उत्तर प्रदेश विधान मंडल (विधानसभा और विधान परिषद भवन) में कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी को अलॉट किए गए बड़े दफ्तर वापस ले लिए गए हैं. अब दोनों पार्टियों को छोटे कमरे अलॉट हुए हैं. ये कमरे पार्टियों द्वारा विधान मंडल में दफ्तर के रूप में इस्तेमाल किए जाते हैं, जिनमें एमएलए और एमएलसी बैठते हैं. विधान मंडल सचिवालय ने यह कदम विधानसभा में दोनों पार्टियों का संख्याबल कम होने के नाते उठाया है.
कांग्रेस पार्टी के इतिहास में यह पहली बार हुआ है, जब सबसे बड़े राज्य के विधान मंडल के भीतर उनका बड़ा ऑफिस छिन गया है. यूपी विधानसभा सदस्य नियमावली 1987 की धारा 157 (2) कहती है कि ऐसे दल जिनकी सदस्य संख्या 25 या उससे अधिक है, उन्हें सचिवालय द्वारा कक्ष, चपरासी, टेलीफोन आदि उन शर्तों के साथ दिए जा सकते हैं जैसा विधानसभा अध्यक्ष निर्धारित करें.
संख्याबल के आधार पर नए सिरे से अलॉट किए गए दफ्तर
नियमावली के मुताबिक 25 से कम सदस्यों वाले दलों को कक्ष और अन्य सुविधाएं प्राप्त करने का अधिकार नहीं है. इस संबंध में अंतिम निर्णय का अधिकार स्पीकर के पास है. विधान मंडल में बसपा और कांग्रेस के कार्यालय लंबे अरसे से आवंटित थे. दोनों दलों के पुराने कार्यालय वापस ले लिए गए हैं, जबकि समाजवादी पार्टी का संख्याबल अधिक होने के कारण उसके कार्यालय को बड़ा कर दिया गया है. निषाद पार्टी और राजाभैया की पार्टी को भी छोटे कमरे अलॉट किये गए हैं.
यूपी में रालोद और सुभासपा कांग्रेस और बसपा से बड़े दल
दरअसल, 2022 के विधानसभा चुनाव में बीएसपी ने सिर्फ 1 विधानसभा की सीट जीती थी, जबकि कांग्रेस पार्टी के खाते में सिर्फ दो सीटें आई थीं. स्थिति यह है कि यूपी विधानसभा में जयंत चौधरी की राष्ट्रीय लोक दल और ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, बसपा और कांग्रेस से बड़े दल हो चुके हैं. यही नहीं राजा भैया की पार्टी जनसत्ता दल लोकतांत्रिक भी बसपा से बड़ी पार्टी और कांग्रेस के बराबर पहुंच गई है. सुभासपा और आरएलडी को केबिन अलॉट किए गए हैं.