scorecardresearch
 

मिहिर भोज पर विवाद, जानें सहारनपुर में गुर्जर-क्षत्रिय टकराव क्यों बन सकता है BJP का सिरदर्द

पश्चिमी यूपी में मिहिर भोज पर गुर्जर और राजपूत समुदाय अपने-अपने दावे के चलते कई बार आमने-सामने आ चुके हैं. सोमवार को एक बार फिर से दोनों समुदाय के बीच टकराव की स्थिति सहारनपुर में बन गई थी. लोकसभा चुनाव से पहले ठाकुर और गुर्जरों के बीच खिंच रही तलवार बीजेपी के लिए चिंता बढ़ा सकती है.

Advertisement
X
सहारनपुर में मिहिर भोज गौरव यात्रा निकालने पर विवाद
सहारनपुर में मिहिर भोज गौरव यात्रा निकालने पर विवाद

पश्चिमी यूपी में सम्राट मिहिर भोज को लेकर गुर्जर और क्षत्रिय समाज के बीच लंबे समय से विवाद चल रहा है. सहारनपुर में राजा मिहिर भोज पर अपनी-अपनी जाति के होने का दावा करते हुए गुर्जर समाज और क्षत्रिय समाज आमने-सामने आ गए हैं. गुर्जर समाज ने मिहिर भोज गुर्जर गौरव यात्रा निकाली तो राजपूत समाज इसके विरोध में उतर गया. सहारनपुर में गुर्जर और क्षत्रिय के जातियों के बीच तनाव का माहौल बना हुआ है. दोनों जातियों में टकराव होने से बचाने के लिए प्रशासन की कार्रवाई भी गुर्जर गौरव यात्रा निकालने और राजपूत समाज को उसका विरोध करने से रोक नहीं पाई. 

Advertisement

मिहिर भोज पर क्या विवाद है
गुर्जर समाज के लोगों को मानना है कि सम्राट मिहिर भोज एक गुर्जर सम्राट थे जबकि क्षत्रिय समाज का मानना है कि सम्राट मिहिर भोज एक क्षत्रिय सम्राट थे. अखिल भारतीय वीर गुर्जर महासभा के सदस्य आचार्य विरेंद्र विक्रम ने बकायदा मीडिया से बात करते हुए कहा कि गुर्जर प्रतिहार सम्राट मिहिर भोज रघुवंशी सम्राट थे और गुर्जर प्रतिहार वंश के सबसे प्रतापी सम्राट थे. 851 ईसवीं मे भारत भ्रमण पर आए अरब यात्री सुलेमान ने उनको गुर्जर राजा और उनके देश को गुर्जर देश कहा. इसी तरह अनेक इतिहासकारों उनके गुर्जर होने का प्रमाण दिया है. 

वहीं, अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के महासचिव राघवेंद्र सिंह राजू कहते हैं कि क्षत्रिय सम्राट मिहिर भोज को एक विशेष जाति के लोग गलत तरीके से प्रस्तुत कर रहे हैं, जो गलत है. मिहिर भोज एक क्षत्रिय सम्राट थे, उन्हें एक साजिश के तहत दूसरे कुल का बताया जा रहा है. मिहिर भोज के ऊपर जिस तरह से गुर्जर समुदाय के लोग अपना हक जता रहे हैं, वह सही नहीं है. इस तरह गुर्जर समुदाय को मिहिर भोज पर अपना दावा नहीं करना चाहिए. 

Advertisement

मिहिर भोज गौरव यात्रा पर टकराव
गुर्जर समुदाय को लेकर ने सोमवार को सहारनपुर के फंदपुरी में सम्राट मिहिर भोज गौरव यात्रा निकाली. गुर्जर समाज के सैकड़ों लोग सुबह से ही एकत्र हो गए थे और वहां से उन्होंने पैदल गौरव यात्रा शुरू की जबकि प्रशासन ने यात्रा पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा हुआ था. सरधना से सपा विधायक अतुल प्रधान भी मिहिर गुर्जर गौरव यात्रा में शामिल होने के लिए बागपत की ओर से निकले, लेकिन पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया. इस दौरान समर्थकों की पुलिस से खूब नोकझोंक व धक्का-मुक्की हुई.

गुर्जर समुदाय के द्वारा निकाली जा रही गौरव यात्रा के विरोध में राजपूत समाज के लोगों ने भी सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन किया. इसके चलते टकराव की स्थिति बनी रही, लेकिन जिस तरह से मिहिर भोज पर अपने-अपने दावे को लेकर राजपूत और क्षत्रिय समुदाय आमने-सामने उतर गए हैं. इसके सियासत पर भी असर पड़ना तय माना जा रहा है, क्योंकि लोकसभा चुनाव सिर पर है और राजपूत और गुर्जर के टकराव से पश्चिमी यूपी में बीजेपी के लिए सिरदर्द बन सकता है. 

पश्चिमी यूपी का सियासी समीकरण
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुस्लिमों के बाद जाट, गुर्जर और ठाकुर मतदाताओं की संख्या अधिक है. इस इलाके में ब्राह्मण, त्यागी और ठाकुर बीजेपी का परंपरागत वोटर माना जाता है. साल 2013 के मुजफ्फरनगर दंगे के बाद बीजेपी ने इनके साथ जाटों को भी जोड़ा और गुर्जर समुदाय का भी विश्वास जीतने में सफल रही है. यही कारण था कि ठाकुर, ब्राह्मण, त्यागी, वैश्य समाज के साथ जाट और गुर्जर आ जाने से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीजेपी ने विपक्ष का 2014-2019 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में सफाया कर दिया था.

Advertisement

पश्चिमी यूपी में गुर्जर सियासत
पश्चिम यूपी में गुर्जर समुदाय के मतदाताओं की खासी संख्या है, जो किसी भी दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं. गाजियाबाद, नोएडा, बिजनौर, शामली, मेरठ, बागपत सहारनपुर जिले की करीब दो दर्जन सीटों पर गुर्जर समुदाय निर्णायक भूमिका में हैं. गुर्जर समाज मौजूदा समय में बीजेपी का कोर वोटबैंक माना जाता है. 2014 के लोकसभा चुनाव से बीजेपी के साथ जुड़ा है, लेकिन उसे अपने पाले में लाने के लिए आरएलडी से लेकर सपा तक हर संभव कोशिश में जुटी है. 

गुर्जर समुदाय के सबसे ज्यादा विधायक बीजेपी से है- दादरी से तेजपाल नागर, लोनी से नंदकिशोर गुर्जर, दक्षिण मेरठ से सोमेंद्र तोमर, सहारनपुर गंगोह से तीर्थ सिंह और नकुड़ से मुकेश चौधरी बीजेपी विधायक हैं. इसके अलावा नरेंद्र भाटी और वीरेंद्र गुर्जर बीजेपी के एमएलसी हैं तो सुरेंद्र नागर राज्यसभा सदस्य और प्रदीप चौधरी लोकसभा सदस्य है. वहीं, सपा से अतुल प्रधान और नाहिद हसन विधायक हैं और दोनों ही गुर्जर समुदाय से हैं. आरएलडी से गुर्जर समुदाय के चंदन चौहान और मदन भैया विधायक हैं. बसपा से मलूक नागर बिजनौर से बसपा के विधायक हैं. 

गुर्जर समुदाय के सर्वमान्य नेता

गुर्जर समाज के सबसे बड़े और सर्वमान्य नेता के तौर पर कांग्रेस के राजेश पायलट और बीजेपी के हुकुम सिंह हुआ करते थे, जो पश्चिम यूपी की सियासत पर खास असर रखते थे. इसके अलावा मुनव्वर हसन मुस्लिम गुर्जरों के बड़े नेता पश्चिमी यूपी में माने जाते थे. सपा और आरएलडी लगातार गुर्जर समुदाय को साधने की कवायद में जुटी है. ऐसे में जिस तरह से पश्चिमी यूपी में मिहिर भोज को लेकर गुर्जर और ठाकुरों के बीच सियासी टकराव बढ़ा है, उससे बीजेपी के लिए चिंता बढ़ा सकती है तो विपक्ष के लिए सियासी संजीवनी साबित हो सकती है. 

Advertisement

पश्चिमी यूपी में बीजेपी की बढ़ेगी टेंशन 
किसान आंदोलन के बाद पहलवानों को धरने प्रदर्शन पर बैठने से पहले से ही बीजेपी के लिए जाट समुदाय की नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे में गुर्जर-ठाकुरों के बीच सियासी टकराव उसके सिरदर्द को और भी बढ़ा दिया है, क्योंकि  विपक्ष पहले से ही योगी आदित्यनाथ सरकार पर ठाकुर परस्ती का आरोप लगाती रही है. सपा कहती रही है कि एक जातिय विशेष के लिए योगी सरकार काम कर रही है. आरएलडी के प्रमुख जयंत चौधरी ने सहारनपुर मामले को लेकर बीजेपी पर निशाना साधा. 

2024 के लोकसभा चुनाव की सियासी तपिश बढ़ रही है. जाट समुदाय बीजेपी से नाराज माने जा रहे हैं और गुर्जर समुदाय को अखिलेश यादव गले लगाने में जुटे हुए हैं. सपा-आरएलडी दोनों की नजर गुर्जर वोटर पर है . मेरठ के मवाना में गुर्जर समुदाय से आने वाले शहीद धनसिंह कोतवाल की मूर्ति का अनावरण अखिलेश यादव कर संदेश दिया था और गुर्जर नेता अतुल प्रधान को लगातार बढ़ाने में जुटे हैं. इसके राजनीतिक मायने साफ निकाले गए कि सपा फिर से गुर्जरों को अपने साथ जोड़ने की जुगत में है. 

सपा की गुर्जर सियासत कैसी रही

मुलायम सिंह यादव के दौर में लंबे समय तक सपा की कमान यूपी में गुर्जर समुदाय से आने वाले रामशरण दास के हाथों में रही. रामशरण दास के निधन के बाद ही मुलायम सिंह ने सपा का प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव को बनाया था. पश्चिमी उत्तर प्रदेश से रामसकल गुर्जर, नरेंद्र भाटी, वीरेंद्र सिंह जैसे सरीखे नेता को साथ रखा. इस तरह से मुलायम सिंह ने पश्चिम यूपी में मुस्लिम और गुर्जर समीकरण को अपने पक्ष में मजबूती से जोड़े रखा था. 

Advertisement

मायावती भी गुर्जरों को बसपा में खास अहमियत देती रही हैं. बीजेपी गुर्जरों को साधने में जुटी वहीं, 2014 के लोकसभा चुनाव से यूपी का गुर्जर समुदाय बीजेपी के साथ आया है, जिसे अब 2022 के चुनाव में भी बीजेपी सहेजकर रखने में सफल रही, लेकिन सपा और आरएलडी उसमें सेंधमारी कर दो-दो विधायक जीतने में कामयाब रहे. ऐसे में गुर्जर मतदाता अगर बीजेपी से छिटका तो पश्चिमी यूपी में सियासी चुनौती खड़ी हो सकती है. ऐसे में देखना है कि मिहिर गुर्जर को लेकर गुर्जर और राजपूत टकराव का सियासी हल बीजेपी क्या निकालती है.

 

Advertisement
Advertisement