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शिवपाल यादव की लाइफ के वो गच्चे, जिनकी विधानसभा में बात कर रहे थे CM योगी आदित्यनाथ!

यूपी विधानसभा में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सपा नेता शिवपाल यादव को नेता विपक्ष नहीं बनाए जाने पर तंज कसा है. सीएम योगी ने कहा, चाचा हर बार गच्चा खा जाते हैं. उनके इस बयान पर सदन में मौजूद शिवपाल ने भी जवाब दिया और कहा- गच्चा तो आपने भी मुझे दिया.

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मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सदन में सपा नेता शिवपाल सिंह यादव को लेकर तंज कसा है.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सदन में सपा नेता शिवपाल सिंह यादव को लेकर तंज कसा है.

यूपी विधानसभा में मॉनसून सत्र चल रहा है और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का सदन में एक बार फिर सपा नेता शिवपाल सिंह यादव को घेरने का अंदाज चर्चा में है. दरअसल, विधानसभा में नेता विपक्ष बनाए गए माता प्रसाद पांडेय ने मंगलवार को सीएम योगी आदित्यनाथ से एक सवाल पूछा. इस पर सीएम योगी ने सबसे पहले पांडेय को जिम्मेदारी मिलने पर बधाई दी और सपा नेता शिवपाल यादव पर तंज कस दिया. सीएम योगी ने शिवपाल का नाम लिए बिना कहा, "आपके (माता प्रसाद पांडेय) चयन के लिए बधाई देता हूं. ठीक है- ये अलग विषय है कि आपने चच्चा (शिवपाल सिंह यादव को लेकर) को गच्चा दे ही दिया. चच्चा हमेशा ऐसे ही मार खाता है. उनकी नियति ही ऐसी है, क्योंकि भतीजा (सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव) हमेशा भयभीत रहता है, लेकिन आप सदन के वरिष्ठ सदस्य हैं. आपका मैं सम्मान करता हूं." 

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इस पर शिवपाल ने जवाब दिया और कहा, "हमें गच्चा नहीं मिला है, क्योंकि माता प्रसाद जी बहुत सीनियर हैं. हम लोगों ने स्पीकर के लिए भी उनका नाम बढ़ाया था. वैसे तो तीन साल तक हम आपके (सीएम योगी आदित्यनाथ) संपर्क में भी रहे. गच्चा तो हमें आपने भी दिया है. लेकिन 2027 में दोनों डिप्टी सीएम (केशव प्रसाद मौर्य और बृजेश पाठक के संदर्भ में) आपको गच्चा देंगे." दिल्ली में अखिलेश यादव ने भी सफाई में कहा, ''मैंने किसी को धोखा नहीं दिया. उन्होंने (मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ) दिल्ली को गच्चा दिया है.''

हालांकि, ये पहली बार नहीं है जब सीएम योगी ने सदन में हंसी-मजाक के माहौल में शिवपाल पर वार किया है. इससे पहले फरवरी में जब बजट सत्र चल रहा था, तब सीएम योगी ने कहा था, सपा के लिए पीडीए का मतलब है अथॉरिटी. मगर, उसी में चच्चू (शिवपाल यादव) के साथ अन्याय. चच्चू को छोड़ दिया. चच्चू लगातार रगड़ते रहे. अगर ये राम को मानते तो चच्चू को को साइडलाइन नहीं करते. कम से कम महाभारत ही पढ़ लें. क्या चाचा पीडीए का हिस्सा नहीं हैं. 

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जानिए शिवपाल ने क्या जवाब दिया था?

शिवपाल यादव ने कहा था, ''अचानक नेता सदन (योगी आदित्यनाथ) को मेरी चिंता हो जाती है. ऐसा लगता है, मानो सदन में 'चाचा पर चर्चा' कार्यक्रम चल रहा है. आपके (सदन अध्यक्ष) माध्यम से कहना चाहूंगा कि चाचा पीडीए का हिस्सा थे, हैं और रहेंगे. समाजवादी थे, हैं और रहेंगे. अखिलेश के चाचा थे, हैं और रहेंगे. मेरी चिंता से ज्यादा मेरे साथी, जिन्होंने अभी दिल और दल बदला है, उनकी चिंता होनी चाहिए. नहीं तो ये फिर वापस आ जाएंगे.''

अखिलेश यादव और शिवपाल यादव (फाइल फोटो)

दरअसल, पिछले कुछ सालों में सपा के अंदर शिवपाल सिंह यादव को लेकर उतार-चढ़ाव भरा माहौल देखने को मिला है. एक समय ऐसा भी आया, जब प्रदेश अध्यक्ष पद को लेकर विवाद हुआ और यादव कुनबे में दरार आ गई. शिवपाल ने अलग पार्टी बना ली और अखिलेश के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. पिछले साल जब सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव का निधन हुआ, तब परिवार में एक बार फिर एकता बनते दिखी और परिवार में ऑल इज वेल का संदेश देने की कोशिश की गई. आखिर शिवपाल सिंह यादव की लाइफ के वे कौन-कौन 'गच्चे' हैं, जिनकी बात CM योगी आदित्यनाथ सदन में कर रहे थे? जानिए...

प्रदेश अध्यक्ष को लेकर क्या विवाद हुआ था?

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बात 2016 की है. यूपी में सपा की सरकार थी और मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव यादव थे. पार्टी की कमान अखिलेश के पिता यानी दिवंगत मुलायम सिंह यादव के हाथों में थी. 2017 में विधानसभा चुनाव होने थे. टिकट को लेकर सत्तारूढ़ सपा में कलह मच गई. अखिलेश और चाचा शिवपाल में लंबे समय से टकराव चल रहा था. अक्टूबर 2016 में सार्वजनिक मंच पर ही दोनों के बीच तू-तू,मैं-मैं भी हो चुकी थी. मुलायम ने अखिलेश से सपा के प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी छीनी और अपने छोटे भाई शिवपाल को दे दी. इससे नाराज अखिलेश ने शिवपाल को मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया. टिकट बंटवारे के विवाद में परिवार में दोबारा झगड़ा शुरू हो गया. 

नाराज मुलायम सिंह यादव ने 30 दिसंबर 2016 को अपने बेटे और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और भाई और महासचिव रामगोपाल यादव को पार्टी से निकाल दिया. उसके बाद अखिलेश ने नई रणनीति बनाई और 212 विधायकों के साथ 1 जनवरी 2017 को लखनऊ के जनेश्वर मिश्र पार्क में सपा का राष्ट्रीय अधिवेशन बुलाया. इसी अधिवेशन में अखिलेश ने पार्टी में तख्तापलट किया और खुद पार्टी के अध्यक्ष बन गए. इस अधिवेशन में शिवपाल सिंह यादव को सपा के प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाने का प्रस्ताव भी शामिल था. इस अधिवेशन के सूत्रधार पार्टी महासचिव रामगोपाल यादव थे. पार्टी संविधान के तहत उन्होंने राष्ट्रीय अधिवेशन बुलाया था. अखिलेश गुट यह बात अच्छे से जानता था कि शिवपाल यादव अधिवेशन में नहीं आएंगे. बाद में ये मामला चुनाव आयोग तक पहुंचा और अखिलेश यादव गुट के पक्ष में फैसला गया.

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2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले शिवपाल यादव ने समाजवादी मोर्चे का गठन किया. बाद में उन्होंने अपने मोर्चे को प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) में तब्दील कर दिया. फिरोजाबाद सीट पर खुद शिवपाल यादव मैदान में उतरे. ये सीट परंपरागत तौर पर रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव की मानी जाती है. हालांकि, नतीजे आए तो चाचा-भतीजे दोनों को हार का सामना करना पड़ा. शिवपाल को सिर्फ एक लाख वोट ही मिल सके. जबकि बाकी सीटों पर उनकी पार्टी के उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई. इस चुनाव के बाद शिवपाल को भी एहसास हो गया कि सपा से अलग होकर वो कमजोर पड़ गए हैं. 2022 के विधानसभा चुनाव में भी प्रसपा करिश्मा नहीं दिखा सकी.

पहले उपचुनाव में कयास, फिर आम चुनाव में बेटे को टिकट

10 अक्टूबर 2022 को जब सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव का निधन हुआ तो परिवार फिर एकजुट देखा गया. सांत्वना से लेकर रस्मों से लेकर शिवपाल यादव को अखिलेश के साथ खड़ा देखा गया. धीरे-धीरे रिश्तों पर जमी बर्फ पिघली और शिवपाल ने अपनी प्रसपा को सपा में विलय करने का ऐलान कर दिया. अखिलेश ने भी शिवपाल को सपा का राष्ट्रीय महासचिव बना दिया. मुलायम के निधन से खाली गई मैनपुरी सीट पर उपचुनाव को लेकर कयास लगाए गए कि शिवपाल यादव उम्मीदवार हो सकते हैं. हालांकि, अखिलेश ने अपनी पत्नी डिंपल को उम्मीदवार घोषित किया और शिवपाल यादव ने भी डिंपल यादव के लिए दिन-रात एक कर चुनाव प्रचार की कमान संभाली. शिवपाल का कहना था कि अब जो भी चुनाव होगा, हमारा पूरा परिवार एक होकर ही लड़ेगा. उसके बाद समाजवादी पार्टी में शिवपाल यादव का कद फिर बढ़ने लगा.

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हाल में 2024 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर चर्चा हुई कि पार्टी शिवपाल यादव को बंदायू से उम्मीदवार बना सकती है. इस बीच, अखिलेश ने धर्मेंद्र यादव को बदायूं से टिकट दे दिया. हालांकि, विरोध की खबरों के चलते धर्मेंद्र का टिकट काट दिया और चाचा शिवपाल यादव को बदायूं से उम्मीदवार बना दिया. लेकिन टिकट के ऐलान के 18 दिन तक शिवपाल बदायूं नहीं पहुंचे तो पार्टी ने शिवपाल की जगह उनके बेटे आदित्य यादव को उम्मीदवार बनाया और उन्होंने जीत हासिल की.

और अब नेता विपक्ष की दौड़ से बाहर हुए शिवपाल...

आम चुनाव में इस बार अखिलेश यादव भी मैदान में उतरे थे. उन्होंने कन्नौज सीट से चुनाव लड़ा. जीत के बाद उन्होंने विधानसभा की सदस्यता छोड़ दी. वे करहल से विधायक थे. अखिलेश विधानसभा में नेता विपक्ष थे. चर्चा थी कि अखिलेश 2027 चुनाव को देखते हुए नेता विपक्ष का चेहरा चुनना चाहते हैं. हालांकि उनकी इस राह में चाचा शिवपाल सिंह यादव की महत्वाकांक्षाएं भी बीच में आ सकती हैं. कयास यह भी लगाए गए कि अखिलेश अपनी कुर्सी शिवपाल सिंह यादव को सौंप सकते हैं और उन्हें नेता विपक्ष की जिम्मेदारी दे सकते हैं. चूंकि वरिष्ठता के क्रम में शिवपाल का दावा मजबूत था. लेकिन दो दिन पहले पार्टी ने चौंकाने वाला फैसला लिया और ब्राह्मण चेहरे माता प्रसाद पांडेय का नेता विपक्ष बना दिया. शिवपाल 1996 से जसवंतनगर सीट (इटावा) से  लगातार 6 बार विधानसभा का चुनाव जीते हैं.

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