scorecardresearch
 

रामचरितमानस विवाद में मायावती की एंट्री, कहा- सपा और बीजेपी एक-दूसरे की पूरक

बसपा प्रमुख मायावती ने रामचरितमानस विवाद को लेकर ट्वीट कर सपा और बीजेपी, दोनों ही दलों पर हमला बोला है. मायावती ने कहा है कि रामचरितमानस को लेकर बीजेपी की प्रतिक्रिया और सपा नेतृत्व के मौन से साफ है कि दोनों दलों की मिलीभगत है.

Advertisement
X
मायावती (फाइल फोटो)
मायावती (फाइल फोटो)

समाजवादी पार्टी (सपा) के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने रामचरितमानस को लेकर सवाल खड़े करते हुए बयान दिया था. स्वामी प्रसाद मौर्य के रामचरितमानस को लेकर बयान पर मचे सियासी घमासान में अब बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती की भी एंट्री हो गई है. बसपा प्रमुख मायावती ने ट्वीट कर रामचरितमानस विवाद को लेकर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के साथ ही सपा को भी घेरा है.

Advertisement

मायावती ने ट्वीट कर कहा है कि संकीर्ण राजनीतिक और चुनावी स्वार्थ के लिए नए-नए विवाद खड़ा करके जातीय और धार्मिक द्वेष, उन्माद, उत्तेजना और नफरत फैलाना बीजेपी की पहचान रहा है. उन्होंने कहा कि बीजेपी के बायकाट कल्चर, धर्मांतरण को लेकर उग्रता से सभी परिचित हैं. मायावती ने कहा कि लेकिन रामचरितमानस की आड़ में सपा का भी वही राजनीतिक रंग-रूप दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है.

बसपा प्रमुख ने कहा कि रामचरितमानस के खिलाफ सपा नेता की टिप्पणी को लेकर उठे विवाद और फिर उसे लेकर बीजेपी की प्रतिक्रिया के बावजूद सपा नेतृत्व ने मौन साधे रखा. उन्होंने कहा कि इससे साफ है कि दोनों दलों की मिलीभगत है. मायावती ने कहा कि दोनों पार्टियों की मिलीभगत है जिससे आने वाले चुनाव में जनता से जुड़े मुद्दों की बजाए हिंदू-मुसलमान करके वोटों का ध्रुवीकरण किया जा सके.

Advertisement

उन्होंने आरोप लगाया कि यूपी चुनाव में भी सपा और बीजेपी ने साजिश के तहत मिलीभगत के जरिए धार्मिक उन्माद फैलाया और घोर सांप्रदायिक माहौल बनाकर एक-दूसरे के पूरक के रूप में काम किया. मायावती ने दोनों ही दलों पर हमला बोलते हुए कहा कि इसकी वजह से बीजेपी दोबारा यूपी की सत्ता पर काबिज हो गई. उन्होंने ये भी कहा है कि इस तरह की घृणित राजनीति का शिकार होने से बचना जरूरी है.

क्या है रामचरितमानस विवाद

सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने रामचरितमानस को बकवास बताते हुए कहा था कि कई करोड़ लोग इसे नहीं पढ़ते. तुलसीदास ने अपनी खुशी के लिए इसे लिखा था. उन्होंने ये भी कहा था कि रामचरितमानस से आपत्तिजनक अंश हटा दिया जाना चाहिए और नहीं तो इसे बैन कर देना चाहिए. स्वामी प्रसाद मौर्य के बयान के बाद विवाद ने तूल पकड़ा तो सपा ने इससे किनारा कर लिया. हालांकि, सपा प्रमुख अखिलेश यादव मौन साधे रहे.

सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने स्वामी प्रसाद मौर्य को बुलाकर मुलाकात की, लंबी बात की लेकिन न तो मौर्य और ना ही अखिलेश, किसी ने भी रामचरितमानस विवाद को लेकर इस दौरान चर्चा होने को लेकर कुछ कहा. इसके ठीक बाद ही सपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी का ऐलान हुआ तो स्वामी प्रसाद को पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव का पद दिया गया जिसे सियासी गलियारे में रामचरितमानस विवाद के लिए इनाम के तौर पर देखा जा रहा है. स्वामी प्रसाद ने भी अखिलेश की चुप्पी को लेकर कहा था कि मौन स्वीकारोक्ति का लक्षण होता है.

Advertisement

 

Advertisement
Advertisement