हाथरस सत्संग में मची भगदड़ के बाद बाबा नारायण साकार हरि उर्फ भोले बाबा उर्फ सूरजपाल को लेकर कई कहानियां सामने आईं. किसी ने कहा कि बाबा जिस दूध से नहाते हैं, उसकी खीर भक्तों में बांटी जाती है, तो किसी ने कहा कि बाबा के चरणों की रज को माथे से लगाने पर बीमारी ठीक हो जाती है. बाबा ही भक्तों से चरणों की रज लेने को कहते हैं.
आखिर इन सब बातों की सच्चाई क्या है, इसी को जानने के लिए पटियाली कस्बे के उस बहादुरनगर गांव पहुंचे, जहां के लोग बाबा नारायण साकार हरि को तब से जानते हैं, जब वह सूरज पाल थे और कासगंज के पटियाली में SVR Inter college में सातवीं कक्षा के छात्र थे. छठवीं, सातवीं और आठवीं कक्षा तक उनकी यहां शिक्षा हुई. कैसे फुटबॉल खेलते समय सूरज पाल को चोट लगी थी. जो कभी साथ में फुटबाल खेलता था, आज वे संत हैं और दोस्त अब अनुयायी है.
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सूरजपाल उर्फ भोले बाबा के बचपन के दोस्त शरद कांत मिश्र से जब बात की गई तो उन्होंने कहा कि प्रभु (नारायण हरि) का जब इधर (पटियाली गांव में) आना हुआ, हम लोग जब आपस में रूबरू हुए, तो उनके चेहरे पर उदासी साफ बयान कर रही थी कि वे बहुत दुखी हैं. वे तन और मन दोनों से दुखी दिखे, इसलिए इस पर चर्चा करना उचित नहीं समझा. बुधवार को उनका यहां करीब 11:30 बजे आगमन हुआ था. उन्होंने कहा कि पटियाली में उनका पैतृक आश्रम है, इसके अलावा मेरा कहीं कोई आश्रम नहीं है. ये भ्रामक फैलाया गया है. लोग इस बारे में झूठा प्रचार न करें.
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शरद कांत मिश्र ने कहा कि भोले बाबा ने हजारों हजार श्रद्धालुओं के बीच प्रवचन दिए. मैं भी कई बार उनके प्रवचनों में शामिल हुए, बाबा ने मंच से कभी नहीं कहा कि उनके चरणों की धूल लीजिए. ये सब भ्रामक बातें हैं. बाबा यहां 14 साल बाद पैतृक गांव में आए थे. उनसे रूबरू होने के बाद मेरे तन मन को बेहद शांति मिली है. उनके दर्शन करके मैंने पुण्य लाभ कमाया है. मैं जब-जब आश्रम आता हूं तो मुझे आत्मिक शांति मिलती है.
सूरजपाल है बाबा का मूल नाम, 1990 में छोड़ दी थी पुलिस की नौकरी
भोले बाबा का असली नाम सूरजपाल है. वह कासगंज जिले के बहादुर नगर के मूल निवासी हैं. सूरजपाल ने साल 1990 के दशक के अंत में एक पुलिसकर्मी के रूप में नौकरी छोड़ दी थी और प्रवचन देना शुरू किया था. बाबा ने 'सत्संग' (धार्मिक उपदेश) करना शुरू कर दिया. सूरजपाल उर्फ भोले बाबा की कोई संतान नहीं है. वह अनुसूचित जाति (एससी) समुदाय से आते हैं. बहादुर नगर में आश्रम स्थापित करने के बाद भोले बाबा की प्रसिद्धि गरीबों और वंचित वर्गों के बीच तेजी से बढ़ी और लाखों लोग अनुयायी बन गए.