उत्तर प्रदेश के जिला फिरोजाबाद स्थित दिहुली में हुए जनसंहार मामले में मैनपुरी की अदालत ने मंगलवार को फैसला सुनाया है. कोर्ट ने हत्याकांड में शामिल तीन दोषियों को 44 साल बाद फांसी की सजा सुनाई है. 18 नवंबर 1981 की शाम को 17 हथियारबंद बदमाशों ने 24 लोगों की गोलियों से भूनकर हत्या कर दी थी. सभी मृतक दलित समुदाय से थे. पहले दिहुली गांव मैनपुरी जिले में आता था और इसी वजह से जिले की डकैती अदालत ने यह फैसला सुनाया है.
17 आरोपियों में से 13 की मौत
फिरोजाबाद जिला मुख्यालय से करीब 30 किमी की दूरी पर स्थित दिहुली गांव उस रात गोलियों की आवाज से दहल उठा था. इस जनसंहार में कुल 17 आरोपी थे, जिनमें से 13 की पहले ही मौत हो चुकी है. कोर्ट ने 11 मार्च को दिए अपने फैसले में तीन लोगों को हत्याकांड का दोषी ठहराया था जिनकी सजा के ऐलान के लिए आज की तारीख तय की गई थी. हत्याकांड में शामिल एक अन्य आरोपी अब भी पुलिस की गिरफ्त से बाहर है और उसे भगौड़ा घोषित किया जा चुका है.
अदालत के फैसले के बाद पीड़ित परिवारों में खुशी तो है लेकिन वह इसे देर मिला न्याय भी बता रहे हैं. इस हत्याकांड के पीछे डकैत संतोष, राधे और उनके गिरोह का हाथ बताया गया था. चार्जशीट के मुताबिक इस सामूहिक हत्याकांड को अंजाम देने वाले ज्यादातर आरोपी अगड़ी जाति से थे. पुलिस के मुताबिक़ संतोष-राधे के गिरोह में पहले कुंवरपाल नाम का एक शख्स शामिल था जो दलित समुदाय से आता था.
रंजिश बनी हत्याकांड की वजह
कुंवरपाल की एक अगड़ी जाति की महिला से दोस्ती थी और ये बात अगड़ी जाति से आने वाली संतोष और राधे को बर्दाश्त नहीं हुई. यहीं से इनके बीच की दुश्मनी की शुरुआत हुई थी. इसके कुछ समय बाद कुंवरपाल की संदिग्ध हालात में हत्या कर दी गई. इस पर एक्शन लेते हुए पुलिस ने संतोष-राधे गिरोह के दो सदस्यों को गिरफ़्तार कर हथियार बरामद किए थे.
संतोष, राधे और कुंवरपाल हत्याकांड के बाकी आरोपियों को शक था कि उनके साथियों की गिरफ्तारी के पीछे इलाके के दलितों का हाथ है. पुलिस ने भी हत्या के बाद दलित समुदाय के तीन लोगों को गवाह बनाया था. पुलिस चार्जशीट के मुताबिक अगड़ी और पिछड़ी जाति की इसी दुश्मनी की वजह से दिहुली में जनसंहार हुआ था.
चार घंटे तक ताबड़तोड़ फायरिंग
इंडिया टुडे के मुताबिक संतोष-राधे गिरोह के 14 सदस्य पुलिस वर्दी में दलितों के गांव दिहुली पहुंचे और ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी. शाम 5 बजे से शुरू हुई फायरिंग चार घंटे तक चली. गोली लगने ने 23 लोगों की मौके पर ही मौत हो चुकी थी जबकि एक को अस्पताल में मृत घोषित किया गया. पुलिस जब तक मौके पर पहुंची तब तक सभी आरोपी फरार हो चुके थे.
उत्तर प्रदेश में तब विश्वनाथ प्रताप सिंह मुख्यमंत्री थे. इस जनसंहार के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने दिहुली गांव का दौरा किया था. विपक्ष ने इस हत्याकांड के बाद सरकार पर सवाल खड़े किए थे. तब विपक्ष के नेता बाबू जगजीवनराम ने भी इस गांव का दौरा किया था. वारदात के बाद दलित समाज के लोग दिहुली गांव से पलायन करने लगे. इसके बाद पुलिस और प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारी गांव में कई महीनों तक कैंप लगाकर रहे ताकि लोगों को सुरक्षा महसूस हो.
ट्रॉली में भरकर भेजे गए थे शव
चश्मदीदों ने बीबीसी को बताया कि संतोष-राधे गिरोह ने पूरे दलित मोहल्ले को घेर रखा था, जो भी दिखाई दिया उसे गोली मारते गए. रात में हुई इस गोलीबारी के बाद लोगों के शव सड़क पर पड़े थे और हर कोई जान बचाने के लिए इधर-उधर भाग रहा था. कुछ लोग तो इस भगदड़ में ही जख्मी हो गए. बदमाशों ने पुरुष-महिला, बच्चे किसी पर भी रहम नहीं किया और जो सामने आया उसे मौत के घाट उतार दिया. मृतकों के शव दूसरे दिन ट्रैक्टर ट्रॉली में भरकर मैनपुरी भेजे गए थे. वहां डॉक्टरों की टीम ने इनका पोस्टमार्टम किया था.
इस मामले को हाईकोर्ट के आदेश पर 1984 में इलाहाबाद के सेशन कोर्ट में ट्रांसफर किया गया था. 1984 से लेकर अक्टूबर 2024 तक मामले में वहां पर ट्रायल चला. इसके बाद केस को फिर से मैनपुरी डकैती कोर्ट में ट्रांसफ़र किया गया था. इस पर मैनपुरी कोर्ट ने 11 मार्च को फैसला सुनाते हुए तीन लोगों को दोषी करार दिया था, जिनकी सजा का ऐलान मंगलवार को हुआ है.