
यूपी के शाहजहांपुर जिले में 'जूता मार होली' खेली जाती है. जूता मार होली खेलने की परंपरा पिछले 300 वर्षों से चली आ रही है. ऐसे में जिला प्रशासन अलर्ट है. जिस-जिस रूट पर होली का जुलूस निकलेगा उस-उस रास्ते में पड़ने वाली मस्जिदों को तिरपाल से ढक दिया गया है, ताकि किसी भी तरह की अप्रिय घटना ना हो. इलाके में भारी पुलिस फोर्स की तैनाती की गई है.
दरअसल, 14 मार्च यानी जुमे वाले दिन होली पर शाहजहांपुर में 'लाट साहब' का लंबा-चौड़ा जुलूस निकलेगा. इसमें एक व्यक्ति को 'लाट साहब' बनाकर भैंसा गाड़ी पर बैठाया जाता है. लोग उस पर रंग, जूते–चप्पल बरसाते हैं. इसलिए सुरक्षा-व्यवस्था का तर्क देकर मस्जिदों को ढका जा रहा है. हालांकि, ये कोई पहली बार नहीं हो रहा है.
बताया गया कि मस्जिदों में रंग-गुलाल ना पड़े और कोई सांप्रदायिक विवाद ना हो, इसके लिए शहर में निकलने वाले 'बड़े लाट साहब' और 'छोटे लाट साहब' के जुलूस के रास्ते में पड़ने वाली 32 से ज्यादा मस्जिदों को आपसी सहमति से ढक दिया जाता है. सुरक्षा के लिए मस्जिद के बाहर पुलिसकर्मियों की तैनाती की जाती है. साथ ही होली से पहले ड्रोन कैमरे से जुलूस के रूट पर पड़ने वाले घरों की छतों पर चेकिंग की जाती है. इतना ही नहीं जुलूस के रूट पर लगे सभी सीसीटीवी कैमरे एक्टिव मोड पर रहते हैं.
दरअसल, शाहजहांपुर में होली को लेकर पूरे शहर में 24 जुलूस निकलते हैं जिनमें शहर के अंदर 8 'लाट साहब' के जुलूस होते हैं. इनमें दो प्रमुख जुलूस होते हैं, जो कि शहर के बीच में निकलते हैं. पहला 'बड़े लाट साहब' का जुलूस जो साढ़े सात किलोमीटर के रूट पर चलता है. दूसरा 'छोटे लाट साहब' का जुलूस जो ढाई किलोमीटर के रूट पर चलता है.
इस जुलूस में एक शख्स को 'लाट साहब' बनाकर भैंसा गाड़ी पर बैठाया जाता है और फिर उसे जूते और झाड़ू मार कर पूरे शहर में घुमाया जाता है. इस दौरान आम लोग 'लाट साहब' को जूते भी फेंक कर मारते हैं. जुलूस में भारी संख्या में लोगों का हुड़दंग होता है. जुलूस में पहले कई बार ऐसा हुआ कि जब मस्जिद में लोगों ने रंग डाल दिया और विवाद की स्थिति पैदा हो गई. इसके बाद से ही जुलूस के रास्ते में पड़ने वाली 32 से ज्यादा मस्जिदों को पूरी तरीके से होली के पहले ही ढक दिया जाता है.
जानिए क्यों निकलता ये अनोखा जुलूस
आपको बता दें कि ये जुलूस गुलामी के टाइम अंग्रेजों द्वारा किए गए जुल्मों के विरोध में निकाला जाता है. शाहजहांपुर के लोग अपना आक्रोश प्रकट करने के लिए एक व्यक्ति को 'लाट साहब' बनाकर उसे भैंसा गाड़ी पर बिठाते हैं. 'लाट साहब' अंग्रेजों का प्रतीक है. जिसे जूतों-चप्पलों और झाड़ू से पीटा जाता है.
इसको लेकर इतिहासकार डॉ. विकास खुराना बताते हैं कि 'लाट साहब' का जुलूस करीब 300 साल पुराना है. अवध शासन के दिनों में यहां की होली में नवाब भाग लेते रहे हैं. इसका लिखित एविडेंस 'तारीखे शाहजहांपुरी' में देखने को मिलता है, जब नवाब अब्दुल्ला खान ने होली खेली थी और जुलूस के रूप में पूरे शहर में घूमे थे.
इसमें विकृति तब आई जब इसका नाम 'लाट साहब' का जुलूस रख दिया गया. अंग्रेजों ने किसी व्यक्ति को 'लाट साहब' बनाकर होली के मौके पर जुलूस निकाला. इससे नाराज जनता ने जूतों की बारिश कर दी. ये एक तरह से अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों का विरोध था. 1857 की क्रांति के दिनों में अंग्रेजों ने इस जुलूस को कम्युनल हार्मनी को डिस्टर्ब करने का साधन के रूप में देखा. हालांकि, पुनः 1988 में तत्कालीन जिलाधिकारी कपिल देव ने इसके स्वरूप को फिर से सही करने की कोशिश की. सालों से 'लाट साहब' का जुलूस बाबा चौकसी नाथ से होते हुए बाबा विश्वनाथ मंदिर और पूरे शहर का चक्कर लगाकर पटी गली में समाप्त हो जाता है.