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UP निकाय चुनाव में OBC आरक्षण पर क्यों अड़ी है भारतीय जनता पार्टी?

उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया है और बिना आरक्षण के चुनाव कराने का आदेश दिया है. अदालत के फैसले ने विपक्ष को मौका दे दिया तो बीजेपी नेता ओबीसी के तरफदार बनकर उतर गए हैं. सीएम योगी से लेकर केशव प्रसाद मौर्य तक ने ऐलान कर दिया है कि बिना ओबीसी आरक्षण के चुनाव नहीं कराए जाएंगे?

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योगी आदित्यनाथ और केशव प्रसाद मौर्य
योगी आदित्यनाथ और केशव प्रसाद मौर्य

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने उत्तर प्रदेश के नगर निकाय चुनाव के लिए जारी ओबीसी आरक्षण के नोटिफिकेशन को रद्द कर दिया है. हाईकोर्ट ने कहा है कि बिना ओबीसी आरक्षण निर्धारण के ही फौरन चुनाव कराए जाएं. कोर्ट के फैसला आते ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि बिना ओबीसी आरक्षण के निकाय चुनाव नहीं कराए जाएंगे तो डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने भी कह दिया है कि ओबीसी समुदाय का आरक्षण खत्म नहीं होने देंगे. ऐसे में सवाल उठता है कि सूबे में बीजेपी आखिर क्यों ओबीसी आरक्षण पर अड़ गई है?  

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हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद सत्ताधारी बीजेपी के लिए ओबीसी वर्ग को आरक्षण के बगैर शहरीय निकाय चुनाव कराना आसान नहीं है. इसकी वजह यह है कि विपक्षी दलों ने अदालत से फैसला आने के फौरान बाद ही योगी सरकार और बीजेपी को ओबीसी विरोधी बताने में जुट गई है. इतना ही नहीं सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने यहां तक कह दिया कि बीजेपी ने अभी तो पिछड़े वर्ग के आरक्षण का हक छीना है और बाबा साहब डॉ. अंबेडकर के द्वारा दिए गए दलितों के आरक्षण को भी छीन लेगी. बीजेपी सरकार बाबा साहब के दिए संविधान को भी खत्म करने की साजिश कर रही है. 

विपक्षी तेवर से बीजेपी की बढ़ी चिंता!

विपक्षी तेवर ने बीजेपी के लिए चिंता खड़ी कर दी है. सूबे में बीजेपी ओबीसी समुदाय के सहारे सत्ता के वनवास खत्म करने में सफल रही थी. 2017-2022 विधानसभा और 2014-2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ओबीसी जातियों के दम पर जीत दर्ज कर सकी है. पार्टी ने लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारी में भी पिछड़े और अति पिछड़े वोट बैंक को ही सियासी आधार मानकर क्लीन स्वीप का लक्ष्य तय किया है. ऐसे में हाईकोर्ट के निर्णय और विपक्षी दलों के तेवर ने बीजेपी के लिए सियासी चिंता बढ़ा दी है. 

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दरअसल, उत्तर प्रदेश की सियासत मंडल कमीशन के बाद ओबीसी समुदाय के इर्द-गिर्द सिमट गई है. सूबे की सभी पार्टियां ओबीसी को केंद्र में रखते हुए अपनी राजनीतिक एजेंडा सेट कर रही हैं. यूपी में सबसे बड़ा वोटबैंक पिछड़ा वर्ग का है. सूबे में 52 फीसदी पिछड़ा वर्ग की आबादी है, जिसमें 43 फीसदी गैर-यादव बिरादरी का है. ओबीसी की 79 जातियां हैं, जिनमें सबसे ज्यादा आबादी यादव और दूसरे नंबर पर कुर्मी समुदाय की है. ओबीसी जातियों में यादवों की आबादी कुल 20 फीसदी है जबकि राज्य की आबादी में यादवों की हिस्सेदारी 11 फीसदी है, जो सपा का परंपरागत वोटर माना जाता है.

यूपी में OBC जातियों में किसकी कितनी हिस्सेदारी?

वहीं, यूपी में गैर-यादव ओबीसी जातियां सबसे ज्यादा अहम हैं, जिनमें कुर्मी-पटेल 7 फीसदी, कुशवाहा-मौर्या-शाक्य-सैनी 6 फीसदी, लोध 4 फीसदी, गड़रिया-पाल 3 फीसदी, निषाद-मल्लाह-बिंद-कश्यप-केवट 4 फीसदी, तेली-शाहू-जायसवाल 4, जाट 3 फीसदी, कुम्हार/प्रजापति-चौहान 3 फीसदी, कहार-नाई- चौरसिया 3 फीसदी, राजभर-गुर्जर 2-2 फीसदी हैं. ऐसे में बीजेपी ने गैर-यादव ओबीसी जातियों को साधकर सूबे में सत्ता का सूखा खत्म किया था और यह वोटबैंक अगर खिसका तो फिर बीजेपी अपने उसी मुकाम पर पहुंच जाएगी. 

योगी सरकार के 52 सदस्यीय मंत्रिमंडल में 18 मंत्री पिछड़े वर्ग से हैं. विधानसभा चुनाव 2022 में भाजपा ने 137 सीटों पर ओबीसी प्रत्याशी उतारे थे,  जिनमें से 89 विधायक जीते हैं. बीजेपी ने ओबीसी समुदाय से आने वाले भूपेंद्र सिंह चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बना रखा है. हालांकि, 2022 के चुनाव में ओबीसी वोटों पर बीजेपी की पकड़ कमजोर हुई है, जिसके चलते सपा 46 सीटों से 111 पर पहुंच गई है. पूर्वांचल के कई जिलों में बीजेपी अपना खाता भी नहीं खोल सकी थी. ऐसे में निकाय चुनाव पर कोर्ट के आए फैसले ने बीजेपी को बेचैन कर दिया है. 

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बीजेपी नेता डैमेज कंट्रोल में जुटे

निकाय चुनाव पर हाईकोर्ट का फैसला आते ही सूबे में बीजेपी के ओबीसी चेहरा डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य से लेकर मंत्री स्वतंत्रदेव सिंह और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी डैमेज कन्ट्रोल में जुट गए. ये तीनों ही नेता सरकार और संगठन की तरफ से ओबीसी समुदाय की आवाज बनकर खड़े हो गए और साफ कर दिया है कि प्रदेश में बिना ओबीसी आरक्षण के निकाय चुनाव नहीं होंगे. 

केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि निकाय चुनाव में ओबीसी को आरक्षण दिलाने के लिए हर स्तर पर संघर्ष करेंगे. पिछड़े वर्ग के अधिकारों को लेकर कोई समझौता नहीं किया जाएगा और इसके लिए कानून के जानकारों से भी सलाह लेंगे. उन्होंने दावा किया कि बीजेपी है तो आरक्षण है और रहेगा. वहीं, कैबिनेट मंत्री स्वतंत्र देव सिंह ने कहा कि केंद्र में नरेंद्र मोदी और प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में बीजेपी सरकार के रहते पिछड़ों से उनके आरक्षण का हक कोई नहीं छीन सकता है. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी ने कहा कि बीजेपी प्रत्येक समुदाय के अधिकारों के संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध है. किसी के साथ कोई भी अन्याय नहीं होगा. 

बीजेपी को लगता है कि पिछड़े वर्ग को आरक्षण के बिना निकाय चुनाव कराने से पार्टी को बड़ा नुकसान हो सकता है. साथ ही लोकसभा चुनाव में भी इसका खामियाजा उठाना पड़ेगा. इसीलिए हाईकोर्ट का फैसला आते ही विपक्ष ने मोर्चा खोला तो बीजेपी के नेता ओबीसी की आवाज बनकर खड़े हो गए हैं और बिना आरक्षण के चुनाव कराने के लिए तैयार नहीं है. यूपी में बीजेपी का सियासी आधार ओबीसी पर ही टिका है और वो खिसका तो सत्ता की राह मुश्किल हो जाएगी. इसीलिए बीजेपी किसी तरह का कोई भी जोखिम उठाने को तैयार नहीं है. 

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