प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान अखाड़ों में कोतवालों की भूमिका बेहद खास होती है. ये कोतवाल अखाड़ों में अनुशासन बनाए रखने के साथ-साथ सुरक्षा की जिम्मेदारी निभाते हैं. इनके हाथों में चांदी जड़ी लाठी होती है, जिसको लेकर ये अखाड़े के नियमों का पालन कराने भूमिका निभाते हैं. अनुशासन तोड़ने वालों को सजा देने का अधिकार भी रखते हैं. महाकुंभ के दूसरे शाही स्नान के बाद इनकी नियुक्ति होती है, और यह परंपरा सांस्कृतिक धरोहर को जीवंत बनाए रखती है.
अभी तक आपने पुलिस विभाग में कोतवाल देखें होंगे, लेकिन संगम नगरी प्रयागराज में महाकुंभ में भी कोतवाल हैं. ये कोतवाल अखाड़े के शिविर में देखे जा सकते हैं. अखाड़े में प्रवेश करते ही सबसे पहली मुलाकात इन्हीं कोतवाल से होती है. ये अपने हाथों में चांदी चढ़ी लाठी लिए रहते हैं. अखाड़ों में अनुशासन बनाए रखने की जिम्मेदारी इन्हीं के पास होती है.
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इन कोतवालों को अनुशासनहीनता या अखाड़े के नियम तोड़ने के मामलों में सजा देने का अधिकार भी मिलता है. नियम तोड़ने वालों को कोतवाल कड़ाके की ठंड में गंगा में 108 डुबकी लगवाते हैं. कोतवाल गुरु कुटिया या रसोई की चाकरी, मुर्गा बनने और खुले आसमान के नीचे खड़ा रहने की सजा भी देते हैं.
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अखाड़े में गुरु की कुटिया के पास कोतवाली स्थापित की जाती है. किसी अखाड़े में दो तो किसी में चार कोतवाल तैनात किए जाते हैं. कहीं इनकी तैनाती एक सप्ताह के लिए होती है तो कहीं पूरे मेला अवधि के लिए तैनात किया जाता है. किसी अखाड़े में तीन साल के लिए भी कोतवाल की तैनाती की जाती है.
महाकुंभ के दूसरे शाही स्नान के बाद कोतवाल चयनित किए जाते हैं. जिन कोतवाल का कार्यकाल अच्छा होता है, उन्हें सर्वसम्मति से थानापति या अखाड़े का महंत भी बनाया जाता है. अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद अध्यक्ष रवींद्र पुरी ने बताया कि अखाड़े के शिविर की सुरक्षा और अखाड़े में अनुशासन बनाए रखने में कोतवाल की अहम भूमिका होती है. ये चांदी जड़ी लाठी रखते हैं. अनुशासनहीनता या नियम तोड़ने पर सजा देने का भी अधिकार मिलता है.