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धार्मिक मामलों से दूरी, जातिगत जनगणना पर मुखर... रामचरितमानस विवाद के बीच किस 'ट्रैक' पर सपा?

स्वामी प्रसाद मौर्य के रामचरितमानस को लेकर बयान पर मचे सियासी घमासान के बीच सपा ने अपने नेताओं को एक पत्र भेजा है. सपा की ओर से भेजे गए पत्र में सभी को पार्टी लाइन पर चलने की हिदायत दी गई है. नेताओं को ये संदेश भी दिया गया है कि धार्मिक मामलों पर किसी बहस में उलझने से बचें.

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अखिलेश यादव (फाइल फोटो)
अखिलेश यादव (फाइल फोटो)

स्वामी प्रसाद मौर्य के रामचरितमानस को लेकर बयान पर सियासी घमासान मचा है. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के साथ ही साधु-संतों ने मोर्चा खोल रखा है तो वहीं, पार्टी भी इसे लेकर दो धड़ों में बंटी नजर आ रही है. शिवपाल यादव और राम गोपाल यादव जैसे नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के बयान से किनारा कर चुके हैं तो वहीं कुछ नेता खुलकर इसके विरोध में भी बोल रहे हैं. सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव पूरे विवाद को लेकर स्वामी प्रसाद के साथ खड़े नजर आए हैं लेकिन अब पार्टी की रणनीति बदलती नजर आ रही है.

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कई हफ्तों तक रामचरितमानस विवाद पर बयानबाजी, शूद्र सियासत के बाद अब सपा धार्मिक मामलों से दूरी बनाती, समाजवाद की अपनी पुरानी लाइन की ओर लौटती नजर आ रही है. दरअसल सपा की ओर से सभी प्रवक्ता के साथ ही जिलाध्यक्ष, निवर्तमान जिलाध्यक्ष, महानगर अध्यक्ष, सांसद, पूर्व सांसद, विधायक, पूर्व विधायक, प्रकोष्ठों के राष्ट्रीय अध्यक्ष, प्रदेश अध्यक्ष, जिलाध्यक्ष, महानगर अध्यक्ष समेत प्रमुख नेताओं को एक पत्र भेजा गया है.

सपा के मुख्य प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने अखिलेश यादव की ओर से ये पत्र भेजा. इस पत्र में सभी को स्पष्ट निर्देश दिया गया है कि पार्टी की आस्था लोहिया के आदर्शों से प्रेरणा लेकर लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद में बनी रहेगी. पार्टी की ओर से ये भी साफ किया गया है कि बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, महिलाओं और बच्चियों के मान-सम्मान से जुड़े मुद्दे उठाए जाएंगे. जातिगत जनगणना के मुद्दे पर भी पार्टी मुखर रहेगी.

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सपा ने इस पत्र में धार्मिक मुद्दे को संवेदनशील मामला बताया और ये साफ निर्देश दिया है कि इन मामलों पर किसी तरह की बहस में नहीं उलझना है. सपा के सभी नेताओं को पार्टी लाइन पर चलने की सख्त हिदायत दी गई है. ऐसा नहीं करने पर एक्शन की भी चेतावनी दी गई है. सपा का ये पत्र ऐसे समय में सामने आया है, जब पार्टी ने स्वामी प्रसाद को लेकर बयानबाजी करने के कारण रोली तिवारी मिश्रा और ऋचा सिंह को बाहर का रास्ता दिखा दिया है.

इस पत्र को सपा के धार्मिक और संवेदनशील मामलों पर बहस में उलझने की जगह अपनी पुरानी लाइन पर लौटने का संकेत माना जा रहा है. कहा तो ये भी जा रहा है कि रामचरितमानस सपा के लिए दोधारी तलवार साबित हो सकता है, ऐसे में हालात का आकलन करते हुए पार्टी एक तरफ स्वामी प्रसाद के साथ खड़ी तो नजर आ रही है. साथ ही इस तरह के विवाद को और तूल न दिया जाए, इस कोशिश में भी जुट गई है.

स्वामी के साथ खड़े नजर आए हैं अखिलेश

अखिलेश यादव रामचरितमानस विवाद के दौरान खुलकर कुछ बोलने से बचते नजर आए हैं लेकिन साथ भी खड़े नजर आए हैं. विवाद के बीच ही अखिलेश यादव ने स्वामी प्रसाद मौर्य को महासचिव बनाकर राष्ट्रीय कार्यकारिणी में जगह दी. स्वामी के खिलाफ मुखर रोली तिवारी मिश्रा और ऋचा सिंह को बाहर का रास्ता भी दिखा दिया.

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शिवपाल-रामगोपाल की लाइन अलग

अखिलेश यादव भले ही स्वामी प्रसाद के साथ खड़े नजर आए हों, चाचा शिवपाल और रामगोपाल यादव की लाइन अलग ही नजर आई है. शिवपाल ने जहां इसे स्वामी प्रसाद के निजी विचार बताकर विवाद से पल्ला झाड़ लिया था. वहीं, पार्टी के प्रमुख राष्ट्रीय महासचिव रामगोपाल यादव ने सपा को शिवजी की बारात बताते हुए कहा था कि यहां सभी विचारों के लोग हैं. रामगोपाल ने ये भी साफ कहा था कि हमारी आस्था समाजवादी विचारधारा में है.

 

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