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भीम आर्मी, पश्चिम यूपी की दलित सियासत... कैसे बड़े दलों के साथ मंच साझा कर चंद्रशेखर ने राजनीति में बनाई जगह

चंद्रशेखर आजाद पर सहारनपुर के देवबंद में जानलेवा हमला हुआ है. दिल्ली से अपने घर छुटमलपुर कस्बे जाते समय उन पर चार राउंड फायरिंग हुई है. इस हमले में वह बाल-बाल बच गए हैं. गोली उन्हें छूते हुए निकल गई है. चंद्रशेखर का सहारनपुर समेत पश्चिमी यूपी के कई जिलों के दलित समाज में अच्छी पकड़ है. हालांकि वह अपनी राजनीतिक स्थिति को मजबूत करने के लिए लगातार राजनीतिक दलों के साथ गठबंधन की कोशिश करते रहे हैं.

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चंद्रशेखर ने अप्रैल में अखिलेश और जयंत चौधरी के साथ साझा किया था मंच (फाइल फोटो)
चंद्रशेखर ने अप्रैल में अखिलेश और जयंत चौधरी के साथ साझा किया था मंच (फाइल फोटो)

भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आजाद पर 28 जून को सहारनपुर के देवबंद में जानलेवा हमला हो गया था. स्विफ्ट कार से आए हथियारबंद बदमाशों ने उनके काफिले पर गोलियां बरसा दीं. इस दौरान एक गोली चंद्रशेखर की पीठ को छूते हुए निकल गई, जिससे वह जख्मी हो गए. डॉक्टरों का कहना है कि वह फिलहाल खतरे से बाहर हैं. वहीं पुलिस ने हमलावरों की कार बरामद कर ली है. इसके अलावा चार संदिग्धों को हिरासत में लेकर पूछताछ भी शुरू कर दी है.

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इससे पहले 2020 में बुलंदशहर उपचुनाव के दौरान चंद्रशेखर के काफिले पर फायरिंग का मामला सामने आया था. खुद उन्होंने ट्वीट कर दावा किया था कि बुलन्दशहर के चुनाव में हमारे प्रत्याशी उतारने से विपक्षी पार्टियां घबरा गई हैं. उनकी रैली ने इनकी नींद उड़ा दी है, जिसकी वजह से अभी कायरतापूर्ण तरीके से मेरे काफिले पर गोलियां चलाई गई हैं. यह इनकी हार की हताशा को दिखाता है. ये चाहते हैं कि माहौल खराब हो लेकिन हम ऐसा नहीं होने देंगे.

सहारनपुर के देवबंद में चंद्रशेखर पर फायरिंग

आइए जानते हैं कि चंद्रशेखर का राजनीतिक रसूख क्या है? किस इलाके में उनकी मजबूत पकड़ है और कैसे दलित सियासत में उन्होंने अपनी जगह बनाई?

योगी के खिलाफ लड़ चुके हैं चुनाव

यूपी में पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में भीम आर्मी चीफ मैदान में थे. उन्होंने आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) दल से सीएम योगी आदित्यनाथ के खिलाफ गोरखपुर शहर से चुनाव लड़ा था. उन्होंने 15 मार्च 2020 को इस दल को लॉन्च किया था. 

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पश्चिमी यूपी के नेता होने के बाद भी वह पूर्वांचल जाकर चुनाव लड़े थे. करीब 4 लाख वोटर्स वाली इस सीट पर उनके समाज के केवल 50 हजार वोटर ही थे. लाजमी था कि वह यह चुनाव बुरी तरह हार गए थे. उनकी जमानत तक जब्त हो गई थी. उन्हें महज 7543 वोट मिले थे. 

इससे पहले उनकी 2019 के लोकसभा चुनाव में पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी से चुनाव लड़ने की योजना थी लेकिन  सपा-बसपा गठबंधन को समर्थन देने के बाद उन्होंने अपना मन बदल लिया था.

सपा के साथ गठबंधन चाहते थे चंद्रशेखर

2022 में सपा का साथ चाहते थे चंद्रशेखर

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने आजाद पर हमले की निंदा की है. उन्होंने ट्वीट किया,'देवबंद में आजाद समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चन्द्रशेखर आजाद पर सत्ता संरक्षित अपराधियों के द्वारा जानलेवा हमला घोर निंदनीय है. बीजेपी राज में जब जनप्रतिनिधि ही सुरक्षित नहीं, तो आम जनता का क्या होगा.

अखिलेश यादव और चंद्रशेखर के बीच अच्छे संबंध हैं. पिछले साल यूपी विधानसभा चुनाव से पहले चंद्रशेखर आजाद ने समाजवादी पार्टी के दफ्तर पहुंचकर अखिलेश यादव से मुलाकात की थी. दोनों के बीच गठबंधन और सीट बंटवारे को लेकर बातचीत हुई थी. हालांकि बाद में बात नहीं बन पाई थी. हालांकि तब चंद्रशेखर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा था कि यूपी चुनाव में सपा और आजाद पार्टी का गठबंधन नहीं होगा. अखिलेश यादव को दलितों की जरूरत नहीं है.

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अखिलेश-जयंत चौधरी के साथ मंच किया साझा

बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती पर इस साल अप्रैल में मध्य प्रदेश के महू में पहली बार सपा प्रमुख अखिलेश यादव, आरएलडी चीफ जयंत चौधरी और दलित नेता चंद्रशेखर आजाद एक साथ नजर आए थे. इसके बाद से कहा जा रहा है कि यूपी में 2024 के चुनावी मैदान में भी यही तस्वीर नजर आ सकती है. कहा जाता है कि अखिलेश और चंद्रशेखर को एक मंच पर लाने के पीछे जयंत चौधरी सूत्रधार हैं. अगर यूपी में ये तिकड़ी आकार ले लेती है तो लोकसभा चुनाव में पश्चिम यूपी में बीजेपी और बीएसपी दोनों को कड़े मुकाबले का सामना करना पड़ सकता है. 

चंद्रशेखर से मिली थीं प्रियंका

प्रियंका ने चंद्रशेखर को कहा था भाई

कांग्रेस  चंद्रशेखर आजाद को पश्चिमी यूपी में दलित-मुस्लिमों का नेता मानती है. चंद्रशेखर को मार्च 2019 बिना अनुमति सहारनपुर में रैली निकलाने के आरोप में पुलिस ने अरेस्ट कर लिया था. इसी के बाद उनकी तबीयत बिगड़ गई थी, जिसके बाद उन्हें मेरठ में भर्ती कराया गया था. तब प्रियंका गांधी ने अस्पताल पहुंचकर चंद्रशेखर आजाद से मुलाकात की थी. उन्हें भाई कहकर बुलाया था. तब उनके साथ तत्कालीन पश्चिमी यूपी के प्रभारी ज्योतिरादित्य सिंधिया भी मौजूद थे. तब प्रियंका गांधी ने कहा था कि चंद्रशेखर युवा हैं, संघर्ष कर रहे हैं. यह सरकार उस नौजवान को कुचलना चाहती है. 

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सूत्रों के हवाले से खबर आई थी कि पश्चिमी यूपी के नेता इमरान मसूद की राय पर प्रियंका चंद्रशेखर से मिलने पहुंची थीं. सितंबर 2018 में इमरान मसूद ने कहा था कि कांग्रेस और चंद्रशेखर बीजेपी को हटाने के लिए एक जैसा लक्ष्य साझा करते हैं. मैं तो चंद्रशेखर जी के साथ पहले दिन से हूं... हम दोनों का मकसद भी एक है और दुश्मन भी और वो है बीजेपी.'

चंद्रशेखर ने मायावती से जोड़ लिया था रिश्ता

भीम आर्मी चीफ ने बसपा से नजदीकी बढ़ाने का कोई मौका नहीं छोड़ा. जब सितंबर 2018 में चंद्रशेखर ने जेल से छूटे थे. तब मीडिया के एक सवाल पर उन्होंने कहा था, "मायावतीजी मेरे परिवार की सदस्य हैं, मेरी बुआ हैं, मैं उनका भतीजा हूं. हमारा उनका पारिवारिक रिश्ता है." उन्होंने मायावती का प्रधानमंत्री पद के लिए समर्थन देने तक की बात कही थी. हालांकि मायावती ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर उनके दावे को खारिज कर दिया था. तब मायावती ने कहना था कि कुछ लोग राजनीतिक स्वार्थ के कारण मेरे साथ कभी भाई-बहन का, तो कभी बुआ-भतीजे का रिश्ता बता रहे हैं. जातीय उत्पीड़न कांड में रिहा किया गया व्यक्ति भी मुझे अपनी बुआ बता रहा है. मेरा ऐसे लोगों से कोई रिश्ता नहीं है."

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इसके बाद दिसंबर 2022 में एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने भविष्य में बसपा से गठबंधन पर कहा था- मैं कई बार बसपा के साथ गठबंधन की कोशिश की. मैं मायावती जी से बहुत छोटा हूं. उन्होंने मुझसे ज्यादा संघर्ष किया है. मैंने अपनी तरफ से हर संभव कोशिश की लेकिन मायावती ने मेरे के लिए सभी रास्ते बंद कर दिए हैं.

बिहार चुनाव में पप्पू यादव की पार्टी को चंद्रशेखर ने किया था सपोर्ट

बिहार चुनाव में पप्पू यादव का दिया साथ

चंद्रशेखर आजाद ने 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी. वह क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के साथ राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी (लोकतांत्रिक) के नेतृत्व वाले प्रगतिशील जनतांत्रिक गठबंधन में शामिल हुए थे. 

जिस इलाके में जन्मे वहीं मारी गई गोली

चंद्रशेखर आजाद का जन्म 3 दिसंबर 1986 को सहारनपुर के छुटमुलपुर कस्बे में हुआ था. इस इलाके में 28 जून को उन्हें गोली मारी गई है. चंद्रशेखर बहुत ही सामान्य परिवार से हैं. उन्होंने 2012 में गढ़वाल यूनिवर्सिटी से एलएलबी की पढ़ाई की. फरवरी 2021 में, टाइम पत्रिका ने उन्हें 100 उभरते नेताओं की अपनी वार्षिक सूची में शामिल किया था.

दलितों के लिए शुरू से उठाते रहे हैं आवाज

चंद्रशेखर आजाद दलित-बहुजन अधिकार कार्यकर्ता व राजनेता हैं. वह शुरू से दलित समाज के लिए आवाज उठाते रहे हैं, जिसकी शुरुआत उन्होंने अपने एएचपी कॉलेज से की थी. ऐसा कहा जाता है कि इस कॉलेज में दलित छात्रों के साथ बहुत भेदभाव होता था. राजपूत छात्रों के कारण यहां दलित छात्रों के लिए अलग सीट, पानी की अलग व्यवस्था थी. चंद्रशेखर ने इस भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई. बताया जाता है कि यही कॉलेज भीम आर्मी का प्रेरक केंद्र बना. 2015 में इसकी औपचारिक रूप से स्थापना की गई. भीम आर्मी का पूरा नाम 'भीम आर्मी भारत एकता मिशन' है. यूपी सहित देश के सात राज्यों में फैली है. चंद्रशेखर आजाद भीम आर्मी के सह-संस्थापक और राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. उनका कहना है कि भीम आर्मी का मकसद दलितों की सुरक्षा और उनका हक दिलवाना है, लेकिन इसके लिए वह हर तरीके को आजमाने का दावा भी करते हैं, जो कानून के खिलाफ भी है. 

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सहारनपुर हिंसा से चर्चा में आए

चंद्रशेखर ने 2022 में चुनाव आयोग को दिए एफिडेविट में बताया था कि उनके खिलाफ 17 आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं. वैसे पहली बार चंद्रशेखर आजाद का नाम की चर्चा 5 मई 2017 को सहारनपुर के शब्बीरपुर गांव में दलित और ठाकुर समुदाय के बीच हुई जातीय हिंसा में मुख्य आरोपी के तौर पर सामने आने के बाद हुई थी. जातीय हिंसा के बाद वह फरार हो गए थे, जिसके बाद पुलिस ने उन पर 12 हजार रुपये का इनाम घोषित कर दिया था. हालांकि उन्हें बाद में यूपी एसटीएफ ने हिमाचल प्रदेश के डलहौजी से गिरफ्तार कर लिया गया था. उनकी गिरफ्तारी के बाद सहारनपुर में हिंसा भड़के के डर से दो दिन लिए मोबाइल इंटरनेट, मैसेजिंग और सोशल मीडिया पर बैन लगा दिया गया था. इस मामले में चंद्रशेखर को 15 महीने जेल में रहना पड़ा था.

यूपी में ओबीसी के बाद सबसे ज्यादा दलित वोट

पश्चिमी यूपी में चंद्रशेखर दलित समाज में यूथ आइकन हैं. यूपी की पॉलिटिक्स में ओबीसी के बाद दलित सबसे ज्यादा प्रभावी हैं. यहां 21 प्रतिशत दलित हैं, जिसमें 12 प्रतिशत जाटव और 9% गैर जाटव दलित हैं. यूपी में 84 सीटें दलितों के लिए आरक्षित हैं. यूपी में 49 जिले ऐसे हैं, जहां दलित मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा है. वहीं 42 जिले ऐसे हैं, जहां दलित मतदाताओं की संख्या 20 प्रतिशत से ज्यादा है. इनमें मुजफ्फरनगर में 23%, सहारनपुर में 24%, मेरठ में 23%, बिजनौर में 25%, गाजियाबाद में 21%, बागपत में 20%, अमरोहा में 22%, मुरादाबाद में 18% और गौतम बुद्धनगर में 18% दलित वोटर्स हैं. इसी तरह लोकसभा की 17 सीटें दलितों के लिए रिजर्व हैं.

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