यूपी के देवरिया जिले में 18 साल की एक लड़की ने समाज को कालाजार बीमारी के बारे में जागरूक करने का बीड़ा उठाया है. उसके इस अभियान को लोग पिंकी की पाठशाला के नाम से पुकारते हैं. अभी तक वो बीस हजार से अधिक लोगों को इस बीमारी के लक्षण, बचाव और इलाज के बारे में जागरूक कर चुकी है.
गौरतलब है कि बनकटा ब्लॉक के नियरवा गांव की रहने वाली पिंकी चौहान साल 2015 में कालाजार जैसी भयंकर बीमारी की चपेट में आ गई थी. उस वक्त वो कक्षा 6 में थी. जिले के कई अस्पतालों में इलाज कराने पर भी कोई फायदा नहीं हुआ. इसके बाद परिजन उसे कुशीनगर के जिला अस्पताल ले गए. यहां इलाज होने पर पिंकी ठीक हुई.
पिंकी ने बताया कि सही होने के साल भर बाद यानी कि 2016 में वो दोबारा इसी बीमारी की चपेट मे आ गई. इस बार उसे स्किन डिजीज वाला कालाजार हो गया था. शरीर पर बड़े-बड़े चकत्ते पड़ गए थे. काफी इलाज कराने के बाद भी फायदा नहीं हुआ. चकत्तों की वजह से लोग उसे घृणा की नजर से देखने लगे थे. हालांकि, बनकटा पीएचसी में चार महीने के इलाज के बाद उसे बीमारी से निजात मिल गई.
2019 में दसवीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद पिंकी ने संकल्प लिया कि वो इस बीमारी के बारे में लोगों को जागरूक करेगी. पिंकी का कहना है, "मैं नहीं चाहती कि जो मैंने झेला है वो किसी को झेलना पड़े. इसी वजह से मैंने लोगों को इस बीमारी के बारे में जागरूक करने का बीड़ा उठाया है".
पिंकी बताती हैं, "मैं पढ़ाई करने के साथ ही रोजाना अपने ब्लॉक के एक गांव को चुनती थी. वहां जाकर लोगों को इकट्ठा कर कालाजार के बारे में बताती थी. मई-जून और फरवरी में आईआरएस के तहत छिड़काव के लिए लोगों को प्रेरित भी करती थी. जब ये जानकारी CFAR (सेंटर फॉर एडवोकेसी रिसर्च) संस्था के जिला समन्वयक दीप नारायण को हुई तो उन्होंने क्लस्टर फोरम में जोड़ा".
पिंकी बताती हैं, "अभी बीए की पढ़ाई करने के साथ ही जूनियर हाईस्कूल, हाईस्कूल इंटर कॉलेज और डिग्री कालेज में भी छात्र-छात्राओं को जागरूक कर रही हूं. यह बीमारी बालू मक्खी से होती है. इससे इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है. समय पर इलाज न होने पर मौत तक हो सकती है".
उधर, मलेरिया विभाग के DMO सुधकर मणि त्रिपाठी ने बताया कि इस वर्ष कालाजार के आठ केस सामने आए हैं. इसमें से सात बनकटा ब्लॉक के और एक भटनी ब्लॉक से है.