रामपुर का नवाब परिवार मुश्किल से मुश्किल हालात में खुद को बचाए रखने में माहिर था, लेकिन आजम तो आजम ठहरे. नवाब खानदान की सियासत के लिए आजम ग्रहण बन गए और जिले में नवाबी सियासत को खत्म कर अपना दबदबा कायम कर ही दम लिया. वक्त बदला तो रामपुर की सियासत भी बदली. योगी सरकार ने पहले उन्हें और उनके परिवार को कानूनी शिंकजे में कसा और फिर बीजेपी ने आजम खां का सियासी खेल पूरी तरह से खत्म कर दिया. क्योंकि रामपुर लोकसभा सीट के बाद विधानसभा क्षेत्र में बीजेपी कमल खिलाने में कामयाब रही. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सूबे में यह आजम के सियासी युग का अंत है?
उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही आजम खान की मुश्किलें ऐसी बढ़ीं कि उन्हें जेल और अदालतों के चक्कर ही नहीं लगाने पड़े बल्कि अपनी विधानसभा सदस्यता भी गंवानी पड़ गई. हेट स्पीच मामले में आजम को कोर्ट ने 3 साल की सजा सुनाई, इसके बाद उनकी विधायकी रद्द कर दी गई. इसके बाद रामपुर विधानसभा सीट पर चुनाव कराया गया जिसमें वह अपने उम्मीदवार को जीत नहीं दिला सके. रामपुर में बीजेपी के आकाश सक्सेना ने 34 हजार मतों से जीत दर्ज की है.
रामपुर सीट से पहली बार हिंदू विधायक
रामपुर विधानसभा सीट पर उपचुनाव में 131116 वोट पड़े. इसमें बीजेपी प्रत्याशी आकाश सक्सेना को 81371 वोट मिले हैं जबकि सपा उम्मीदवार आसिम रजा को 47271 वोट मिले हैं. इस तरह से आकाश सक्सेना 34136 वोटों ने जीत हासिल करने में कामयाब रहे. इसी के साथ मुस्लिम बहुल रामपुर विधानसभा सीट पर पहली बार बीजेपी ने कमल खिलाया और पहली बार हिंदू समुदाय की विधायक भी बना दिया. आजम खान और सपा की मुस्लिम सियासत के लिए रामपुर की हार किसी बड़े झटके से कम नहीं है.
आजम खान की सियासत को बड़ा झटका
आजम खान पिछले 45 सालों से रामपुर विधानसभा सीट पर चुनाव लड़ते आ रहे थे. दस बार आजम खुद विधायक रहे और एक बार उनकी पत्नी तंजीन फातिमा उपचुनाव में जीती थीं. रामपुर उपचुनाव में इस बार भले आजम खां खुद चुनाव नहीं लड़ रहे थे, लेकिन अपने सियासी उत्तराधिकारी के तौर पर आसिम रजा को पूरे दमखम के साथ चुनाव लड़ा रहे थे. आसिम रजा को जून में हुए रामपुर लोकसभा चुनाव में भी आजम खां ने लड़ाया था, लेकिन जीत नहीं सके थे. इसके बाद विधानसभा सीट पर भी प्रत्याशी बना दिया.
रामपुर उपचुनाव में आजम खां भावनात्मक अपील कर रहे थे. वह जनसभाओं में कह रहे थे कि इस्लाम में खुदकुशी हराम है, नहीं तो मैं यह भी कर लेता. वे मुझे हरा नहीं सके तो मुझे ही हटा दिया. इन शब्दों के जरिए जहां अपनी सियासत को बचाने की अपील कर रहे थे तो दूसरी तरफ मंच पर अखिलेश यादव के बगल में दलित नेता चंद्रशेखर आजाद को बैठाकर दलित वोटों की लामबंदी का भी प्रयास किया था. सपा की इन तमाम कोशिशों के बावजूद उपचुनाव में आकाश सक्सेना ने आजम खां से सियासी जंग जीत ली है. रामपुर में आजम खां के जरिए की गई सपा की सियासी किलेबंदी ध्वस्त हो गई.
आजम खान की सियासत में एंट्री
आजादी के तीन चुनाव बीत जाने के बाद रामपुर की सियासत में नवाब परिवार ने कदम रखा. रामपुर के नवाबों ने कांग्रेस को अपने लिए मुफीद समझा. रामपुर के नवाब रहे जुल्फिकार अली खान उर्फ मिकी मियां साल 1967 में रामपुर से संसद में पहुंचे. मिकी मियां का रामपुर में उस समय जलवा ऐसा था कि कोई भी शख्स उनके खिलाफ एक शब्द भी बोलकर नहीं निकल सकता था. लेकिन आपातकाल के बाद हालात बदल गए. मामूली हैसियत वाले टाइपराइटर मुमताज का बेटा आजम खां जेल से जेल से छूटकर अपने शहर रामपुर लौटा और नवाब परिवार के लिए चुनौती बन गया.
आजम खां रामपुर से निकलकर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में वकालत पढ़ने गए जहां उन्हें सियासत रास आने लगी. वह अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ सेक्रेटरी बन गए. इसी दौरान आपातकाल के खिलाफ आजम खान सड़क पर उतर गए, जिसके बाद उन्हें जेल में 19 महीने बिताने पड़े. आजम जेल से आते ही 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर विधानसभा का चुनाव लड़ गए, लेकिन सामने थे कांग्रेस के मंजूर अली खान उर्फ शन्नू मियां. सियासत में आजम कच्चे थे और पैसा भी नहीं था. ऐसे में वो चुनाव हार गए, लेकिन हौसाला नहीं छोड़ा.
आजम पहली बार जब विधायक बने
साल 1980 में रामपुर विधानसभा सीट से फिर आजम ने किस्मत आजमाई और जीतकर विधानसभा पहुंचे. इसके बाद फिर आजम ने पलटकर नहीं देखा और लगातार जीतते रहे. धीरे-धीरे वह सूबे में मुस्लिम सियासत का चेहरा बन गए. वो अपने परिवार को भी राजनीति में ले आए. आजम खान की पत्नी सांसद-विधायक बनीं और बेटा विधानसभा पहुंचा. सत्ता में रहते हुए आजम ने अपने कई विरोधी पैदा कर लिए, जो उनके लिए मुसीबत का सबब बने.
यूपी में सियासत ने 2017 के चुनाव में करवट ली. बीजेपी सत्ता में आई और योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनते ही आजम खां पर संकट के बदल मंडराने लगे. एक के बाद एक मुकदमे उनके खिलाफ कायम होते गए, जिसमें कुछ मामले में वो बरी हो गए हैं, लेकिन 2019 के हेट स्पीच मामले में तीन साल की सजा हो गई. अदालत से सजायाफ्ता होने के चलते आजम खान खुद तो चुनाव नहीं ही लड़ सकते थे उनसे वोट डालने का आधिकार भी छिन गया. इस तरह से विपरीत परिस्थितियों में आजम खां खुद की न तो सियासत बचा पाए और न ही रामपुर के दुर्ग को सुरक्षित रख पाए.
रामपुर उपचुनाव में आसिम रजा को सपा प्रत्याशी बनाया तो आजम खां के तमाम मजबूत सिपहसलार उनका साथ छोड़कर बीजेपी के खेमे में चले गए. आजम के विरोधी पहले से ही बीजेपी खेमे में मजबूती से खड़े थे. लोकसभा के बाद विधानसभा क्षेत्र में भी कमल खिलाने के लिए बीजेपी ने पूरी ताकत झोंक रखी थी. सीएम योगी से लेकर डिप्टीसीएम केशव प्रसाद मौर्य और बृजेश पाठक सहित बीजेपी के तमाम दिग्गज नेता डेरा जमाए हुए थे. सुरेश खन्ना, जितिन प्रसाद और दानिश रजा अंसारी रामपुर में कैंप कर रहे थे.
वहीं, रामपुर में आजम खान अकेले आसिम रजा को जिताने के लिए मशक्कत कर रहे थे. चुनाव के आखिरी वक्त में सपा प्रमुख अखिलेश यादव और दलित नेता चंद्रशेखर आजाद ने रामपुर में पहुंचकर आजम खान का हौसला बढ़ाया लेकिन तब तक देर हो चुकी थी. सपा ने मुस्लिम वोटों के साथ-साथ दलित समुदाय को भी साधने की कवायद की, लेकिन बीजेपी के सियासी चक्रव्यूह को आजम खान तोड़ नहीं सके और अपनी परंपरागत व 10 बार की जीती हुई सीट गवां दी. बीजेपी से आकाश सक्सेना ने विधायक बनकर इतिहास रच दिया.
आजम खां को हेट स्पीच मामले में तीन साल की अदालत से सजा मिल चुकी है, जिसके चलते वो अब 9 सालों तक चुनाव नहीं लड़ सकते हैं. आजम खान न तो 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ पाएंगे और न ही 2027 का विधानसभा चुनाव. सब ठीक रहा तो वह 2031 में चुनाव लड़ पाएंगे. आजम खान 74 साल के हो चुके हैं और 2031 में 83 साल के हो जाएंगे. इस तरह अगले 9 सालों में सियासत भी काफी बदल जाएगी. आजम उम्र के साथ-साथ तमाम बीमारियों से जूझ रहे हैं. इस तरह से आजम की सियासी सफर का यह अंत ही माना जा रहा है. आकाश सक्सेना ने जीत के साथ ही कह दिया है कि रामपुर में आजम खां का चैप्टर पूरी तरह से खत्म हो गया है.