यूपी की राजधानी लखनऊ की एक कोर्ट में संजीव जीवा की हत्या के बाद गुरुवार को शामली के गांव आदमपुर में उसका अंतिम संस्कार किया गया. इस दौरान ग्रामीणों का गुस्सा देखने को मिला. ग्रामीणों कहना है कि यूपी में जंगलराज है. न जज है, न ही कानून. पुलिस की सुरक्षा में संजीव की हत्या होना पुलिस प्रशासन और शासन का फेलियर है.
दरअसल, शामली के गांव आदमपुर में संजीव जीवा का अंतिम संस्कार किया गया. इस दौरान लोगों में गुस्सा देखने को मिला. लोगों का आरोप है कि पुलिस ने अंतिम संस्कार में जाने से रोका. ग्रामीणों ने कहा कि पुलिस ने संजीव का शव तक नहीं देखने दिया.
'कानून जो चाहता उसको सजा देता, मगर...'
पुलिस ने अंतिम संस्कार में शामिल होने वालों की एक लिस्ट तैयार की थी. इसमें 10 लोगों के ही नाम थे. ग्रामीणों का कहना है कि कानून जो चाहता उसको सजा देता. मगर, संजीव के साथ जो हुआ है, उसको लेकर गांव में काफी रोष और गम का माहौल है. कोर्ट परिसर में संजीव की हत्या ये बताती है कि कोई कानून व्यवस्था नहीं रह गई है.
गौरतलब है कि विशेष न्यायाधीश एससी/एसटी एक्ट की कोर्ट में बुधवार को शूटर विजय यादव ने संजीव जीवा की हत्या की थी. कोर्ट में मौजूद प्रत्यक्षदर्शी वकील ने बताया था कि कोर्ट में भीड़ थी. जीवा सुनवाई का इंतजार कर रहा था. तभी एक शूटर आया और उस पर अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दीं. मौके पर मौजूद एक महिला की गोद में बच्ची थी. इस दौरान मासूम के पीठ पर गोली लगी है, जो पेट से निकल गई.
वारदात को लेकर प्रत्यक्षदर्शी की जुबानी
वहीं, महिला के अंगूठे में गोली लगी. इस दौरान एक पुलिस कांस्टेबल को भी गोली लगी. प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि संजीव जान बचाने के लिए अंदर भागा और वह 10 से 15 मिनट तक बेसुध पड़ा रहा. शूटर कह रहा था कि हम जीवा को मारने आए थे और मार दिया. जीवा पर बीजेपी नेता ब्रह्मदत्त द्विवेदी की हत्या का आरोप था, जिन्होंने कभी मायावती की गेस्ट हाउस कांड में जान बचाई थी. जीवा पर जेल से गैंग चलाने और आपराधिक गतिविधियों को अंजाम देने का आरोप था.