श्री राम की जन्मभूमि अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के बाद शिव भक्तों के लिए भी खुशखबरी आ गई है. मंदिर-मस्जिद विवाद की काली छाया के बाद अब लगभग 38 वर्ष बाद शिव भक्तों को यह खुशखबरी मिली है. एक बार फिर श्री राम जन्मभूमि परिसर में कुबेर टीले पर स्थित शिव मंदिर में इस शिवरात्रि को धूमधाम से भोले का अभिषेक भी हुआ.
पूजन के समय खुद रामलला भी मौजूद रहे. इसके पहले मंदिर-मस्जिद विवाद के बीच सुरक्षा कारणों से कुबेर टीला स्थित शिव मंदिर में पूजा नहीं होने की वजह से यह स्थान उजाड़ और क्षतिग्रस्त हो गया था. श्री राम जन्मभूमि निर्माण के साथ ही इसका भी जीर्णोधार हुआ है. यहां पूजन के साथ ही मंदिर निर्माण का कार्य शुरू हुआ था.
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श्री राम की जन्मभूमि से जब विवाद की काली छाया हटी, तो परिसर में स्थित कुबेर टीले पर शिव मंदिर के अच्छे दिन भी आ गए. पहले इस स्थान को पुरातात्विक धरोहर माना जाता था. मगर, 1992 में परिसर में हुए विध्वंस के बाद इसे भी अधिग्रहण के दायरे में शामिल कर लिया गया था.
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राम के पूर्वज महाराजा रघु ने कराया था निर्माण
यह स्थान अत्यंत प्राचीन है. इसकी स्थापना के बारे में कहा जाता है कि भगवान श्री राम के पूर्वज महाराजा रघु के समय में इसका निर्माण किया गया था. पहले महाशिवरात्रि के समय यहां विशाल मेले का आयोजन भी होता था और रात्रि में शिव बारात भी निकलती थी. मगर, बाद में यह बंद हो गया.
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट से श्री राम जन्मभूमि मंदिर के पक्ष में फैसला आने के बाद श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का गठन हुआ. उसके बाद अधिग्रहित जमीन के साथ कुबेर टीले की भूमि भी ट्रस्ट को मिल गई और श्री राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण के पहले बाकायदा इस स्थान पर पूजन अर्चन भी किया गया था.
आचार्य सत्येंद्र दास ने बताई पौराणिक कहानी
श्री राम जन्मभूमि मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास ने कहा कि महाप्रतापी राजा रघु हुए. रघु जी को जिस समय एक आवश्यकता पड़ी, तब वह अपनी सारी संपत्ति दान कर चुके थे. एक गौश नाम के शिष्य आए उन्होंने इनसे याचना की कि हमको 14 सहस्त्र स्वर्ण मुद्रा चाहिए.
उन्होंने निश्चित किया कि कुबेर के ऊपर चढ़ाई करें. कुबेर को जब पता चला कि तो उन्होंने स्वर्ण मुद्रा का एक छोटा पहाड़ ही गिरा दिया. जितनी स्वर्ण मुद्राओं की जरूरत थी, महाराज रघु ने गौश को दे दी. मगर, शिष्य के नाम से यह खजाना आया था, इसलिए महाराजा रघु अपने खजाने में बाकी की स्वर्ण मुद्राओं को नहीं ले जा सकते थे. इसलिए वहां पर भगवान शिव की स्थापना कर दी गई. तभी से वहां पर यह मूर्ति स्थापित है.
38 साल बाद फिर से मंदिर में शुरू हुई पूजा
साल 1992 से यहां पूजन अर्चन बंद हो गया था. इस वर्ष सौभाग्य की बात है भगवान श्री राम लला की प्राण प्रतिष्ठा हो गई है और राम मंदिर बन गया है. इसके बाद ही अब शिवरात्रि आ गई है. इस शिवरात्रि पर सभी लोगों ने सोचा पूजा अर्चना और भाव उत्सव मनाया जाए.
जिस प्रकार भगवान श्री राम लाल का प्राण प्रतिष्ठा का उत्सव मनाया गया. उसी तरह से इस वर्ष कुबेर टीला पर विराजमान भगवान श्री शिव का उत्सव मनाया जा रहा है. उसके साथ-साथ उनकी जहां उनकी प्रतिमा का जो यह स्वरूप है, उसको बड़े ढंग से सजाया गया है. लोगों के जाने का रास्ता भी बनाया गया है.