उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी को एक और बड़ा झटका लगा है. स्वामी प्रसाद मौर्य के बाद अब सलीम शेरवानी ने भी महासचिव पद से इस्तीफा दे दिया है. सलीम ने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को चिट्ठी लिखी है, जिसमें उन्होंने कहा है कि पार्टी में मुसलमानों की उपेक्षा से परेशान होकर महासचिव पद से इस्तीफा दे रहा हूं. जल्द ही भविष्य को लेकर फैसला लूंगा.
अखिलेश यादव को लिखे पत्र में उन्होंने कहा कि मुसलमान लगातार उपेक्षित महसूस कर रहा है राज्यसभा के चुनाव में भी किसी मुसलमान को नहीं भेजा गया. बेशक मेरे नाम पर विचार नहीं होता, लेकिन किसी मुसलमान को भी यह सीट मिलनी चाहिए थी. मुसलमान एक सच्चे रहनुमा की तलाश में हैं, मुझे लगता है सपा में रहते हुए मैं मुसलमान की हालत में बहुत परिवर्तन नहीं ला सकता.
सलीम शेरवानी ने आरोप लगाया है कि जिस तरह से अपने पीडीए का नाम लिया लेकिन राज्यसभा में उम्मीदवारों की लिस्ट को देखकर लगता है कि आप खुद ही पीडीए को कोई महत्व नहीं देते.
वहीं विपक्षी गठबंधन को लेकर शेरवानी ने कहा, "एक मजबूत विपक्षी गठबंधन बनाने का प्रयास बेमानी साबित हो रहा है और कोई भी इसके बारे में गंभीर नहीं दिखता है. ऐसा लगता है कि विपक्ष सत्ता पक्ष की गलत नीतियों से लड़ने की तुलना में एक दूसरे से लड़ने में अधिक रुचि रखता है."
धर्मनिरपेक्षता को लेकर उन्होंने कहा कि धर्मनिरपेक्षता दिखावटी बन गई है. भारत में खासकर उत्तरप्रदेश में मुसलमानों ने कभी भी समानता, गरिमा और सुरक्षा के साथ जीवन जीने के अपने अधिकार के अलावा कुछ नहीं मांगा. लेकिन पार्टी यह मांग भी बहुत बड़ी लगती है. पार्टी के पास हमारी इस मांग का कोई जवाब नहीं है. इसलिए मुझे लगता है कि मैं सपा में अपनी वर्तमान स्थिति के साथ अपने समुदाय की स्थिति में कोई बदलाव नहीं ला सकता. इस परिस्थिति में मैं पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव के रूप में अपना इस्तीफा दे रहा हूं. मैं अगले कुछ हफ्तों के भीतर अपने राजनीतिक भविष्य के बारे में निर्णय लूंगा.
कौन हैं सलीम शेरवानी?
बता दें कि सलीम शेरवानी बदायूं लोकसभा सीट से पांच बार के सांसद रह चुके हैं. वह चार बार सपा की टिकट पर चुनाव जीते, जबकि एक बार कांग्रेस से सांसद रह चुके हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले शेरवानी सपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए थे. चुनाव में कांग्रेस से मिली हार के बाद वह सपा में वापस आ गए थे.