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मशहूर शायर मुनव्वर राणा की तबीयत बिगड़ी, वेंटिलेटर पर किए गए शिफ्ट, अगले 72 घंटे बेहद अहम

मशहूर शायर मुनव्वर राणा (Munawwar Rana) की तबीयत खराब हो गई है जिसके बाद उन्हें लखनऊ के अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया गया है. उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया है और डॉक्टरों ने अगले 72 घंटे उनके स्वास्थ्य के लिए बेहद अहम बताए हैं.

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मुनव्वर राणा को फिलहाल वेंटिलेटर पर रखा गया है
मुनव्वर राणा को फिलहाल वेंटिलेटर पर रखा गया है

मशहूर शायर मुनव्वर राणा की तबीयत बिगड़ गई है है जिसके चलते उन्हें लखनऊ के अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया गया है. मुनव्वर राणा को अपोलो अस्पताल के आईसीयू वार्ड में शिफ्ट करके वेंटिलेटर पर रखा गया है. उनकी बेटी सुमैया राणा ने देर रात साढ़े तीन बजे वीडियो जारी करते हुए इसकी जानकारी दी. उन्होंने बताया कि उनके पिता मुन्नवर राणा की तबीयत पिछले कुछ दिनों से ठीक नहीं चल रही जिसके कारण उन्हें लखनऊ के अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया गया.

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अगले 72 घंटे बेहद अहम

राणा की बेटी और सपा नेता सुमैया राणा ने बताया कि उनके पिता का स्वास्थ्य पिछले दो-तीन दिनों से खराब है और डायलिसिस के दौरान उनके पेट में दर्द था जिसके चलते डॉक्टर ने उन्हें एडमिट कर लिया. सीटी स्कैन में आया कि,उनके गॉल ब्लैडर में कुछ दिक्कत है जिसके चलते उसकी सर्जरी की गई. तबीयत में सुधार नहीं हुआ तो उसके बाद वह वेंटिलेटर सपोर्ट सिस्टम पर चले गए. हालांकि डॉक्टर उनके स्वास्थ्य पर लगातार निगरानी रखे हुए हैं और इन्फेक्शन को कम करने की कोशिश की जा रही है. डाक्टरों ने राणा के लिए अगले 72 घंटे काफी क्रिटिकल बताए हैं.

काफी समय से चल रहे हैं बीमार

आपको बता दें कि पिछले साल भी उनकी तबीयत बिगड़ गई थी जिसके बाद उन्हें लखनऊ के एसजीपीजीआई (SGPGI) में एडमिट कराया गया था. राणा किडनी की परेशानी की वजह से डायलिसिस पर चल रहे हैं. जानकारी के मुताबिक, मशहूर शायर मुनव्वर राणा किडनी की परेशानी की वजह से डायलिसिस पर चल रहे हैं. इससे पहले उनका दिल्ली में भी इलाज हुआ था.

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कौन हैं राणा?

मुनव्वर राणा प्रसिद्ध शायर और कवि हैं, उर्दू के अलावा हिंदी और अवधी भाषाओं में लिखते हैं. मुनव्वर ने कई अलग शैलियों में अपनी गजलें प्रकाशित की हैं. उनको उर्दू साहित्य के लिए 2014 का साहित्य अकादमी पुरस्कार (Sahitya Akademi Award) और 2012 में शहीद शोध संस्थान द्वारा माटी रतन सम्मान (Maati Ratan Samman) से सम्मानित किया गया था. उन्होंने लगभग एक साल बाद अकादमी पुरस्कार लौटा दिया था. साथ ही बढ़ती असहिष्णुता के कारण कभी भी सरकारी पुरस्कार स्वीकार नहीं करने की कसम खाई थी.


 

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