अयोध्या में राम मंदिर में राम लला के प्राण-प्रतिष्ठा की तैयारी है. ये कार्यक्रम 22 जनवरी 2024 को होने जा रहा है. विपक्ष दल इसे राजनीति से जोड़कर देख रहे हैं और बीजेपी का कार्यक्रम बताकर किनारा काट रहे हैं. इस बीच, केंद्र सरकार ने अयोध्या के अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट का नाम बदलने की तैयारी कर ली है. नया नाम 'महर्षि वाल्मिकी अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट अयोध्या धाम रखा जाएगा. पहले इस एयरपोर्ट को मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम इंटरनेशनल एयरपोर्ट कहा जाता था. उद्घाटन से ठीक पहले अचानक एयरपोर्ट का नाम बदलने की खबरों के सियासी मायने निकाले जाने लगे हैं. ऐसा माना जा रहा है कि सरकार ने दलित वोटर्स को साधने के लिए यह कदम उठाया है.
गुरुवार को आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि अयोध्या में जिस एयरपोर्ट का 30 दिसंबर को उद्घाटन होना है, उसका नाम 'महर्षि वाल्मिकी अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट, अयोध्याधाम' रखा जाएगा. महर्षि वाल्मीकि ने ही महाकाव्य 'रामायण' लिखा था. महर्षि वाल्मीकि को देश में बड़ी संख्या में लोग पूजते हैं. विशेषकर दलितों में बड़ी संख्या में अनुयायी हैं. अगर इस फैसले पर अंतिम मुहर लगती है तो सरकार के दांव को एक बड़े वर्ग को साधे के तौर पर देखा जाएगा.
'धार्मिक कार्ड खेलने की तैयारी में बीजेपी'
चूंकि इस समारोह के कुछ महीने बाद आम चुनाव होने हैं और बीजेपी राम मंदिर आंदोलन से वर्षों से सीधे जुड़ी रही है. यही वजह है कि बीजेपी राम मंदिर मुद्दे को विधानसभा चुनाव के बाद लोकसभा चुनाव में भी लेकर जाने वाली है. यानी आम चुनाव में बीजेपी सरकार की उपलब्धियों में से एक राम मंदिर निर्माण और काशी विश्वानाथ कॉरिडोर भी होगा. बीजेपी ने धार्मिक कार्ड के साथ-साथ अन्य वर्गों को भी साधने की तैयारी की है. यही वजह है कि एयरपोर्ट के नाम में बदलाव कर बड़ा दांव खेलने का प्लान बना लिया है.
हालांकि, राम मंदिर मसले में विपक्ष बहुत सधे अंदाज में देखा जा रहा है. कहा जा सकता है कि विपक्षी दल फायदा और नुकसान देख रहे हैं. बयानबाजी से भी परहेज कर रहे हैं. वहीं, बीजेपी खुलकर विपक्ष पर हमलावर है. बीजेपी ने पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण को बड़ा मुद्दा उठाया. लोगों को अयोध्या आने का न्योता दिया.
'दलित वोटर्स को साधेगी बीजेपी'
जानकारों का कहना है कि बीजेपी नेतृत्व सामाजिक समीकरण को साधने में जुटा है. पार्टी ने आम चुनाव से पहले दलितों को साधने की तैयारी की है. एयरपोर्ट का नाम महर्षि वाल्मिकी के नाम पर रखे जाने से पूरे देश में एक सामाजिक संदेश जाएगा. यूपी समेत हिंदी बेल्ट के कई बड़े राज्यों में दलित वोटर्स निर्णायक भूमिका में हैं. 2019 के आम चुनाव और फिर 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में दलित वोटर्स ने बड़ी संख्या में बीजेपी को सपोर्ट किया था. इसका बसपा को नुकसान उठाना पड़ा था. बीजेपी भी दलित वर्ग को साधने के लिए हरसंभव कदम उठा रही है. काफी हद तक वो इसमें कामयाब भी रही है.
यूपी में जातिगत समीकरण तय करते हैं हार-जीत...
यूपी में जातिगत समीकरण को देखा जाए तो यूपी में हार-जीत उम्मीदवारों की जातियां ही तय करती हैं. जाट, मुस्लिम, दलित, जाटव, यादव, कुशवाहा, सैनी, कश्यप, ठाकुर, ब्राह्मण, गुर्जर और वाल्मीकि जातियों के वोट अहम माने जाते हैं. कई इलाकों में इन जातियों को ही सीक्रेट किंगमेकर माना जाता है. इन जातियों को साधने के लिए सभी पार्टियां हरसंभव कोशिश करती हैं. यूपी में दलित मतदाता 21 फीसदी हैं. जबकि पश्चिमी यूपी में 26 फीसदी के करीब है, जिनमें 80 फीसदी जाटव शामिल है.
यूपी में वाल्मीकि समाज का कितना प्रभाव...
यूपी में वाल्मिकी समुदाय के वोटर्स की संख्या काफी ज्यादा है. खासतौर पर पश्चिमी यूपी के मेरठ, नोएडा, बागपत, गाजियाबाद, बुलंदशहर, अलीगढ़, हाथरस, रामपुर, आगरा जिलों में वाल्मिकी समुदाय अहम है. इसके अलावा यूपी के अन्य जिलों में भी वाल्मीकि समुदाय का प्रभाव है. बीजेपी और संघ ने वाल्मीकि समुदाय के बीच अच्छा खासा काम किया है, जिसके चलते ये बीजेपी के हार्डकोर वोटर हैं. हालांकि, विपक्ष की ओर से सपा और कांग्रेस भी वाल्मीकि समुदाय के बीच सेंधमारी करने की कोशिश में रहती है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुस्लिम, जाट और जाटव के बाद गुर्जर, ठाकुर, सैनी, कश्यप, वाल्मीकि मतदाताओं की संख्या अधिक है. जो दल जातियों को साधने में सफल रहते हैं, उनकी चुनावी जीत तय मानी जाती है.