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रामचरितमानस पर रार... स्वामी प्रसाद मौर्य को लेकर अखिलेश की चुप्पी के पीछे नाराजगी है या रणनीति?

रामचरितमानस पर सवाल खड़े कर स्वामी प्रसाद मौर्य ने उत्तर प्रदेश की सियासी तपिश बढ़ा दी है. बीजेपी आक्रमक है तो सपा का भी एक खेमा स्वामी प्रसाद के बयान से नाराज है. अखिलेश यादव चुप हैं और अभी तक उन्होंने कोई लाइन नहीं ली है. ऐसे में अखिलेश की चुप्पी क्या सपा की रणनीति का हिस्सा है या फिर वो स्वामी प्रसाद से नाराज हैं?

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अखिलेश यादव और स्वामी प्रसाद मौर्य
अखिलेश यादव और स्वामी प्रसाद मौर्य

सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य की रामचरितमानस पर जुबान नहीं फिसली है बल्कि सोच-समझकर दिया गया बयान है. स्वामी प्रसाद ने रामचरितमानस को सिर्फ बकवास ही नहीं बताया बल्कि उन चौपाइयों को भी हटाने की मांग की है, जिन्हें दलितों के खिलाफ माना जाता है. इस बयान को लेकर बीजेपी आक्रमक है तो सपा के अंदर भी आवाज उठने लगी है. स्वामी प्रसाद के बयान से शिवपाल यादव ने भले ही किनारा कर लिया है, लेकिन सपा प्रमुख अखिलेश यादव अभी तक अपना स्टैंड साफ नहीं कर सके हैं. अखिलेश क्या स्वामी प्रसाद को लेकर नाराज हैं या फिर किसी रणनीति के तहत चुप्पी अख्तियार कर रखी है? 

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स्वामी को लेकर सपा के सवर्ण नेता मुखर

समाजवादी पार्टी के ज्यादातर ब्राह्मण-ठाकुर नेता और विधायक रामचरितमानस पर स्वामी प्रसाद मौर्य के बयान से खासे नाराज हैं. उन्होंने इसकी शिकायत भी सपा प्रमुख अखिलेश यादव की है. सपा विधायक मनोज पांडेय ने रामचरितमानस की महत्ता और हिंदू जीवन दर्शन में उसके महत्व की बात बताई. विधायक राकेश प्रताप सिंह, पूर्व विधायक संतोष पांडे सहित कई स्वर्ण नेताओं ने सपा प्रमुख अखिलेश यादव से स्वामी प्रसाद मौर्य के बयान की आलोचना की है. 

शिवपाल ने बयान से किया किनारा

वहीं, सपा नेता शिवपाल यादव और रविदास मेहरोत्रा ने स्वामी प्रसाद मौर्य के बयान से किनारा कर लिया और उनका निजी बयान बताकर पल्ला झाड़ लिया है. शिवपाल ने कहा कि समाजवादी पार्टी स्वामी प्रसाद मौर्य के बयान से सहमत नहीं है. ये उनका अपना व्यक्तिगत बयान है पार्टी का इससे कोई लेना देना नहीं. हमलोग भगवान राम और कृष्ण के आदर्शों पर चलने वाले लोग हैं. इसके साथ ही उन्होंने सवाल खड़े करते हुए काह कि क्या बीजेपी भगवान राम के बताए रास्ते पर चलने वाली पार्टी है. सपा की लाइन सिर्फ इतनी है कि यह स्वामी प्रसाद मौर्य का निजी बयान है इससे पार्टी इत्तेफाक नहीं रखती है. इस तरह से अखिलेश भी चुप हैं. 

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अखिलेश यादव दो नाव पर सवार

दरअसल, सपा प्रमुख अखिलेश यादव एक तरफ अपने कोर वोटबैंक यादव-मुस्लिम-दलित-अतिपिछड़े समीकरण को साधे रखना चाहते हैं तो दूसरी तरफ हिंदुओं को भी नाराज नहीं करना चाहते हैं. इसी के चलते स्वामी प्रसाद के रामचरितमानस पर दिए बयान से अखिलेश यादव कशमकश में फंसे गए हैं, जिसके चलते उन्होंने खामोशी अख्तियार कर रखी है. फिलहाल अखिलेश यादव चुप हैं और इस विषय पर विमर्श को ज्यादा बढ़ाने के मूड में नहीं हैं. 

सपा प्रमुख अखिलेश यादव को लगता है कि चुप रहना ही उन्हें फायदा दे सकता है, क्योंकि पार्टी के भीतर दोनों विचारों को खारिज नहीं किया जा सकता है. सपा सूत्रों की मानें तो अखिलेश यादव की तरफ से स्वामी प्रसाद को यह संदेश भिजवाया गया है कि वह फिलहाल चुप रहें और रामचरितमानस को बकवास कहने या फिर प्रतिबंधित करने जैसी बातों से बचें. सपा इस तरह से दो नाव पर सवार होना चाहती है? 

समाजवादी पार्टी को यह भी लगता है कि अगर स्वामी प्रसाद मौर्य के बयान पर किसी तरह के सख्त स्टैंड लिया जाता है तो उससे अतिपिछड़ों में और अंबेडकरवादी सोच रखने वाले लोगों में मैसेज अच्छा नहीं जाएगा. इसीलिए स्वामी प्रसाद मौर्य के बयान पर किसी तरह की टिप्पणी करने के बजाय खामोश रहना ही अखिलेश बेहतर समझ रहे हैं, क्योंकि स्वामी प्रसाद के समर्थन में भी खड़े होकर बीजेपी को ध्रुवीकरण करने का मौका नहीं देना चाहते हैं. इसलिए पार्टी ने फिलहाल दोनों नाव पर पैर रखा हुआ है. 

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अखिलेश साफ्ट हिंदुत्व की राह पर

सूबे के बदले हुए राजनीतिक माहौल और सियासत के तौर तरीके के चलते अखिलेश यादव ने भी खुद को बदला है. बीजेपी से मुकाबला करने के लिए साफ्ट हिंदुत्व की राह पकड़ी है. भगवान कृष्ण और विष्णु का मंदिर बनवाने से लेकर खुद को हनुमान भक्त जैसे बयान तक देते रहे हैं. इतना ही नहीं ब्राह्मणों को साधे रखने के लिए परशुराम की भी मूर्ति का अनावरण कर चुके हैं. इस तरह बीजेपी के हार्ड हिंदुत्व के सामने साफ्ट हिंदुत्व की राह पर चल रहे हैं. 

सपा के अंबेडकरवादियों का क्या होगा 

अखिलेश यादव सपा को एम-वाई समीकरण (मुस्लिम-यादव) को जोड़े रखते हुए दलितों और अतिपिछड़े वर्ग को भी जोड़ने की रणनीति पर काम कर रहे हैं. सपा को एम-वाई छवि से निकालकर सर्वसमाज की पार्टी बनाना चाहते हैं, जिसके चलते उन्होंने बसपा मिशनरी से जुड़े रहे नेताओं का भी साथ लिया. इसके बाद से अखिलेश यादव ने कहा था कि लोहियावादी और अंबेडकरवादी एक साथ मिलकर बीजेपी को हराएंगे. सपा को इस रणनीति का फायदा भी चुनाव में मिला. बसपा और कांग्रेस के बजाय सपा लोगों की पंसद बनी. बसपा छोड़कर सपा में आए ज्यादातर नेता जीत गए

अंबेडकरवादी नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के बयान ने अखिलेश के लिए चिंता बढ़ा दी है, क्योंकि बीजेपी ने सपा को हिंदू विरोधी कठघरे में खड़ा करना शुरू कर दिया है. लेकिन, सपा के समाने मजबूरी है कि किस तरह से 2022 के चुनाव में पार्टी के साथ आए दलित और पिछड़े वाटों को दूर नहीं जाने देना चाहती है जबकि पार्टी में ब्राह्मण और ठाकुर नेताओं का एक गुट उनके विरोध में है. हालांकि, चुनाव में ब्राह्मणों और ठाकुरों की पहली पसंद बीजेपी बनी है, पर अभी भी अखिलेश को उम्मीद है कि बीजेपी से नाराज होंगे तो उनके साथ ही आएंगे. 

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अखिलेश न विरोध कर पा रहे न समर्थन

सपा प्रमुख अखिलेश यादव के सामने ऐसी स्थिति बन गई है कि वह स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ न खुलकर खड़े हो पा रहे हैं और न ही सार्वजानिक रूप से विरोध कर पा रहे हैं. सपा में एक बड़ा दलित और ओबीसी का खेमा है, जो स्वामी प्रसाद मौर्य के बयान से सहमत है और दबी जुबान से समर्थन भी कर रहा है, लेकिन पार्टी के ब्राह्मण और ठाकुर समुदाय के नेताओं ने मोर्चा खोल रखा है. 

अखिलेश यादव फिलहाल खामोशी अख्तियार करने में ही अपना सियासी फायदा देख रहे हैं, क्योंकि वैचारिक रूप से सपा का स्टैंड साफ नहीं है. सपा तय नहीं कर पा रही है कि किस लाइन पर चला जाए. अखिलेश यादव एक तरफ सर्व समाज के नेता बने रहना चाहते हैं तो दूसरी तरफ अंबेडकरवादियों के जरिए सामाजिक न्याय का चेहरा गढ़ना चाहते हैं. इसी के चलते अखिलेश कशमकश में फंसे हुए हैं जबकि बिहार में आरजेडी इसी तरह के बयान देने वाले प्रो. चंद्रशेखर के साथ खुलकर खड़ी है.

 

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