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घोसी उपचुनाव: NDA-I.N.D.I.A. के लिए अग्निपरीक्षा कैसे? सपा-BJP की लड़ाई में मायावती का बड़ा दांव

घोसी विधानसभा सीट के लिए उपचुनाव में बीजेपी ने दारा सिंह चौहान पर दांव लगाया है तो वहीं सपा ने सुधाकर सिंह को चुनाव मैदान में उतारा है. ये उपचुनाव बीजेपी के नेतृत्व वाले सत्ताधारी एनडीए और विपक्षी समाजवादी पार्टी के लिए अग्निपरीक्षा बन गया है. जानें कैसे?

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अखिलेश यादव, योगी आदित्यनाथ और मायावती (फाइल फोटो)
अखिलेश यादव, योगी आदित्यनाथ और मायावती (फाइल फोटो)

पूर्वी उत्तर प्रदेश के मऊ जिले की घोसी विधानसभा सीट के लिए उपचुनाव हो रहे हैं. इस उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने दारा सिंह चौहान को उम्मीदवार बनाया है. वहीं, विपक्षी समाजवादी पार्टी (सपा) से पुराने समाजवादी सुधाकर सिंह मैदान में हैं. सपा और बीजेपी के बीच की ये सीधी लड़ाई एनडीए और विपक्षी गठबंधन इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस (I.N.D.I.A.) के लिए भी टेस्ट की तरह है. बीजेपी और सपा, दोनों ही दलों के लिए घोसी उपचुनाव कैसे अग्निपरीक्षा बन गया है?

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सपा-बीजेपी की अग्निपरीक्षा कैसे

घोसी सीट 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा ने जीती थी. सपा के टिकट पर दारा सिंह चौहान विधानसभा सदस्य निर्वाचित हुए थे. दारा ने हाल ही में विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर बीजेपी का दामन थाम लिया था जिससे रिक्त सीट पर उपचुनाव होने हैं. घोसी उपचुनाव में बीजेपी ने दारा पर ही दांव लगाया है. बीजेपी की कोशिश घोसी में बड़ी जीत की है जिससे लोकसभा चुनाव के पहले पूर्वांचल में राजनीतिक संदेश दिया जा सके. वहीं, सपा की कोशिश इस सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखने की है.

नए विपक्षी गठबंधन का भी टेस्ट

घोसी उपचुनाव को नए-नवेले विपक्षी गठबंधन का भी टेस्ट माना जा रहा है. बसपा इस उपचुनाव में उम्मीदवार नहीं उतारेगी. मायावती के नेतृत्व वाली पार्टी के इस फैसले के बाद साफ हो गया है कि घोसी की लड़ाई बीजेपी बनाम सपा, दारा सिंह चौहान बनाम सुधाकर सिंह होने वाली है. मायावती के इस फैसले के पीछे कहा जा रहा है कि नए गठबंधन की ताकत का आकलन करने की रणनीति है.

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ये भी पढ़ें- घोसी विधानसभा सीट उपचुनाव: दारा सिंह चौहान बोले- भारी बहुमत से मिलेगी जीत

मायावती ने पटना में विपक्षी पार्टियों की पहली बैठक के पहले ही साफ कहा था कि इस पर हमारी नजर है. आजमगढ़ लोकसभा सीट के उपचुनाव में बसपा ने उम्मीदवार उतार सपा का खेल खराब कर दिया था. बीजेपी को जीत मिली थी. अब उम्मीदवार नहीं उतारने के फैसले के पीछे कहा जा रहा है कि मायावती ये देखना चाहती हैं कि क्या यूपी में ये गठबंधन एनडीए को हराने में सक्षम है?

परिणाम पर निर्भर अखिलेश-राजभर का कद

दारा और सुधाकर के बीच की ये चुनावी जंग अखिलेश यादव और ओमप्रकाश राजभर के लिए भी टेस्ट की तरह है. दारा सिंह चौहान अगर जीतने में सफल रहे तो जीत के अंतर पर ओमप्रकाश राजभर का एनडीए में, योगी कैबिनेट में वजन निर्भर करेगा. वहीं, अगर सुधाकर सिंह घोसी सीट फिर से सपा की झोली में डालने में सफल रहते हैं तो विपक्षी गठबंधन में अखिलेश यादव का कद बढ़ जाएगा.

घोसी में सपा की जीत से जाएगा बड़ा मैसेज

घोसी उपचुनाव में जीत अगर सपा को नसीब होती है तो इससे देशभर में बड़ा संदेश जाएगा. तब यह कहा जाएगा बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन में ओमप्रकाश राजभर जैसे नेताओं की एंट्री, छोटी-छोटी पार्टियों के आने के बाद भी अखिलेश यादव के नेतृत्व वाला गठबंधन भारी है. इससे दो संदेश जाएंगे- एक ये कि बीजेपी को हराया जा सकता है, दूसरा ये कि यूपी में गठबंधन की अगुवाई अखिलेश ही करें.

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बीजेपी की जीत बढ़ागी मायावती की अहमियत

घोसी उपचुनाव में अगर जीत का ऊंट बीजेपी की करवट बैठ गया तो विपक्षी गठबंधन पर सवाल उठेंगे और सत्ताधारी गठबंधन फ्रंटफुट पर आ जाएगा. ये विमर्श भी शुरू हो जाएगा कि क्या यूपी में सपा-कांग्रेस और आरएलडी की तिकड़ी बीजेपी को टक्कर दे पाएगी या नई पार्टियों को भी साथ लाया जाए. ऐसे में बसपा की पूछ और मायावती की अहमियत, दोनों ही बढ़ जाएंगी.

मायावती भी शायद अपने पत्ते खोलने, गठबंधन को लेकर राह तय करने से पहले घोसी उपचुनाव में गठबंधनों के टेस्ट का इंतजार कर रही हैं. दूसरी बात यह भी है कि मायावती इस वक्त विपक्ष के नेताओं को हार का ठीकरा अपने सिर फोड़ने का मौका नहीं देना चाहतीं. बसपा अगर घोसी सीट पर उम्मीदवार उतारती है तो विपक्ष को ये कहने का मौका मिल जाएगा कि इसी वजह से हारे. मायावती ने घोसी उपचुनाव से दूरी बनाकर भी बड़ा सियासी दांव चल दिया है.

बीजेपी चाहती थी उम्मीदवार उतारे बसपा

दरअसल, बीजेपी के नेता चाहते थे कि घोसी उपचुनाव में बसपा उम्मीदवार उतारे. बीजेपी चाहती थी कि बसपा किसी मुस्लिम चेहरे पर दांव लगाए जिससे उसकी राह आसान हो जाए. लेकिन यूपी चुनाव में एक सीट पर सिमटने के बाद अपनी सियासी जमीन बचाने की कोशिश में जुटीं मायावती ने उपचुनाव से दूरी बनाकर विपक्ष को भी गठबंधन के विकल्प खुले रखने का संदेश दे दिया है.

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घोसी उपचुनाव को लेकर बसपा में दो राय

बसपा में भी घोसी उपचुनाव लड़ने या न लड़ने को लेकर एक राय नहीं थी. एक धड़ा यह चाहता था की घोसी उपचुनाव में पार्टी उम्मीदवार उतारे. घोसी में बसपा को करीब 55 से 60 हजार वोट मिलते रहे हैं. ऐसे में इस सीट पर वॉकओवर देना ठीक नहीं. इस धड़े को ये भी लगता था कि पार्टी अगर मुस्लिम चेहरे पर दांव लगाती है तो लड़ाई करीबी भी हो सकती है और हो सकता है कि पार्टी जीत भी जाए.

मायावती ने इसे लेकर कोऑर्डिनेटर्स से भी मुलाकात की, बात की लेकिन ये संदेश भी दे दिया कि अगर चुनाव लड़ना था तो पहले से तैयारी भी करनी चाहिए थी. वहीं, बसपा के स्थानीय नेता चाहते थे कि पार्टी उम्मीदवार न उतारे और दारा को हराया जाए. इसके पीछे 2024 चुनाव को लेकर अपना गणित है. घोसी के बसपा नेताओं को लगता है कि अगर दारा चुनाव जीत गए तो 2024 में इस सीट से ओमप्रकाश राजभर दावेदारी करेंगे और इससे बसपा का गणित गड़बड़ा सकता है. 

क्या सपा उम्मीदवार का समर्थन करेगी कांग्रेस?

घोसी उपचुनाव में सपा, बीजेपी, बसपा और सुभासपा के बाद एक पार्टी और जिसके स्टैंड पर नजरें टिकी हुई हैं- कांग्रेस. क्या कांग्रेस पार्टी इस उपचुनाव में सपा को बिन मांगे समर्थन देगी या समर्थन मांगने का इंतजार करेगी या उम्मीदवार उतारेगी? अखिलेश यादव ने अगर विपक्ष से समर्थन मांगा तो फिर ये चुनाव इंडिया बनाम एनडीए हो जाएगा. घोसी उपचुनाव में अखिलेश ने कांग्रेस से समर्थन नहीं मांगा और इस चुनावी लड़ाई को अलग रखा तो कई सवाल खड़े होंगे.

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