महाकुंभ को 36 दिन पूरे हो चुके हैं. जहां उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि कुंभ में 40 करोड़ लोग आएंगे, वहां 53 करोड़ से ज्यादा लोग संगम आकर स्नान कर चुके हैं. जहां अगला लक्ष्य मुख्यमंत्री ने 60 करोड़ का रखा है और योगी आदित्यनाथ पहले कह चुके हैं कि तैयारी तो 100 करोड़ लोगों को संभालने की रही है वहां अब सवाल है कि मौनी अमावस्या की भगदड़ हो या फिर नई दिल्ली रेलवे स्टेशन की भगदड़, दावे कुंभ आने के दौरान अब तक कई बार घंटों लगे ट्रैफिक जाम का हो या फिर ट्रेन में श्रद्धालुओं की भारी तादाद की तस्वीरें हो, कुंभ को लेकर ऐसा क्या है कि देश की आधी आबादी तक कुंभ स्नान करने पहुंच रही है? क्या ये धर्म को लेकर विश्वास की ताकत है?
प्रयागराज वाराणसी रेल मार्ग के ज्ञानपुर रोड रेलवे स्टेशन पर महाकुंभ के लिए ट्रेनों में लोगों की भारी संख्या का खतरनाक असर दिखता है. भीड़ की वजह से वक्त पर ट्रेन से बाहर नहीं निकल पाई महिला चलती ट्रेन से उतरने लगी. वहीं समस्तीपुर में भारी भीड़ के बीच कुंभ जाने के लिए एक महिला कूदकर ट्रेन में चढ़ती दिखी. आखिर ये नौबत क्यों कि चढ़ती ट्रेन से लोग चढ़ने या उतरने लगे हैं? क्या केवल कुंभ जाने वालों की लगातार बढ़ती संख्या की वजह से? क्या इसलिए कि लोगों को लगता है कि कुंभ के लिए जाना है तो जाना है फिर चाहे जो हो जाए.
भगदड़ के बाद भी कम नहीं हुई भीड़
पहले 29 जनवरी को भारी संख्या में लोगों के कुंभ पहुंचने के बाद अव्यवस्था और लापरवाही के बीच भगदड़ मची. 30 लोगों की मौत का सरकारी आंकड़ा दिया गया. फिर कुंभ जाने के लिए नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर जुटे हजारों लोगों को ना संभाल पाने वाले रेलवे प्रशासन की वजह से भगदड़ मची. 15 फरवरी को रात 8.30 बजे की भगदड़ में 18 नागरिकों की मौत हो गई. प्रयागराज में मौनी अमावस्या की रात भगदड़ के बाद भी कुंभ जाने वालों की संख्या में रत्ती भर की कमी आती दिखती नहीं है.
ना ही नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भगदड़ के बाद किसी भी शहर के स्टेशन पर ट्रेन से प्रयागराज जाते लोगों की तादाद में कोई कमी नजर आती है. ना ही घंटों सड़क पर ट्रैफिक जाम में फंसे रहने के बावजूद गाड़ी से प्रयागराज जाने वालों की गाड़ियों में कमी होती दिख रही है. प्रयागराज एयरपोर्ट से रविवार को आई तस्वीरों में एयरपोर्ट भी रेलवे स्टेशन जैसा दिखने लगा. तब सवाल आता है कि जिस कुंभ में 36 दिन में 53 करोड़ से ज्यादा लोग डुबकी मारने पहुंच चुके हैं क्या 26 फरवरी तक चलने वाले कुंभ में ये संख्या 70 करोड़ के पार हो सकती है? क्या कुंभ मेले को कुछ और दिन आगे बढ़ाने का फैसला भी हो सकता है?
रविवार, 16 फरवरी को महाकुंभ में संगम में स्नान करते भक्तों की तस्वीर (पीटीआई)
क्या 70 करोड़ के पार जाएगा श्रद्धालुओं का आंकड़ा
इन दोनों सवाल की वजह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव हैं. क्योंकि मुख्यमंत्री का अनुमान है कि 60 करोड़ लोग तक अब कुल कुंभ आने वालों की संख्या जा सकती है. लेकिन क्या कुंभ में 60 करोड़ का भी आंकड़ा पार हो सकता है? सवाल इसलिए क्योंकि प्रयागराज में कुंभ के 36वें दिन भी शाम 6 बजे तक 1 करोड़ 23 लाख लोगों ने डुबकी लगाई. औसत रोज 1.5 करोड़ लोग स्नान कर रहे हैं. अगले 9 दिन में इस तरह 13 करोड़ 50 लाख लोग प्रयागराज आ सकते हैं. यानी 26 फरवरी तक कुंभ आने वालों की संख्या 66 करोड़ से पार हो सकती है. शिवरात्रि पर अंतिम स्नान तक और श्रद्धालु पहुंचे तो संख्या 70 करोड़ के पार हो सकती है. जहां अब अखिलेश यादव तंज कसते निशाना साधते हैं. मांग करते हैं कि कुंभ में अव्यवस्था के कारण लाखों करोड़ों लोग नहीं आ पाए हैं इसलिए कुंभ का मेला और बढ़ाया जाए.
सियासत से अलग ये सच है कि जनता का कुंभ पहुंचना कहीं से भी कम नहीं हो रहा है. सबूत प्रयागराज से सोमवार शाम को आया वीडियो है, जहां नैनी ब्रिज पर गाड़ियों का हिलना तक कठिन दिख रहा है. तो आखिर इसकी वजह क्या है? क्या 144 साल बाद महाकुंभ होने के प्रचार से लोग प्रभावित होकर पहुंच रहे हैं? क्या लोगों को लगता है कि कुंभ आयोजन की व्यवस्था बहुत सही है? सोशल मीडिया रील की वजह से रोज 1.5 करोड़ लोग कुंभ पहुंच रहे हैं? क्या दूसरे चले गए-हम नहीं जा पाए वाली सोच के दबाव में लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है? या फिर हकीकत ये है कि चाहे जितनी भी कठिन परिस्थिति हो भारत की बहुसंख्यक आबादी का धर्म के प्रति विश्वास इतना मजबूत है कि कुंभ में लगातार नए रिकॉर्ड बन रहे हैं और पुराने टूट रहे हैं?
प्यू रिसर्च के मुताबिक हर 5 में से 4 भारतीय चाहते हैं कि उनके राष्ट्रीय नेता उनके साथ धार्मिक विश्वास साझा करें. धर्म को लेकर ये सक्रियता ही क्या महाकुंभ में डुबकी लगाने की संख्या को लगातार बढ़ा रही है. जहां रेलवे की तरफ से दावा है कि वो रोज 10 लाख से ज्यादा लोगों को प्रयागराज तक कुंभ स्पेशल ट्रेन से ले जा रहा है, वहीं बिहार से आने वाली ट्रेनों में सबसे ज्यादा श्रद्धालुओं की तादाद दिखती है. सिर्फ संख्या ज्यादा ही नहीं दिखती, दिखता है ये भी कि लोग किसी भी तरह से कुंभ जाना चाहते हैं फिर चाहे सफर सरल हो या कठिन.
हर हाल में कुंभ जाना है
ये आम आदमी हैं. श्रद्धा, आस्था, भक्ति से पूरी तरह डूबे हुए हैं. बाकी किस स्थिति में ट्रेन में बैठकर ये लोग बिहार से उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जा रहे हैं. तस्वीरें गवाही देती हैं. छोटा बच्चा है, बेसुध होती महिलाएं हैं, पंखे से हवा करते परिजन हैं, थर्ड एसी डिब्बे की खिड़की का कांच टूटा हुआ है, अंदर लोग बैठे नहीं बल्कि ठूंसे हुए दिखते हैं. वो रेल प्रशासन जो रोज ढाई सौ से तीन सौ कुंभ स्पेशल ट्रेन चलाने का दावा करता है. कहता है कि प्रयागराज तक 10 लाख से ज्यादा लोगों को रेल से पहुंचाया जा रहा है लेकिन क्या इस हालत में? जिम्मेदार कौन है, संयोग का वो दावा जो कहता है कि 144 साल में पहली बार ऐसे ग्रह नक्षत्र बने कि 'किसी भी हाल में जाना है तो जाना है' या फिर कुछ लोग कह सकते हैं कि जिम्मेदार तो जनता है, जिसे लगता है कि अब सारे संकट दूर होंगे, जीवन में चमत्कार आएगा.
पटना से प्रयागराज के रास्ते आगे जाने वाली ट्रेन में जो हालत सोमवार शाम को दिखती है, वही हाल दिन में भी नजर आता है. ट्रेन के दरवाजे के बाहर तक एक दूसरे के सहारे लटके लोग. कामाख्या एक्सप्रेस में रेलवे पुलिस लाख कोशिश करके सबको बैठा ही नहीं सकती. कैसे बैठाएगी, कुंभ के लिए जाने वालों की संख्या कहीं ज्यादा है, जिसकी भक्ति पर भगदड़ का डर हावी नहीं होता है. वो तो गनीमत है कि अभी गर्मी बहुत बढ़ी नहीं है वर्ना सोचिए, सोचकर ही रूह कांप जाती है.
रविवार, 16 फरवरी को महाकुंभ में एक पांटून पुल को पार करते भक्तों की तस्वीर (फोटो: पीटीआई)
सीट तक नहीं पहुंच पा रहे टिकटधारी
ये स्थिति कैसे होती है, आसनसोल के एक वीडियो से समझा जा सकता है, जहां पहले स्टेशन के बाहर लोगों को रेलवे पुलिस रस्सी के सहारे रोक कर रखती है लेकिन जैसे ही रस्सी हटती है भाग दौड़, खींचतान में बचते बचाते अगर स्टेशन के भीतर पहुंचते हैं तो समस्तीपुर में रेल प्रशासन कहता है कि प्रयागराज जाना है तो धैर्य से जाएं. लेकिन हर स्टेशन पर धैर्य नहीं बल्कि लोग किसी भी हाल में कुंभ स्नान के लिए प्रयागराज पहुंचने के चक्कर में हर रिस्क तक लेने को तैयार दिखते हैं. मुजफ्फरपुर का एक वीडियो इसकी गवाही देता है, जहां दरवाजे नहीं बल्कि खिड़की ही एंट्री का रास्ता है. पवन एक्सप्रेस में सब खिड़की से ट्रेन में प्रवेश करते दिखे क्योंकि दरवाजों से घुसने की जगह ही नहीं बची.
पिछले कई दिन से यही हालात दिख रहे हैं, जहां जिनका टिकट है वो भी अपनी रिजर्व सीट पर पहुंच नहीं पा रहे. जनरल टिकट कटाकर लोग एसी डिब्बे में बैठ रहे हैं और ना जाने कितने लोग तो टिकट ही नहीं लेते. जिन्हें रोका जाता है तो जवाब चौंकाने वाले मिलते हैं. कुंभ जाते लोगों की इस वक्त देश में दो तरह की प्रतिक्रिया दिखती है. पहली जब वो ट्रेन में किसी तरह घुसकर जाते हैं, चाहे वो टॉयलेट के पास ही जगह क्यों ना हो. तब मजबूरी में लाचार होकर सिस्टम-सरकार पर सवाल उठाते हैं. लेकिन जब इन परिस्थितियों में भी किसी तरह यही जनता कुंभ स्नान करने प्रयागराज पहुंच जाती है तो फिर भले ट्रेन में जूझना पड़ा हो, भले प्रयागराज में दस पंद्रह किमी चलना पड़ा हो लेकिन कुंभ स्नान करके सारी समस्या को भूलकर कहते हैं- 'सब बढ़िया है'.
पानी के रास्ते पहुंचे प्रयागराज
पहले कुंभ में शाही स्नान के दौरान ही भक्तों की बड़ी तादाद प्रयागराज में देखी जाती रही. फिर वीकेंड के आसपास ये संख्या अचानक से बढ़ती दिखती रही लेकिन धीरे-धीरे जब सारे कीर्तिमान किनारे होने लगे तो फिर क्या वीकेंड या क्या हफ्ते के बीच का दिन, रोज डेढ़ करोड़ से ज्यादा लोग कुंभ तक पहुंचने लगे और तब बक्सर से आई खबर ने सबको चौंका दिया. जहां रास्ते जाम थे, ट्रेने फुल थीं तो 7 लोग मोटरबोट से पानी के रास्ते 275 किलोमीटर सफर करके महाकुंभ पहुंच गए. संगम में डुबकी लगाई और वापस उसी रास्ते बिहार में अपने गांव पहुंच गए.
कुंभ में अभी नौ दिन बाकी हैं. मुख्यमंत्री कहते हैं कि अगर आस्था को सम्मान दिया गया होता तो आज प्रदेश और देश की अर्थव्यवस्था कहां पहुंची होती. विपक्ष कहता है कि कुंभ में अव्यवस्था हावी रही. सियासी वाद-विवाद के इस संगम में सवाल है कि क्या आस्था ही अर्थव्यवस्था की बड़ी कुंजी हो सकती है, जिस पर राजनीति नहीं बल्कि देशनीति की जरूरत है.