
उत्तर प्रदेश के संभल में महमूद गजनवी के सेना के मुखिया सैयद सालार मसूद गाजी की याद में लगने वाला 'नेजा मेला' अब नहीं होगा. पुलिस-प्रशासन ने मेले के आयोजन की अनुमति नहीं दी है. प्रशासन का कहना है कि लुटेरे-हत्यारे के नाम पर किसी भी तरह का आयोजन नहीं होने दिया जाएगा. सालार मसूद गाजी को आक्रांता बताया जा रहा है.
संभल के एडिशनल एसपी ने तो ऑन कैमरा उसका महिमा मंडन करने वालों को राष्ट्रविरोधी तक कह दिया. उन्होंने कहा कि जिस व्यक्ति ने सोमनाथ जैसे मंदिरों पर हमला किया, कत्लेआम मचाया, कोई उसकी याद में मेले का आयोजन कैसे कर सकता है, ये अपराध है.
इन सबके बीच सैयद सालार मसूद गाजी को लेकर बहराइच में भी हलचल बढ़ गई है. दरअसल, 1034 ईस्वी में बहराइच जिला मुख्यालय के समीप बहने वाली चित्तौरा झील के किनारे महराजा सुहेलदेव ने अपने 21 अन्य छोटे-छोटे राजाओं के साथ मिलकर सालार मसूद गाजी से युद्ध किया था और उसे युद्ध में पराजित कर मार डाला था. उसके शव को बहराइच में ही दफना दिया गया था, जहां सालाना जलसा होता है. लेकिन संभल 'नेजा मेले' मामले के बाद सुगबुगाहट है कि बहराइच में भी 'जेठ मेले' पर बैन लग जाएगा. इसके लिए आज विश्व हिंदू परिषद के पदाधिकारी डीएम को ज्ञापन देंगे. ज्ञापन में बहराइच में सालार मसूद गाजी की दरगाह पर लगने वाले 'जेठ मेले' को परमिशन नहीं देने की मांग होगी.
जानिए गजनवी के सेना के मुखिया के बारे में
जानकारों के मुताबिक, सैयद सालार मसूद गाजी का जन्म 1014 ईस्वी में हुआ था. वह विदेशी आक्रांता महमूद गजनवी का भांजा होने के साथ उसका सेनापति भी था. तलवार की धार पर अपनी विस्तारवादी सोच के साथ सालार मसूद गाजी 1030-31 के करीब अवध के इलाकों में सतरिख (बाराबंकी ) होते हुए बहराइच, श्रावस्ती पहुंचा था.
उस दौरान इस क्षेत्र में श्रावस्ती के राजा सुहेलदेव का शासन था. 1034 ईस्वी में बहराइच जिला मुख्यालय के पास महराजा सुहेलदेव ने साथी राजाओं के साथ मिलकर सालार मसूद गाजी को युद्ध में पराजित कर मार डाला था. जिसे बहराइच में अब के दरगाह शरीफ में दफना दिया गया था. लोगों को ऐसी भी मान्यता है कि जिस स्थान पर सालार मसूद को दफनाया गया वहां बालार्क ऋषि का आश्रम था और उसी आश्रम के समीप एक कुंड था जिसे सूर्यकुण्ड कहा जाता था. ये हिंदुओ का पूजा स्थल था.
लेकिन सालार मसूद गाजी की मृत्यु के 200 वर्षों बाद 1250 में दिल्ली के तत्कालीन मुगल शासक नसीरुद्दीन महमूद ने सालार की कब्र पर एक मकबरा बनवा दिया और उसे संत के तौर पर फेमस कर दिया. बाद में एक अन्य मुगल शासक फिरोज़ शाह तुगलक ने इसी मकबरे के बगल कई गुंबदों का निर्माण कराया जो आगे चलकर सालार मसूद गाजी की दरगाह के तौर पर विख्यात हुआ.
गाजी की दरगाह पर आते हैं हिंदू श्रद्धालु, मकबरे पर चढ़ाते हैं चादर
पिछले सैकड़ों वर्षों से सालार मसूद गाजी की दरगाह पर मुस्लिमों के साथ बड़ी तादाद में हिंदू श्रद्धालु भी आते हैं. दरगाह पर हर वर्ष मुख्य रूप से चार उर्स (धार्मिक जलसे) के आयोजन होते हैं, जिसे उत्तर प्रदेश की वक्फ नंबर 19 की इंतजामिया कमेटी बड़े जोश के साथ मनाती है. लेकिन यहां जेठ (मई जून) के महीने में पूरे एक माह चलने वाला 'जेठ मेले' का आयोजन होता है, जिसमें शुरुआती रविवार के दिन भारत के पूर्वांचल क्षेत्र से लाखों की तादाद में हिंदू-मुस्लिम जायरीन मकबरे पर चादर पोशी करने पहुंचते हैं.
बहराइच की चित्तौरा झील पर हिंदू मनाते हैं विजयोत्सव
वहीं, दूसरी ओर बहराइच में ही उस चित्तौरा झील पर जहां महाराजा सुहेलदेव व सालार मसूद गाजी के बीच युद्ध हुआ था उस स्थान पर सुहेलदेव सेवा समिति से जुड़े लोग 'जेठ मेले' के शुरुआती दिन 'विजयोत्सव दिवस' मनाते हैं. क्योंकि, सुहेलदेव ने गाजी को युद्ध में परास्त किया था.
मालूम हो कि सालार मसूद गाजी को युद्ध में हराने वाले महाराजा सुहेलदेव के नाम पर बहराइच के चित्तौरा झील के समीप योगी सरकार ने एक भव्य स्मारक बनवाया है. इसमें महाराजा सुहेलदेव की एक विशालकाय प्रतिमा भी लगाई गई है. करोड़ों रुपये की लागत से तैयार हुए इस आकर्षक स्मारक का 16 मई 2019 को पीएम मोदी ने वर्चुअल शिलान्यास किया था. इसके साथ योगी सरकार ने बहराइच के मेडिकल कालेज का नामकरण भी महाराजा सुहेलदेव के नाम पर किया था.