसान हो सकती है.

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जेडीयू के गठबंधन तोड़ने के बाद वोटों का जो शून्य उत्पन्न हुआ है, बीजेपी बिहार में छोटे-छोटे दलों के साथ गठबंधन कर उसकी भरपाई करने की कोशिश में है. वहीं, ओमप्रकाश राजभर की सुभासपा यूपी के चार फीसदी राजभर मतदाताओं पर अच्छी पकड़ रखती है. पूर्वांचल की करीब दर्जनभर लोकसभा सीटों पर राजभर मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं. ओमप्रकाश राजभर भले ही अकेले जीतने की स्थिति में न हों लेकिन किसी दल के साथ चले जाएं तो उसकी जीत आसान बनाने की स्थिति में जरूर हैं.

पूर्वांचल की 26 में से छह लोकसभा सीटों पर बीजेपी को हार मिली थी. निषाद समाज के साथ ही कुर्मी मतदाता भी पूर्वी उत्तर प्रदेश की चुनावी राजनीति में मजबूत दखल रखते हैं. निषाद पार्टी और अपना दल (एस) का पहले से ही बीजेपी के साथ गठबंधन है. ऐसे में बीजेपी ने राजभर को अपने साथ लाकर बड़ा दांव चल दिया है.

 

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