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अयोध्या-काशी के बाद अब मथुरा पर कानूनी लड़ाई, जानिए 55 साल पुराने इस केस की हिस्ट्री, दोनों पक्षों की डिमांड और दलीलें

यूपी में अयोध्या और काशी के बाद अब मथुरा पर कानूनी लड़ाई शुरू हो गई है. मथुरा की स्थानीय कोर्ट से विवाद सुप्रीम कोर्ट तक आ गया है. हिंदू पक्ष ज्ञानवापी की तरह श्रीकृष्ण जन्मभूमि मामले में वैज्ञानिक सर्वे की मांग पर अड़ा है. हिंदू पक्ष का कहना है कि सर्वे से मंदिर की सच्चाई सामने आ जाएगी. कोर्ट को सही तथ्य के लिए अनुमति देनी चाहिए. इस मामले में जन्मभूमि निर्माण ट्रस्ट ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई है.

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मथुरा में श्री कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद परिसर की जमीन का विवाद सुप्रीम कोर्ट आ गया है. फाइल फोटो
मथुरा में श्री कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद परिसर की जमीन का विवाद सुप्रीम कोर्ट आ गया है. फाइल फोटो

अयोध्या और काशी के बाद अब मथुरा में मंदिर की जमीन को लेकर विवाद कोर्ट पहुंच गया है. जन्मभूमि निर्माण ट्रस्ट की याचिका पर पहले सिविल कोर्ट, फिर हाई कोर्ट और अब मामला सुप्रीम कोर्ट आ गया है. हिंदू पक्ष का दावा है कि मंदिर की जमीन पर शाही ईदगाह मस्जिद खड़ी की गई है. हिंदू प्रतीकों, मंदिर के स्तंभों और मंदिर के अन्य महत्वपूर्ण जगहों को लगातार खोदा जा रहा है या नष्ट किया जा रहा है. इससे जगह की पवित्रता और सांस्कृतिक विरासत को काफी नुकसान हुआ है. इस परिसर का वैज्ञानिक सर्वे किया जाए, ताकि सच सामने आ सके. जानिए क्या है यह पूरा मामला...

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बताते चलें कि मथुरा में श्री कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद परिसर की जमीन का विवाद कोर्ट विचाराधीन है. श्री कृष्ण जन्मभूमि मुक्ति निर्माण ट्रस्ट ने सर्वे की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई है ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या यह मस्जिद पहले से मौजूद हिंदू मंदिर की जमीन पर बनाई गई है या नहीं.

सुप्रीम कोर्ट क्यों पहुंची सर्वे की मांग?

- दरअसल, ट्रस्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक आदेश को सुप्रीम कोर्ट मे चुनौती दी है. 10 जुलाई को इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस जयंत बनर्जी की बेंच ने ट्रस्ट द्वारा दायर रिट याचिका को खारिज कर दिया था, जो अब अपील में चली गई है. 
- श्री कृष्ण जन्मभूमि मुक्ति निर्माण ट्रस्ट के अध्यक्ष आशुतोष पांडे ने हाई कोर्ट से अनुरोध किया था कि वो मथुरा की सिविल अदालत को वैज्ञानिक सर्वे के लिए उसके आवेदन पर निर्णय लेने का निर्देश दें. 
- याचिका में HC के आदेश को चुनौती दी गई है, जिसमें मस्जिद कमेटी द्वारा दायर सीपीसी के आदेश 7 नियम 11 के तहत आवेदन पर पहले निर्णय लेने के ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा गया है.
- इससे पहले मथुरा के सिविल जज ने वैज्ञानिक सर्वे की याचिका को खारिज कर दिया था. मुकदमे के खिलाफ मस्जिद की प्रबंधन कमेटी और उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने आपत्ति जताई थी.

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सुप्रीम कोर्ट में हिंदू पक्ष ने क्या तर्क दिए?

- सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपनी याचिका में ट्रस्ट ने कहा कि शाही मस्जिद ईदगाह प्रबंधन समिति जानबूझकर हिंदुओं के पवित्र पूजा स्थल पर नियंत्रण हासिल करने का प्रयास कर रही है. अनुयायियों को परिसर में अपने धार्मिक अनुष्ठान करने से रोक रही है. 
- प्रतिवादी यानी शाही मस्जिद ईदगाह प्रबंधन समिति के प्रतिनिधि भी उसी परिसर में नमाज अदा कर रहे हैं. इस परिसर को विश्राम कक्ष के रूप में उपयोग कर रहे हैं, जो याचिकाकर्ता के लिए पवित्र स्थान/पूजा स्थल माना जाता है.
- प्रतिवादी और उनके प्रतिनिधि हिंदू प्रतीकों, मंदिर के स्तंभों और मंदिर के अन्य महत्वपूर्ण तत्वों को लगातार खोद रहे हैं या नष्ट कर रहे हैं. इससे जगह की पवित्रता और सांस्कृतिक विरासत को काफी नुकसान हुआ है.
- याचिका में कहा गया है कि विवादित भूमि के संबंध में विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिए गहन वैज्ञानिक सर्वे करना जरूरी है. यह सर्वे अनुभवजन्य डेटा पेश करेगा और उनके बयानों की सटीकता को प्रमाणित करेगा. किसी भी निष्कर्ष या निर्णय के लिए एक विश्वसनीय आधार प्रदान करेगा.
- विवादित भूमि के संबंध में धार्मिक इतिहास और धार्मिक संदर्भ में स्थल के महत्व को पूरी तरह से समझने के लिए उचित वैज्ञानिक सर्वे के माध्यम से इसके अतीत की व्यापक जांच और अध्ययन आवश्यक है. सर्वे से साइट के ऐतिहासिक महत्व और धार्मिक मामलों में इसकी प्रासंगिकता के बारे में बहुमूल्य जानकारी मिलेगी.

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मथुरा कोर्ट में मुस्लिम पक्ष ने जताई थी आपत्तियां...

- इस साल जनवरी में ट्रस्ट ने सबसे पहले एक मैप के साथ सिविल जज, मथुरा के समक्ष मुकदमा दायर किया था. इसमें अनुरोध किया था कि कृष्ण जन्मभूमि को उसी स्थान पर पुनर्स्थापित किया जाए, जहां वर्तमान में शाही मस्जिद ईदगाह मौजूद है. 
- हालांकि, शाही मस्जिद ईदगाह और यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की प्रबंधन समिति ने उपरोक्त मुकदमे की स्थिरता पर अपनी आपत्तियां दर्ज कराई थीं. उन्होंने कहा कि यह पूजा स्थल अधिनियम, 1991 द्वारा वर्जित है, जो कहता है कि किसी भी पूजा स्थल की धार्मिक प्रकृति को प्रभावित नहीं किया जा सकता है. 

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काशी में ASI सर्वे की मिली है अनुमति

- पिछले दिनों वाराणसी के जिला जज एके विश्वेश ने ज्ञानवापी परिसर का वैज्ञानिक सर्वे कराने का आदेश दिया था. ASI को 4 अगस्त तक सर्वे की रिपोर्ट वाराणसी की जिला अदालत को सौंपनी थी. इस आदेश के बाद ASI की टीम ज्ञानवापी का सर्वे करने पहुंची. इस बीच मुस्लिम पक्ष ने इस सर्वे पर रोक की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. 
- SC ने सर्वे पर दो दिन के लिए रोक लगाते हुए मस्जिद कमेटी को हाईकोर्ट जाने को कहा था. उसके बाद मुस्लिम पक्ष ने हाईकोर्ट का रुख किया था. सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की याचिका खारिज कर दिया था. हाईकोर्ट ने कहा था, न्यायहित में ASI का सर्वे जरूरी है. कुछ शर्तों के तहत इसे लागू करने की आवश्यकता है.
- बता दें कि ASI की टीम ने आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल कर ज्ञानवापी में सर्वे किया है. 3डी मैपिंग, स्कैनिंग, हाईटेक फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी के जरिए 'सबूत' जुटाए गए हैं. IIT कानपुर से एक्सपर्ट की टीम को GPR (ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार) मशीन से सर्वे के लिए बुलाया गया. इस तकनीक से खुदाई किए बिना जमीन के नीचे जांच किए जाने का दावा है. 

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अब काशी की तरह मथुरा के लिए दिया जा रहा तर्क

- सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में मथुरा की शाही ईदगाह में ज्ञानवापी परिसर जैसे सर्वे की मांग की गई है. कृष्ण जन्मभूमि मुक्ति निर्माण ट्रस्ट ने 1968 में हुए समझौते की वैधता के खिलाफ तर्क दिया और इसे दिखावा-धोखाधड़ी बताया है. आरोप लगाया जेनरेटर के इस्तेमाल से दीवारों और स्तंभों को ज्यादा नुकसान हुआ है.
- भूमि को आधिकारिक तौर पर 'ईदगाह' नाम के तहत पंजीकृत नहीं किया ही नहीं जा सकता है. इसका टैक्स 'कटरा केशव देव, मथुरा' के उपनाम के तहत एकत्र किया जा रहा है.
- विवादित भूमि के संबंध में ट्रस्ट और मस्जिद कमेटी द्वारा किए गए दावे की विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिए वैज्ञानिक सर्वे कराना जरूरी है. याचिकाकर्ता का कहना है कि कथित मस्जिद ईदगाह पर हिंदू समुदाय का अधिकार है, जिसका निर्माण हिंदू मंदिरों को ध्वस्त करने के बाद किया गया था और ऐसा निर्माण मस्जिद नहीं हो सकता है.

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क्या है मथुरा से जुड़ा पूरा विवाद

- ये विवाद 13.37 एकड़ भूमि के मालिकाना हक का है. इसमें 10.9 एकड़ जमीन कृष्ण जन्मस्थान के पास और 2.5 जमीन शाही ईदगाह मस्जिद के पास है. मथुरा में इस विवाद की चर्चा पिछले साल तब शुरू हुई थी, जब अखिल भारत हिंदू महासभा ने ईदगाह मस्जिद के अंदर भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति स्थापित करने और उसका जलाभिषेक करने का ऐलान किया था. हालांकि, हिंदू महासभा ऐसा कर नहीं सकी थी. इसके बाद उत्तर प्रदेश चुनाव में 'मथुरा की बारी है...' जैसे नारे भी खूब चले.
- काशी और मथुरा का विवाद भी कुछ-कुछ अयोध्या की तरह ही है. हिंदुओं का दावा है कि काशी और मथुरा में औरंगजेब ने मंदिर तुड़वाकर वहां मस्जिद बनवाई थी. औरंगजेब ने 1669 में काशी में विश्वनाथ मंदिर तुड़वाया था और 1670 में मथुरा में भगवा केशवदेव का मंदिर तोड़ने का फरमान जारी किया था. उसके बाद काशी में ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद बना दी गई. सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता हरिशंकर जैन, विष्णु शंकर जैन, रंजना अग्निहोत्री ने वाद दायर किया था.
- शाही ईदगाह मस्जिद से जुड़े मामले पर मुस्लिम पक्ष का कहना है कि 1968 के पुराने समझौते पर मंदिर ट्रस्ट ने कभी आपत्ति नहीं जताई है. इस मामले पर बाहरी लोग याचिका दायर कर रहे हैं. शाही ईदगाह ट्रस्ट के एडवोकेट तनवीर अहमद ने एक बयान में कहा था कि यह बेहद अजीब है कि कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट और संस्थान ने अब तक इस मामले पर कोई स्टैंड नहीं लिया है, जबकि हिंदू याचिकाकर्ताओं ने उनको पार्टी बनाया हुआ है.

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13.37 एकड़ जमीन पर मालिकाना हक का केस

- ऐसा दावा है कि औरंगजेब ने श्रीकृष्ण जन्मस्थली पर बने प्राचीन केशवनाथ मंदिर को नष्ट कर 1669-70 में शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण कराया था. बहरहाल, 1935 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 13.37 एकड़ की विवादित भूमि बनारस के राजा कृष्ण दास को अलॉट कर दी थी. 1951 में श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट ने यह भूमि अधिग्रहीत कर ली थी. 

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- ट्रस्ट 1958 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और 1977 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के नाम से रजिस्टर्ड हुआ. 1968 में श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और शाही ईदगाह कमेटी के बीच हुए समझौते में 13.37 एकड़ जमीन का स्वामित्व ट्रस्ट को मिला और ईदगाह मस्जिद का मैनेजमेंट ईदगाह कमेटी को दे दिया गया. 
- दावा किया जा रहा है कि 12 अक्टूबर 1968 को श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान और शाही मस्जिद ईदगाह ट्रस्ट के साथ हुए समझौते में 13.7 एकड़ जमीन पर मंदिर और मस्जिद दोनों रहने की बात तय हुई थी, लेकिन अभी श्रीकृष्ण जन्मस्थान के पास 10.9 एकड़ जमीन का मालिकाना हक है, जबकि ढाई एकड़ जमीन का मालिकाना हक शाही ईदगाह मस्जिद के पास है. 
- हिंदू पक्ष शाही ईदगाह मस्जिद को अवैध तरीके से कब्जा करके बनाया गया ढांचा मानता है और इस जमीन पर भी दावा करता है. हिंदू पक्ष की ओर से शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने और ये जमीन भी श्रीकृष्ण जन्मस्थान को देने की मांग की गई है.

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