बहराइच हिंसा के आरोपियों के एनकाउंटर पर विपक्ष सवाल उठा रहा है. परिजनों का भी दावा है कि पुलिस आरोपियों को घर से उठाकर ले गई. इन सबके बीच यूपी के पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह का बयान सामने आया है. उन्होंने कहा कि एनकाउंटर पर अगर इस तरह का शक पैदा होता है तो इसकी जांच आवश्यक होती है. गिरफ्तारी घर से करने के बाद उसे बाहर दिखाना गलत है. इस दौरान यदि पैर में गोली मार दी गई है तो यह और भी गंभीर जुर्म है, हत्या के प्रयास का जुर्म है. सवाल उठ रहे हों तो जांच सीआईडी से कराई जानी चाहिए.
पूर्व डीजीपी ने आगे कहा कि पुलिस बहुत दबाव में काम कर रही है, जिसकी वजह से वह निष्पक्ष कार्रवाई नहीं कर पा रही है. तमाम जगह कांवड़ियों ने कांवड़ यात्रा के दौरान तोड़फोड़ की आगजनी की लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई. अभी कौशांबी में इसी तरीके से जुलूस में मुसलमान के घरों पर रंग डाला गया, उसका कोई वीडियो बना रहा था तो उसका मोबाइल छीन लिया, झगड़ा हो गया. पुलिस ने थोड़ी बहुत कार्रवाई की तो उल्टे इंस्पेक्टर और चौकी इंचार्ज सस्पेंड हो गया.
लगता है कि अगर पुलिस कार्रवाई करती है तो सस्पेंड हो जाती है और अगर कार्रवाई नहीं करती है तो बहराइच जैसे कांड हो जाते हैं. तो पुलिसिंग के लिए अजीब सा माहौल हो गया है, इसपर सरकार को गंभीरता से सोचना चाहिए.
सुलखान सिंह के मुताबिक, बहराइच में जो दंगा हुआ उसमें लोग नीचे से उकसा रहे थे. झंडा उखाड़ लिया, रेलिंग तोड़ दिया, यह क्रिमिनल एक्टिविटी है. इसमें भी कार्रवाई होनी चाहिए. वीडियो में यह भी देखना चाहिए कौन लोग उकसा रहे थे. पूरे मामले में जांच (सीबी) सीआईडी से करवाई जानी चाहिए क्योंकि स्थानीय पुलिस की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े हो गए हैं.
बकौल पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह- एनकाउंटर अगर गलत करेंगे तो सवाल खड़े ही होंगे. आज भी 250 पुलिस वाले यूपी की जेलो में हैं. उनसे सबक लेना चाहिए, ऐसा नहीं करना चाहिए. एनकाउंटर कोई पॉलिसी का विषय नहीं है. इसमें अगर अपराधी पुलिस पर गोली चलाते हैं या भागने का प्रयास करते हैं तो ही पुलिस को बल प्रयोग करने का या फायरिंग का अधिकार है. गंभीर परिस्थितियों में पुलिस गोली चला सकती है जिसका भारतीय कानून में प्रावधान है.