आज के दौर में दुल्हन की विदाई लग्जरी कार और हेलीकॉप्टर से कराने का चलन बढ रहा है. लेकिन यूपी के झांसी में एक दुल्हन की विदाई ऐसे अनोखे तरीके से हुई कि वो चर्चा का विषय बन गई है. दरअसल, सम्पन्न परिवार में शादी होने के बावजूद दुल्हन की विदाई बैलगाड़ी से हुई. दूल्हा-दुल्हन दोनों बैलगाड़ी में सवार होकर गेस्टहाउस से निकले तो लोग देखते ही रह गए. उनके पीछे बाराती भी बैलगाड़ी से चल रहे थे. 'कौन दिशा में लेके चला रे बटोहिया...' गाने पर लोग थिरक रहे थे.
पैसे से सम्पन्न होने के बाद भी दुल्हन की ऐसी अनूठी विदाई को देखने लोग उमड़ पड़े. देखने वालों ने कहा कि उन्हें पुराने जमाने की यादें ताजा हो गईं. सड़क पर एक के बाद एक कई बैलगाड़ियां निकल रही थीं. एक बैलगाड़ी में दूल्हा-दुल्हन सवार थे. बाकी में घरवाले और बाराती. दूल्हा अपनी दुल्हन को विदा कराने के लिए रंग-बिरंगे कपड़े और फूल-मालाओं से सजी बैलगाड़ियां लेकर पहुंचा था.
साथ में ढोल नगाड़े और डीजे सहित रंग बिरंगे कपडे़ में सजे घोड़े भी थे. दुल्हन बैलगाड़ी में बैठाकर विदाई कराई गई, जिसके सारथी दूल्हे के चाचा सीपरी बाजार के लहर गिर्द निवासी पंजाब सिंह यादव बने थे.
बता दें कि पूरा मामला झांसी जनपद के सीपरी बाजार अंतर्गत लहर गिर्द का है, जहां पूर्व ब्लॉक प्रमुख पंजाब सिंह यादव के भतीजे रणवीर की शादी चिरगांव की चाहत से 2 मार्च को हुई थी. अगले दिन सुबह जब दुल्हन चाहत की विदाई हुई तो लोगों को सजी-धजी कारें नहीं बल्कि फूलों से सजी बैलगाड़ी नजर आई. इसी बैलगाड़ी पर दूल्हे राजा अपनी चाहत को विदा कराकर ले गए. सड़कों से गुजर रहे लोगों ने जब अनोखी विदाई देखी तो उन्हें फिल्म 'नदिया के पार' और पुराने जमाने की याद आ गई. जब ग्रामीण लोग बैलगाड़ी से बारात ले जाते थे.
दूल्हे के घरवालों ने क्या कहा?
इसको लेकर दूल्हे के चाचा पंजाब सिंह कहते हैं कि बैलगाड़ी हमारी परंपरा है, हेलीकॉप्टर नहीं. बैलगाड़ी से विदाई करने का उद्देश्य गौसेवा के लिए प्रेरित करना है. जो गौ माता इधर-उधर घूम रही हैं उन्हें बचाने के लिए यह कदम उठाया है. इससे लोगों के अंदर एक भावना जागृत होगी कि वह इन्हें पालें, बाहर नहीं छोड़ें.
बकौल पंजाब सिंह यादव- वह अपनी परंपरा और संस्कृति को बनाए रखने के लिए नई बहू को बैलगाड़ी से विदा कर घर ले जा रहे हैं, जिससे नया जीवन शुरू करने वाले बेटे बहू भारतीय संस्कृति से जुड़े रहें. वहीं, दूल्हे के पिता हरिओम यादव ने कहा कि वह किसान के बेटे हैं. किसानों की जो परंपराएं थी, ग्रामीण क्षेत्रों में बैलगाड़ियों से विदाई कराना जिसे लोग भूलते जा रहे हैं, उस परंपरा को पुनः सुचारू करने के लिए दिमाग में बैलगाड़ी से विदाई कराने की बात आई.