महाकुंभ में तीन अमृत स्नान पूरे हो चुके हैं और अब अखाड़े खाली होना शुरू हो गए हैं. महाकुंभ में सबसे अधिक आकर्षण का केंद्र नागा साधु ही रहे. अक्सर यह सवाल उठता है कि अमृत स्नान के बाद हजारों-लाखों की संख्या में आए नागा साधु कहां गायब हो जाते हैं?
आजतक ने निरंजनी अखाड़े के नागा बाबा दिगंबर दर्शन गिरी जी महाराज से बात की और जाना कि आखिर कुंभ के बाद नागा साधु कहां चले जाते हैं और क्या करते हैं? दिगंबर दर्शन गिरी जी महाराज ने बताया कि तीन अमृत स्नान हो गए हैं कल का एक स्नान बाकी है गुरु भाइयों को अलग से स्नान करने जाते हैं जो त्रिवेणी में होता है. उसके बाद छावनी में वापस आते हैं. उसके बाद पंच परमेश्वर की प्रक्रिया चलती है,7 तारीख तक फिर नया जो पंच बनता है उसका चुनाव कर 7 तारीख को पूजा-हवन करके जो नया पंच बनता है उसका चुनाव करके हम काशी के लिए हम बढ़ जाते हैं.
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काशी में मनाते हैं शिवरात्री और होली
काशी में हमारे स्थाई अखाड़े हैं वहीं शिवरात्रि मेला और मसान की होली मना कर हम अपने-अपने गंतव्य स्थान पर निकलते हैं. काशी उन्होंने बताया, 'शिवरात्रि और होली नागाओं की काशी में ही होती है. वहां महादेव का अभिषेक करके अखाड़े में आते हैं. होली खेलकर वहां से हरिद्वार की तरफ निकल जाते हैं. नागा संन्यासी पूरे भारत में जगह-जगह रहते हैं. देश के अलग-अलग हिस्सों में कुछ साधु अपने गुरुओं के अखाड़े में सेवा करते हैं. कोई हिमालय केदारनाथ, बद्रीनाथ, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर, नर्मदाखंड कोई नेपाल, जहां-जहां उनके स्थाई ठिकाने हैं वहां निकल जाते हैं. जहां जिसका लगाव है वो वहां चले जाते हैं, यानि चारों दिशाओं में फैसल जाते हैं. '
धर्म की रक्षा करना हमारा मकसद: दिगंबर दर्शन गिरी जी महाराज
नागा साधु सबसे पराक्रमी कहे जाते हैं, ऐसा क्या है नागा साधुओं में जिसके बारे में लोगों को नहीं मालूम हैं? इसका जवाब देते हुए दिगंबर दर्शन गिरी जी महाराज ने कहा, 'आदिकाल में अंग्रेजों, मुगलों का शासन था. इस राजाओं के शासनकाल में जब भी धर्म के ऊपर आक्रमण हुआ तब तक नागा संन्यासियों ने लड़ाई लड़ी अपना बलिदान दिया और धर्म की रक्षा के लिए नागा साधु बने. भाला, त्रिशूल, धनुष, गदा तलवार चलाना सभी का परीक्षण होता था. धर्म की रक्षा के लिए मरना इनका धर्म है. मैने सवा लाख रुद्राक्ष धारण किए हैं, यह भगवान शिव का आशीर्वाद है.'
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