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प्राण प्रतिष्ठा के लिए श्रीराम की मूर्ति का हो गया चयन! ऐसे दिखेंगे रामलला

अयोध्या के नवनिर्मित भव्य मंदिर में 22 जनवरी 2024 को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है. इससे पहले श्री राम जन्म-भूमि मंदिर निर्माण समिति की बैठक के दौरान प्राण प्रतिष्ठित की जाने वाली मूर्ति पर चर्चा की गई है. मूर्ति के चयन के पहले सभी बिंदुओं और पहलुओं पर विचार विमर्श भी किया गया है.

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सांकेतिक फोटो.
सांकेतिक फोटो.

श्री राम जन्म-भूमि मंदिर निर्माण समिति की बैठक के दौरान प्राण प्रतिष्ठित की जाने वाली मूर्ति पर चर्चा हुई. राम मंदिर ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय समेत अन्य सदस्यों ने निर्माण हो चुकी तीनों मूर्तियां को देखा. ट्रस्टी अनिल मिश्रा की माने तो तीनों मूर्तियां को देखने के बाद चयन की जाने वाली मूर्ति को लेकर काफी कुछ सहमति बन गई है. हालांकि, इसकी घोषणा जनवरी के प्रथम सप्ताह में की जाएगी. 

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मूर्ति के चयन के पहले सभी बिंदुओं और पहलुओं पर विचार विमर्श भी किया गया है. वहीं, जिन मूर्तियों का निर्माण किया जा रहा है, वह रामचरितमानस और वाल्मीकि रामायण में वर्णित रामलला के स्वरूप जैसी होगी. धनुष-बाण मूर्ति का हिस्सा नहीं होंगे, बल्कि साज सज्जा-हिस्सा होंगे.

जीवंत, सबसे अद्भुत और आकर्षक होंगे रामलला  

श्री राम जन्मभूमि मंदिर में प्राण प्रतिष्ठित होने वाली 5 वर्षीय बाल रामलला की मूर्ति अद्भुत होगी. बाल रामलला की मूर्ति में रामचरितमानस और वाल्मीकि रामायण में वर्णित काया की झलक दिखाई देगी. जैसे नीलकमल जैसी आंखें, चंद्रमा की तरह चेहरा, घुटनों तक लंबे हाथ, होठों पर निश्चल मुस्कान और दैवीय सहजता के साथ गंभीरता. यानि ऐसी जीवंत मूर्ति, जो देखते ही मन को भा जाए और एकटक देखने के बाद भी आंखें तृप्त होने के बजाय प्यासी ही रहे. 

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कुछ ऐसा ही होगा रामलला का बालस्वरूप. 51 इंच की ऐसी विलक्षण मूर्ति के लिए 3 चुनिंदा कलाकारों ने तीन अलग-अलग मूर्तियां बनाई है. इसमें से दो कर्नाटक की श्याम शिला से तैयार की गई है, तो एक सफेद संगमरमर की है. मूर्ति तैयार करने के पहले विशेषज्ञों ने इन पत्थरों की गहनता से जांच भी की है. 

घोषणा से पहले मानकों की कसौटी पर परखी जाएगी मूर्ति  

अयोध्या का श्री राम जन्मभूमि मंदिर इस तरह बन रहा है कि 1000 साल तक इसके जीर्णोद्धार की जरूरत न पड़े. इसीलिए मंदिर में प्राण प्रतिष्ठित होने वाली मूर्ति को लेकर भी कई मानक तय किए गए हैं. चयनित होने वाली मूर्ति को इन्हीं मानकों की कसौटी पर परखा जाएगा. सबसे पहले यह देखा जाएगा कि रामचरितमानस और वाल्मीकि रामायण में वर्णित श्री राम के बाल स्वरूप से कौन सी मूर्ति सबसे अधिक मेल खाती है.

इसके बाद इस बात का परीक्षण होगा कि हल्दी, चंदन, धूप, अगरबत्ती के धुएं और अन्य पूजन सामग्रियों से मूर्ति पर कोई दाग या प्रभाव तो नहीं पड़ता. यही नहीं रामनवमी के दिन जब इस पर सूर्य की किरण पड़े, तो कौन सी मूर्ति ज्यादा अच्छी लगेगी. तैयार हुई मूर्ति में किस मूर्ति की आयु सबसे अधिक है. इस तरह की कुछ मानक हैं और मूर्ति के चयन की घोषणा के पहले इन्हीं महत्वपूर्ण बिंदुओं पर विचार विमर्श हो रहा है.

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श्यामशिला से निर्मित मूर्ति सबसे उपयुक्त

इसीलिए मूर्ति की घोषणा से पहले मूर्ति विशेषज्ञ इन मूर्तियों की जांच पड़ताल भी करेंगे. हालांकि, जानकार बताते हैं कि श्याम शिला से तैयार की गई दो अलग-अलग बाल स्वरूप मूर्तियों में से ही किसी एक का चयन किया जाएगा. सफेद संगमरमर से निर्मित मूर्ति के चयन की संभावना लगभग न के बराबर है. इसके पीछे का तर्क यह है कि राम लला श्याम वर्ण के थे, इसलिए श्यामशिला से निर्मित मूर्ति सबसे उपयुक्त होगी.

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